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षड्दर्शनसमुच्चये
[ का० १. ६ ३७ - नामकेंदिव्यपुरुषप्रभवम् । इत्यादयोऽनेके वादिनो विद्यन्ते । एषां स्वरूपं लोकतत्त्वनिर्णयात हारिभद्रादवसातव्यम् ।
३७. एवं सर्वगतादिजीवस्वरूपे ज्योतिश्चकाविचारस्वरूपे च नैके विप्रतिपद्यन्ते। तथा बौद्धा
मानते हैं । इत्यादि अनेकों वादी इस संसारके विषयमें अपने मतका अनेक तरहसे निरूपण करते हैं। इनका विशेष स्वरूप हरिभद्रसूरिकृत लोकतत्त्वनिर्णय प्रन्थमें देखना चाहिए।
$ ३७. इसी प्रकार जीवके सर्वगतत्व आदि स्वरूपके विषयमें तथा ज्योतिश्चक्रके गमनादिक
१. -नामैकदि क.। २. -नेकवादि- क., प. १, २, म. १, २। ३. -दिचर- आ. । -दिवार- प. १, २, म.१। ४. एतेषां निकायानां वर्णनं विनयपिटकभूमिकायामित्यम्-"चुल्लवग्गके सप्तशतिकास्कन्धक ( पृ. ५४९ ) से मालूम है कि-बुद्धनिर्वाणके १०० वर्ष बाद बौद्ध भिक्षु दो निकायों ( सम्प्रदायों ) में विभक्त हो गये । प्राचीन बातोंके दृढ़ पक्षपाती स्थविर कहलाते थे और विनयविरुद्ध कुछ नयी बातोंके प्रचार करनेवाले महासांघिक । पालीको कथावत्थुअट्ठकथा, दीपवंस, महावंस तथा कुछ और ग्रन्थोंके अनुसार बुद्धनिर्वाणके २२० वर्षों बाद सम्राट अशोकके समय महासांघिकों और स्थविरों में फिर कितने ही छोटे-मोटे मतभेद होकर १८ निकाय हो गये । कथावत्थुअट्ठकथाके अनुसार यह शाखाभेद इस प्रकार है
बुद्धधर्म
१ स्थविरवादी
१३ महासांधिक
२ वृजिपुत्रक ( वात्सीपुत्रीय)
७ महीशासक १४ एक व्यावहारिक १५ गोकुलिक
८ धर्मगुप्तिक
९ सर्वास्तिवादी १६ प्रज्ञप्तिवादी १७ बाहुलिक
( बाहुश्रुतिक)
३ धर्मात्तरीय ४ भद्रयाणिक
५ छन्नागारिक । (षष्णागारिक) ।
६ सम्मितीय
१० काश्यपीय
१८ चैत्यवादी
११ सांक्रान्तिक
१२ सूत्रवादी (सौत्रान्तिक)
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