________________ 514 पञ्चविंशतितत्त्वज्ञः[ ] 33 / 4 / 141 पयोव्रतो न दध्यत्ति [आप्तमी० श्लो० 60] 571358 / 350 पुद्गलत्थिकाए [ ] 49 / 202 / 265 पुराणं मानवो धर्मः [ मनु० 12 / 110] 44 // 38 / 158 पुरुष एवेदं सर्वम् [ ऋक्० 1090 / 2] 671512 / 431 पुरुषोऽविकृतात्मैव [ ] 41 / 22 / 151 प्रकृतेमहांस्ततोऽहंकारः [सांख्यका० 33] 41 / 17 / 148 / प्रत्यक्षमेवैकं प्रमाणम् [ ] 49 / 11 / 223. प्रत्यक्षादेरनुत्पत्तिः [ मी० / श्लोक० अभाव० श्लो० 11] 76 / 540 / 445 प्रतिक्षणं विशरारवो [ ] 11193173 प्रतिज्ञाहानिसंन्यास- [ ] 32 / 1301136 प्रतिनियताध्यवसायः [ ] 43 / 311155 प्रध्वस्ते कलशे शुशोच तनया मौली समुत्पादिते [ ] 57 / 358 / 350 प्रापणशक्तिः प्रामाण्यम् [ ] 8066 / 52 प्रमाणपञ्चकं यत्र [ ] 46 / 73 / 201 प्रमाणषटकविज्ञातो [मी० श्लो० अर्था० श्लो०१] 55 / 306 / 316 प्रसङ्गः प्रतिदृष्टान्तः [ . ] 32 / 130 / 136 षड्दर्शनसमुच्चयै प्रसिद्धसाधासाध्यसाधनम् मयूराण्डरसे यद्वत् [ ] [न्यायसू० 11116] 57 / 386 // 376 23155 / 105 महोक्षं वा महाजं वा [याज्ञ. पृथिव्यापस्तेजो वायुरिति स्मृ० 199 1581442 / 401 [ ] 84568 / 458 . 1 568 / 458 नियन्ते मिष्टतोयेन [ ] 33 / 2 / 140 [ब] मुक्तिस्तु शून्यतादृष्टेः [प्र. बदर्याः कण्टकस्तीक्ष्ण-[ लोक- . वा० 11256 ] 11195 / 74 तत्त्व 2 / 22] 1 / 24 / 20 मुख्यसंव्यवहारेण [ सन्मतिबन्धविप्रयोगो मोक्षः [ ] तर्क टीका पृ० 59] 47 / 92 / 213 55 / 320 // 327 बन्धुर्न नः स भगवान् [लोक- मूलक्षि (क्ष) तिकरीमाहु तत्त्व० 1 // 32] 1 / 14 / 11 [ ] 571371 / 362 बाह्यो न विद्यते ह्यर्थो [प्र० मूलप्रकृतिरविकृतिः [सांख्यका वा० 21327[ 1079 / 64 3] 41 / 18 / 148 बुद्धिदर्पणसंक्रान्तम् [ ] . मृतानामपि जन्तूनाम् [ ] 41 / 22 / 151 5804474403 बुद्धघध्यवसितमर्थम् [ ] मृद्वी शय्या प्रातरुत्थाय पेया 41 / 22 / 150 [ ] 444 / 37 बुद्धस्तु सुगतो धर्मधातुः [अभि- मृल्लेपसंगनिर्मोक्षात् [त० भा० धान० 2 / 146] 4 / 45 / 37 107] 52 / 244 / 281 बुद्धिश्चाचेतनापि [ ] 411233152 [य] य एव श्रेयस्करः [ शाबर भा० [भ] 2] 711524 // 437 भागे सिंहो नरो भागे [ ] यथा तथायथार्थत्वे [प्र. वा. 57 / 3863377 2 / 58] 1081166 यथास्तिर्यगूध्वं च [त० भा० [ म] 107] 52 / 245 / 282 मतानुज्ञापरिनिरनुयोज्यः यथा सकलशास्त्रार्थः [ ] 3211301136 [प्र. वातिकाल० 2 / 227] मतिः स्मृतिः संज्ञा [त० सू० 4676 / 203 1113] 55316 / 321 यथोक्तलक्षणोपपन्नः [न्याय मणिप्रदीपप्रभयोः [प्र. वा. सू० 112 / 2,3] 2970 / 115 2157 108157 यद्यथैवाविसंवादि [ सन्मतितर्क मणुन्नं भोयणं भुच्चा [ [ टीका, पृ० 59] 4/4437 55 / 3201327 मयाकश्यामाक [ ] यद्यदेव यतो यावत् [शास्त्रवा० 79 / 555 / 451 श्लो०१४७] 1123319 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org