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________________ - का० १.६ ३८] दर्शने मतभेदाः। ३३ नामष्टादशनिकायभेदाः, वैभाषिकसौत्रान्तिकयोगाचारमाध्यमिकाविभेदा वा वर्तन्ते। जैमिनेश्च शिष्यकृता बहवो भेदाः। "ओंबेकः कारिकां वेत्ति तन्त्रं वेत्ति प्रभाकरः। वामनस्तुभयं वेत्ति न किंचिदपि रेवणः ॥१॥" ६३८. अपरेऽपि बहूदककुटीचरहंसपरमहंसभाट्टप्रभाकरादयोऽनेकेऽन्तर्भेदाः। सांख्यानां चरकादयो भेदाः। अन्येषामपि सर्वदर्शनानां देवतत्वप्रमाणमुक्तिप्रभृतिस्वरूपविषये तत्तदनेकशिष्यसंतानकृताः, तत्तद्ग्रन्थकारकृता वा मतभेदा बहवो विद्यन्ते । में अनेकों विवाद हैं। एक बौद्धदर्शनमें हो १८ प्रकारके निकाय तथा वैभाषिक सौत्रान्तिक योगाचार और माध्यमिक आदि भेद मौजूद हैं। जैमिनि दर्शनमें शिष्योंके व्याख्या भेदसे ही अनेकों भेद हो गये हैं। "उम्बेक कारिकाके अर्थको जानता है, प्रभाकर तन्त्र-सिद्धान्तके स्वरूपको समझता है, वामनको कारिका तथा तन्त्र दोनोंका ज्ञान है, पर रेवण एकको भी नहीं जानता।" इत्यादि प्रवाद प्रसिद्ध ही है। -३८. इसी तरह और भी बहूदक, कुटीचर, हंस, परमहंस, भाट्ट, प्रभाकर आदि अनेकों अवान्तर भेद हैं। सांख्यदर्शनमें भी चरक आदि आचार्योंके अपने-अपने पृथक् सिद्धान्त हैं। प्रायः अन्य सभी दर्शनोंमें देव, तत्त्व, प्रमाण तथा मुक्ति आदिके स्वरूपमें अनेक शिष्योंके मतोंकी तथा विभिन्न ग्रन्थकारोंकी अनेक मत-परम्पराएं विद्यमान हैं। चीनी भाषामें अनुवादित भदन्त वसुमित्र प्रणीत अष्टादशनिकाय ग्रन्थके अनुसार यह अठारह शाखाभेद इस प्रकार है बुद्धधर्म १ स्थविरवादी महासांधिक १४ प्रज्ञप्तिवादी १६ लोकोत्तरवादी १७ एक व्यावहारिक ३ वात्सीपुत्रीय - ४ धर्मोत्तरीय ५ भद्रयाणीय ७ षाण्णागारिक ६ सम्मितीय २ हैमवत १५ चैतीय १८ गोकुलिक --८ सर्वास्तिवादी ९ महीशासक ११ काश्यपीय १२ सौत्रान्तिक १. धर्मगुप्त १. "ते च माध्यमिकयोगाचारसौत्रान्तिकवैभाषिकसंज्ञाभिः प्रसिद्धा बौद्धा यथाक्रमं सर्वशून्यत्वबाह्यार्थशून्यत्व-बाह्यार्थानुमेयत्व-बाह्यार्थप्रत्यक्षत्ववादानातिष्ठन्ते ।" सर्वद. बौद्धद.। "चतुष्प्रस्थानिका बौद्धाः ख्याता वैभाषिकादयः॥ अर्थो ज्ञानान्वितो वैभाषिकेण बहु मन्यते । सौत्रान्तिकेन प्रत्यक्षग्राह्योऽर्थो न बहिर्मतः ॥ आकारसहिता बुद्धिर्योगाचारस्य सम्मता । केवलां संविदं स्वस्थां मन्यन्ते मध्यमाः पुनः ॥" विवेकवि. १२७१-७३। २. रेणवः म.२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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