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-का. १.६२७]
मङ्गलम् । लभ्यन्ते। परत इति परेभ्यो व्यावृत्तेन रूपेणात्मा विद्यते। यतः प्रसिद्धमेतत् सर्वपदार्थानां परपदार्थस्वरूपापेक्षया स्वरूपपरिच्छेदो यथा दीर्घत्वाद्यपेक्षया ह्रस्वत्वादिपरिच्छेदः, एवमात्मनि स्तम्भादीन्समीक्ष्य तद्व्यतिरिक्तबुद्धिः प्रवर्तते । अतो यदात्मनः स्वरूपं तत्परत एवावधार्यते न स्वत इति । एवं नित्यत्वापरित्यागेन दश विकल्पा लब्धाः । एवमनित्यपदेनापि, सर्वेऽपि मिलिता विशतिः। एते च जीवपदार्थेन लब्धाः। एवमजीवादिष्वष्टसु पदार्थेषु प्रत्येक विशतिविशतिविकल्पा लभ्यन्ते । ततो विशतिर्नवगुणिता शतमशीत्युत्तरं क्रियावादिनां भवति ।
२७. तथा न कस्यचित्प्रतिक्षणमवस्थितस्य पदार्थस्य क्रिया संभवति उत्पत्त्यनन्तरमेव विनाशादित्येवं ये वदन्ति ते अक्रियावादिने आत्मादिनास्तित्ववादिन इत्यर्थः। ते च कोकुलकाण्ठेविद्धिरोमकसुगतप्रमुखाः। तथा चाहुरेके
"क्षणिकाः सर्वसंस्कारा अस्थिराणां कुतः क्रिया।
भूतियें ( यें ) षां क्रिया सैव कारणं सैव चोच्यते ॥१॥" है पररूपसे नहीं। यह तो प्रसिद्ध ही है कि सभी पदार्थों के स्वरूपका निश्चय परदार्थकी व्यावृत्ति करके ही होता है । जैसे दीर्घत्वादि-लम्बाई आदिको अपेक्षासे ह्रस्वत्वादि-छुटाई आदिका स्वरूप निश्चित होता है। उसी तरह सभी पदार्थों के स्वरूपका निर्णय पररूपके निश्चयकी अपेक्षा रखता है। इसी तरह स्तम्भादि जड़ पदार्थों की समीक्षा करनेके अनन्तर ही आत्मामें स्तम्भादिसे भेदबुद्धि होती है । अतः आत्माके स्वरूपका निश्चय परपदार्थके निरूपण करनेके बाद उससे व्यावृत्त बुद्धि होनेपर हो होता है। परपदार्थसे बिलकुल निरपेक्ष होकर किसी भी वस्तुका मात्र स्वतः ही निर्णय करना असम्भव है। इस तरह नित्य पदके 'स्वतः और परतः' इन दो भंगोंको काल आदि पाँचोंके साथ गुणा करनेपर दस विकल्प होते हैं। इसी तरह 'अनित्य' पदके.भी दस भेद समझ लेने चाहिए। जिस प्रकार ये बीस विकल्प जीव पदार्थके होते हैं उसो तरह अजीव आदि अन्य आठ पदार्थोके भी बीस-बीस ही विकल्प होते हैं । इस प्रकार बीस विकल्पोंको नव पदार्थोंसे गुणा करनेपर क्रियावादियोंके १८० भेद हो जाते हैं।
२७. अक्रियावादी क्रिया अर्थात् अस्तित्वका सर्वथा उच्छेद करते हैं। उनका कहना है कि सभी पदार्थ क्षणिक हैं। किसी भी क्षणिक पदार्थकी दूसरे क्षण तक सत्ता नहीं रहती अतः उसमें क्रियाकी सम्भावना ही नहीं है। और इसीलिए आत्मा आदि नित्य पदार्थों का अस्तित्व नहीं है। कोकुल काण्ठेविद्धिरोमक सुगत आदि प्रमुख अक्रियावादी हैं। इन्हीं में से किसीने कहा भी है कि
__ "सभी संस्कार क्षणिक हैं । अस्थिर पदार्थों में क्रिया कैसे हो सकती है ? अतः इन पदार्थों१.-रिक्त बुद्धिः प. १, २, भ. १,२। २. "तथा नास्त्येव जीवादिकः पदार्थ इत्येवं वादिनः अक्रियावादिनः।"-सूत्र. शो. १११२ । आचा, शी. १४ । “अक्रियां क्रियाया अभावम्, न हि कस्यचिदप्यनवस्थितस्य पदार्थस्य क्रिया समस्ति तदभावे च अनवस्थितेरभावादित्येवं ये वदन्ति ते अक्रियावादिनः । तथा चाहुरेके-'क्षणिकाः सर्वसंस्कारा...."।' इत्यादि । अन्ये त्वाहः-अक्रियावादिनो ये ब्रुवते कि क्रियया, चित्तशुद्धिरेव कार्या, ते च बौद्धा इति । अन्ये तु व्याख्यान्ति-अक्रियां जीवादि. पदार्थो नास्तीत्यादिकां वदितं शीलं येषां ते अक्रियावादिनः ।"-भग. अभ. ३।। "-अक्रियावादिनो नास्तिका इत्यर्थः"-स्था. अभ. ४॥४॥३४५। नन्दि. मलय. पृ. २१५A1 ३. "मरीचिकुमारकपिलोलू कगार्यव्याघ्रभूतिवाद्धलिमाठरमोद्गलायनादीनामक्रियावाददृष्टीनां चतुरशीतिः।"राजा पृ. ५१। ४. उद्धृतोऽयम्-"क्षणिकाः""""भतिर्येषां क्रिया सैव कारक सैव चोच्यते ।" बोधिचर्या. पं. पृ. ३७६ । "तत्रेदमुक्तं भगवता-क्षणिकाः"भतिर्येषां क्रिया सैव कारकं सव""""" -तत्वसं. पं. पृ. ११ । “भतिर्येषां क्रिया सैव कारकं सैव"." -नन्दि. मलय. पृ. २१५A भग, अम. ।
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