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________________ ३२ षड्दर्शनसमुच्चये [ का० १. ६ ३७ - नामकेंदिव्यपुरुषप्रभवम् । इत्यादयोऽनेके वादिनो विद्यन्ते । एषां स्वरूपं लोकतत्त्वनिर्णयात हारिभद्रादवसातव्यम् । ३७. एवं सर्वगतादिजीवस्वरूपे ज्योतिश्चकाविचारस्वरूपे च नैके विप्रतिपद्यन्ते। तथा बौद्धा मानते हैं । इत्यादि अनेकों वादी इस संसारके विषयमें अपने मतका अनेक तरहसे निरूपण करते हैं। इनका विशेष स्वरूप हरिभद्रसूरिकृत लोकतत्त्वनिर्णय प्रन्थमें देखना चाहिए। $ ३७. इसी प्रकार जीवके सर्वगतत्व आदि स्वरूपके विषयमें तथा ज्योतिश्चक्रके गमनादिक १. -नामैकदि क.। २. -नेकवादि- क., प. १, २, म. १, २। ३. -दिचर- आ. । -दिवार- प. १, २, म.१। ४. एतेषां निकायानां वर्णनं विनयपिटकभूमिकायामित्यम्-"चुल्लवग्गके सप्तशतिकास्कन्धक ( पृ. ५४९ ) से मालूम है कि-बुद्धनिर्वाणके १०० वर्ष बाद बौद्ध भिक्षु दो निकायों ( सम्प्रदायों ) में विभक्त हो गये । प्राचीन बातोंके दृढ़ पक्षपाती स्थविर कहलाते थे और विनयविरुद्ध कुछ नयी बातोंके प्रचार करनेवाले महासांघिक । पालीको कथावत्थुअट्ठकथा, दीपवंस, महावंस तथा कुछ और ग्रन्थोंके अनुसार बुद्धनिर्वाणके २२० वर्षों बाद सम्राट अशोकके समय महासांघिकों और स्थविरों में फिर कितने ही छोटे-मोटे मतभेद होकर १८ निकाय हो गये । कथावत्थुअट्ठकथाके अनुसार यह शाखाभेद इस प्रकार है बुद्धधर्म १ स्थविरवादी १३ महासांधिक २ वृजिपुत्रक ( वात्सीपुत्रीय) ७ महीशासक १४ एक व्यावहारिक १५ गोकुलिक ८ धर्मगुप्तिक ९ सर्वास्तिवादी १६ प्रज्ञप्तिवादी १७ बाहुलिक ( बाहुश्रुतिक) ३ धर्मात्तरीय ४ भद्रयाणिक ५ छन्नागारिक । (षष्णागारिक) । ६ सम्मितीय १० काश्यपीय १८ चैत्यवादी ११ सांक्रान्तिक १२ सूत्रवादी (सौत्रान्तिक) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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