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________________ - का० १. $२९ ] २३ नास्त्यात्मेति । एवमीश्वरादिवादिभिरपि यदृच्छापर्यन्तैर्विकल्पा वाच्याः । सर्वेऽपि मिलिताः विकल्पाः | अमीषां च विकल्पानामर्थः प्राग्वद्भावनीयः । $ २९. नवरं यदृच्छात इति यदृच्छावादिनां मते यदुच्छा ह्यनभिसंधिपूविकार्थं प्राप्तिः । अथ के ते यच्छावादिनः ? उच्यते- इहे ये भावानां संतानापेक्षया न प्रतिनियतं कार्यकारणभावमिच्छन्ति किंतु यदृच्छया ते यदृच्छावादिनः । ते ह्येवमाहुः- न खलु प्रतिनियतो वस्तूनां कार्यकारणभावस्तथा प्रमाणेनाग्रहणात् । तथाहि - शालूकादपि जायते शालूको गोमयादपि जायते शालूकः । वह्नेरपि जायते वह्निररणिकाष्ठादपि । धूमादपि जायते धूमोऽग्नीन्धनसम्पर्कादपि । कन्दादपि जायते फैदली बीजादपि । वटादयो बीजादुपजायन्ते शाखैकदेशादपि । गोधूमबीजादपि जायन्ते गोधूमा वंशबीजादपि । ततो न प्रतिनियतः क्वचिदपि कार्यकारणभाव इति । यदृच्छातः क्वचित्किचिद्भवतोति प्रतिपत्तव्यम् । न खल्वन्यथा वस्तुसद्भावं पश्यन्तोऽन्यथात्मानं प्रेक्षावन्तः परिक्लेशयन्ति । यदुक्तम् मङ्गलम्। आत्माकT कोई भी स्थूल कार्य हमारे दृष्टिगोचर नहीं होता जिससे उसका अनुमान किया जाय । इस तरह प्रत्यक्ष और अनुमानका विषय न होनेके कारण आत्माका अस्तित्व सिद्ध नहीं होता अतः आत्मा नहीं है । इसी तरह ईश्वर आदि यदृच्छा पर्यन्त विकल्पोंकी अपेक्षासे 'नास्ति' की मीमांसा कर लेनी चाहिए। इन काल आदि छहों विकल्पोंमें कालादि पांचका अर्थ तो पहलेकी तरह ही समझना चाहिए । $ २९. 'यदृच्छा' विकल्पका अर्थ इस प्रकार है- यदृच्छावादियोंके मतानुसार यदृच्छाका अर्थ है - बिना संकल्पके ही अर्थकी प्राप्ति होना, या जिसका विचार ही नहीं किया उसकी अतर्कित उपस्थिति होना । यदृच्छावादी पदार्थों में सन्तानकी अपेक्षासे निश्चित कार्यकारणभाव नहीं मानते । उनका कहना है कि पदार्थोंमें कोई नियत कार्यकारणभाव नहीं है किन्तु यदृच्छासे अर्थात् जो कोई भी पदार्थ जिस किसी से भी उत्पन्न हो जाता है। वे कहते हैं कि पदार्थोंके प्रतिनियत कार्यकारणभावका किसी भी प्रमाणसे ग्रहण नहीं होता, अतः प्रतिनियत कार्यकारणभाव काल्पनिक ही है प्रामाणिक नहीं है । देखो, कमलकन्दसे भी कमलकन्द उत्पन्न होता है और गोबरसे भी कमलकन्दकी उत्पत्ति देखी जाती है। एक जगह अग्निकी उत्पत्ति अग्निसे देखते हैं तो दूसरी जगह अरणिके मन्थन से भी अग्निकी उत्पत्ति प्रत्यक्ष सिद्ध है। एक जगह अग्नि और ईंधन के सम्पर्कसे यदि घूमका उत्पाद होता है तो दूसरी जगह घूमसे भी धूमकी पैदाइश दृष्टिगोचर होती है। केला कन्दसे भी उत्पन्न होता है और बीजसे भी । वट आदि वृक्ष बीजसे भी उत्पन्न होते हैं और डाली काटकर उसकी कलम लगानेपर भी उनकी उत्पत्ति देखी जाती है। एक जगह गेहूँके बीजसे गेहूँका अंकुर निकलता है तो दूसरी जगह बाँसके बोजसे भी गेहूं का अंकुर लहलहाता हुआ निकल आता है। इस तरह ध्यान से देखा जाये तो पदार्थों में कहीं भी निश्चित कार्यकारणभाव नहीं है । यदृच्छासे जो कोई जिस किसी भी पदार्थसे उत्पन्न हो जाता है। जब वस्तुओंका स्वरूप ही यादृच्छिक — अनियत है तब उसको प्रतिनियत कार्यकारणभाव के शिकंजे में क्यों कसा जाये ? कोई भी बुद्धिमान् क्यों इस अप्रामाणिक कार्यं सिद्ध करनेमें अपनी बुद्धिको क्लेश देगा ? कहा भी है १. सर्वे मिलिताः प. १, २, भ. १, २ । २. नन्दि मलय, पृ. २१५ । ३. कन्दली - क., प. १, २, भ. १, २ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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