________________ उद्धृतवाक्यानुक्रमणिका 515 यद्वानुवृत्तिव्यावृत्ति [ मी० वस्तु (स्त्व) संकरसिद्धिश्च श्रेयो हि पुरुषप्रीतिः[ मी० श्लोक श्लो० अभाव० श्लो० 3] [मी० श्लो० अभाव० श्लो० 5] चोदना सू० श्लो० 191] 76 / 5461447 765461447 79 / 5241437 यदा ज्ञानं प्रमाणं तदा विविक्ते दृकपरिणतौ[ ] श्रोत्रं त्वक् चक्षुषी जिह्वा [ न्यायभा० 11113] 41 / 22 / 151 43 / 30 / 155 19 / 28 / 90 विरोधादेकमनेकस्वभाव यस्मात्क्षायिकसम्यक्त्व [ ] [प्रश० कन्द०१० 30] [ ] 52 / 245 / 283 57 / 382 / 372 विशेषणविशेष्याम्याम् [प्र० वा. / षट्त्रिंशदङ्गुलायामम् [ यः पश्यत्यात्मानम् [प्र०व० ] 33 / 2 / 140 12219-221] 4.191] 972 / 56 52 / 259 / 294 वीतरागं स्मरन् योगी [ ] यावदात्मगुणाः सर्वे [ न्याय म० 12 / 3 / 77 [स] प्रमे० पृ० 7 ] 52 / 250 / 287 व्यक्तेरभेदस्तुल्यत्वम् [ प्रश० स एव योगिनां सेव्य : [ ] यावज्जीवेत्सुखं जीवेत् [ ] - किरण पृ० 33 ] 12 / 3177 811559 / 453 65 / 495 / 421 सत्संप्रयोगे सति [मी० सू० युगपदयुगपत्क्षिप्रम् [ ] व्यवच्छेदफलं वाक्यम् [प्र. . . 1114] 731529 / 439 49 / 200 / 264 वा० 4 / 192] 972 / 56 / / सद्विद्यमाने सत्ये च [अनेकार्थ येन येन हि भावेन [ ] 1 / 10] 1 / 12 / 8 12 // 377 [ श ] सदकारणवन्नित्यम् वैशे० सू० शब्दज्ञानादसंनिकृष्टे [शाबर 4 / 1 / 1] 6114671410 रागोऽङ्गनासङ्गमतः [ ]. सप्तदशप्राजापत्यान्पशून [तैत्ति. 46 / 5 / 163 ___ भा० 115]74 / 533 / 440 सं० 114] 580442401 रूपादयस्तदर्थाः [ ] शब्दबन्धसौक्ष्म्यस्थौल्य- [ त० स प्रतिपक्षस्थापनाहीनः 19 / 17186 सू० 5 / 24] 49 / 1800254 न्यायसू० 11233] शिरसोऽवयवा निम्ना 29 / 70 / 115 [ल] [मी० श्लो० अभाव० श्लो०७] सम्यग्ज्ञानदर्शन - [त०सू० 111] लिखितं साक्षिणो भुक्तिः 76 / 546 / 447 54 / 288 / 310 [ याज्ञव० स्मृ०२।२२ ] शुद्धोऽपि पुरुषः प्रत्ययम् [ योग संबद्धं वर्तमानं च गृह्यते 55 / 312 / 319 भा० 2 / 20] 41 / 23 / 151 चक्षुरादिना [मी० प्रत्यक्ष लूतास्य तन्तुगलिते[ ] शुद्धचैतन्यरूपोऽयम् [ ] सू० श्लो०८४] 33 / 2 / 140 - 43 / 27 / 153 6845171434 शैवाः पाशुपताश्चैव [ ] सर्वमेतदिदं ब्रह्म [छान्दो 12 / 4 / 78 3 / 14 / 1] 67512 / 430 वर्तत इदं न वर्तत [ ] शैवी दीक्षा द्वादशाब्दीम् सर्वव्यक्तिषु नियतं क्षणे क्षणे 49 / 200 / 265 [ ] 12 / 1176 [ ] 57356 / 348 वर्तना परिणामः क्रिया [त. श्रुत्वा वचः सुचरितं [लोकतत्त्व० - साधर्म्यमथ वैधर्म्यम् [ ] सू० 5 / 22] 49 / 173 / 252 1132] 114 / 11 32 // 1301136 वरं वृन्दावने वासः[ ] श्रूयतां धर्मसर्वस्वम् [चाणक्य सामीप्ये च व्यवस्थायाम् [ ] 52 / 249 / 287 117] 580446402 4 / 47139 [ र ] [व] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org