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- का० ७३. $५२९ ]
मीमांसकमतम् ।
$ ५२६. अथ प्रमाणस्य विशेषलक्षणं विवक्षुः प्रथमं तन्नामानि तत्संख्यां चाहे - प्रत्यक्षमनुमानं च शाब्दं चोपमया सह ।
अर्थापत्तिरभावश्च षट् प्रमाणानि जैमिनेः ॥७२॥
$ ५२७. व्याख्या - प्रत्यक्षानुमानशाब्दोपमानार्थापत्त्यभावलक्षणानि षट् प्रमाणानि जैमि निमुनेः संमतानीत्यध्याहारः । चकाराः समुच्चयार्थाः । तत्राद्यानि पञ्चैव प्रमाणानीति प्रभाकरो - भावस्य प्रत्यक्षेणैव ग्राह्यतां मन्यमानोऽभिमन्यते । षडपि तानीति भट्टो भाषते ॥७२॥ $ ५२८. अथ प्रत्यक्षस्य लक्षणमाचष्टे
तत्र प्रत्यक्षमक्षाणां संप्रयोगे सतां सति ।
आत्मनो बुद्धिजन्मेत्यनुमानं लैङ्गिकं पुनः ||७३ ||
६५२९. व्याख्या - 'तत्र' इति निर्धारणार्थः । इयमत्राक्षरघटना-सतां संप्रयोगे सति आत्मनोक्षाणां बुद्धिजन्म प्रत्यक्षमिति । श्लोके तु बन्धानुलोम्येन व्यस्तनिर्देशः । सतां विद्यमानानां वस्तूनां संबन्धिनि 'संप्रयोगे संबन्धे सति आत्मनो जीवस्येन्द्रियाणां यो बुद्धघुत्पादः तत्प्रत्यक्षमिति । सतामित्यत्र सत इत्येकवचनेनैव प्रस्तुतार्थसिद्धौ षष्ठीबहुवचनाभिधानम् बहूनामप्यर्थानां संबन्ध इन्द्रियैस्य संयोगः क्वचन भवतीति ज्ञापनार्थम् । अत्र जैमिनीयं सूत्रमिदम् - "सत्संप्रयोगे सति पुरुषस्येन्द्रियाणां बुद्धिजन्म तत्प्रत्यक्षम् ।" [मी. सू. ११११४ ] इति । विद्यमानेन वस्तुनेन्द्रियाणां संप्रयोगे संबन्धे सति पुनरस्य यो ज्ञानोत्पादः, तत्प्रत्यक्षम् ।
व्याख्या -सता
५२६. अब प्रमाण विशेषके लक्षणोंकी या प्रमाणके विशेष लक्षणोंको कहनेकी इच्छासे पहले उनके नाम तथा उनकी संख्या बताते हैं
जैमिनिमतमें प्रत्यक्ष, अनुमान, शाब्द, उपमान, अर्थापत्ति और अभाव ये छह प्रमाण
हैं॥७२॥
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६५२७. जेमिनि मुनि ने प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान, अर्थापत्ति और अभाव इन छह प्रमाणों को माना है । 'च' शब्द समुच्चयार्थक है । प्रभाकर अभावको प्रत्यक्ष के द्वारा ग्राह्य मानकर अर्थापत्ति पर्यन्त पांच ही प्रमाण स्वीकार करते हैं। भाट्ट अभावको भी प्रमाण मानते हैं, इनके मत में छह ही प्रमाण हैं ||७२ ||
$ ५२८. अब प्रत्यक्षका लक्षण कहते हैं
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विद्यमान पदार्थोंसे इन्द्रियों का सम्बन्ध - सन्निकर्ष होनेपर आत्माको जो बुद्धि उत्पन्न होती है उसे प्रत्यक्ष कहते हैं। लैङ्गिक -लिंगसे उत्पन्न होनेवाले ज्ञानको अनुमान कहते हैं ॥७३॥ $ ५२९. तत्र - जैमिनि मतमें । श्लोकमें छन्द रचनाके अनुरोधसे प्रत्यक्षके लक्षण शब्दों का बेसिलसिले निर्देश किया है, पर वस्तुतः उनका क्रम इस प्रकार है- 'सतां संप्रयोगे सति आत्मनोऽक्षाणां बुद्धिजन्म प्रत्यक्षम् ' विद्यमान वस्तुओंके सम्बन्ध होनेपर आत्माको इन्द्रियोंके द्वारा जो बुद्धि उत्पन्न होती है वह प्रत्यक्ष है । यद्यपि 'सतः' ऐसा एकवचनका प्रयोग करनेसे भी वर्तमान पदार्थोंसे इन्द्रियोंके सन्निकर्षका सूचन हो सकता था फिर भी 'सताम्' यह बहुवचनका प्रयोग इस बात की खास सूचना देता है कि — कभी-कभी, कहीं-कहीं बहुत पदार्थोंके साथ भी इन्द्रियोंका सम्बन्ध होता है । जैमिनिका प्रत्यक्षसूत्र यह है - "सत्संप्रयोगे सति पुरुषस्येन्द्रियाणां बुद्धिजन्म तत्प्रत्यक्षम् " विद्यमान वस्तुसे इन्द्रियोंका सम्बन्ध होनेपर पुरुषको जो ज्ञान उत्पन्न होता है उसे प्रत्यक्ष कहते हैं ।
१. च प्राह भ. २ । २. नि जै-म. २ । ३. श्लोकेऽनुबन्धानु-म. २ । ४ – नि प्रयोगे भ. १, २, प. १, २, क. । ५. इन्द्रियसं - म २ ।
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