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४४० षड्दर्शनसमुच्चये
[का०७३.६५३०६५३०. अयमत्र भावः-यद्विषयं विज्ञानं तेनेवार्थेन संप्रयोगे इन्द्रियाणां प्रत्यक्षम, प्रत्यक्षाभासं त्वन्येसंप्रयोगजं यथा मरुमरीचिकादिसंप्रयोगजं जलादिज्ञानमिति । अथवा सेत्संप्रयोगजत्वं विद्यमानोपलम्भनत्वमुच्यते । तत्र सति-विद्यमाने सम्यक्प्रयोगः अर्थेष्विन्द्रियाणां व्यापारो योग्यता वा, न तु नैयायिकाभ्युपगत एव संयोगादिः। तस्मिन्सति शेषं प्राग्वत् । इतिशब्दः प्रत्यक्षलक्षणसमाप्तिसूचकः।
$ ५३१. अथानुमानं लक्षयति पुनःशब्दस्य व्यस्तसंबन्धात् । अनुमान पुनलैंङ्गिकम् लिङ्गाङ्कितं लैङ्गिकम्। लिङ्गाल्लिङ्गिजानमनुमानमित्यर्थः । तत्रेदमनुमानलक्षणस्य सूचामात्रमुक्तम् । संपूर्ण त्वित्यं तल्लक्षणम् "ज्ञातसंबन्धस्यैकदेशदर्शनादसंनिकृष्टेऽर्थे बुद्धिरनुमानम्" [ शाबर भा. १११] इति शाबरमनुमानलक्षणम्। व्याख्या-अवगतसाध्यसाधनाविनाभावसंबन्धस्य पुंस एकदेशस्य साधनस्य दर्शनादसंनिकृष्टे परोक्षेऽर्थे बुद्धिर्ज्ञानमनुमानमिति ॥७३॥ ६५३२. अथ शाब्दमाह
शाब्दं शाश्वतवेदोत्थमुपमानं तु कीर्तितम् ।
प्रसिद्धार्थस्य साधादप्रसिद्धस्य साधनम् ॥७४। ६५३३. व्याख्या-शाश्वतः अपौरुषेयत्वान्नित्यो यो वेदः तस्मादुत्या उत्थानं यस्य तच्छा. श्वतवेदोत्थम् । अर्धा दशब्दजनितं ज्ञानं शाब्दं प्रमाणम् । अस्येवं लक्षणम् - "शब्दज्ञानादसंनि
६५३०. भावार्थ-जिस पदार्थका ज्ञान होता है उसी अर्थसे इन्द्रियोंका सम्बन्ध होनेपर प्रत्यक्ष होता है । अन्य पदार्थसे सम्बन्ध होनेपर अन्य पदार्थका ज्ञान होना प्रत्यक्षाभास है जैसे मरुस्थलकी रेत और सूर्यको किरणों आदिसे सम्बन्ध होनेपर उत्पन्न होनेवाले भ्रान्त जल ज्ञान आदि । अथवा, सत्सम्प्रयोगजका अर्थ है विद्यमान पदार्थोंकी उपलब्धि करनेवाला। विद्यमान पदार्थमें इन्द्रियोंके सम्यक् प्रयोग-व्यापार या योग्यताको सत्सम्प्रयोग कहते हैं न कि नैयायिकके द्वारा माने गये संयोग आदि सन्निकर्षोंको हो । श्लोकमें आया हुआ 'इति' शब्द प्रत्यक्षके लक्षणको समाप्तिका सूचक है।
६५३१. पुनः शब्द पहले कहे गये अनुमानका सूचन करता है। लिंगसे उत्पन्न होनेवाले लैंगिक ज्ञानको अनुमान कहते हैं । लिंगसे लिंगी-साध्यका ज्ञान अनुमान है । यह अनुमानके लक्षण की साधारण सूचना है। पूरा लक्षण तो शाबर भाष्य में इस प्रकार बताया है-'ज्ञातसंबन्धस्यैकदेशदर्शनादसंनिकृष्टेऽर्थे बुद्धिरनुमानम्'-साध्य और साधनके अविनाभावका यथार्थ परिज्ञान रखनेवाले पुरुषको एकदेश-साधनके देखनेसे असन्निकृष्ट-परोक्ष साध्य अर्थका ज्ञान होना अनुमान कहलाता है ॥७३॥
६५३२. अब आगमका लक्षण कहते हैं -
नित्य वेदसे उत्पन्न होनेवाले ज्ञानको शाब्द-आगम कहते हैं। प्रसिद्ध अर्थको सदृशतासे अप्रसिद्धकी सिद्धि करना उपमान है ॥७४॥
$ ५३३. शाश्वत-अपौरुषेय नित्य वेदसे उत्पन्न होनेवाला, अर्थात् वेदके शब्दोंसे होनेवाला ज्ञान शाब्द प्रमाण है। शाबरभाष्यमें शब्दका यह लक्षण किया है-'शब्दज्ञानादसंनिकृष्टेऽर्थे
१. -संयोगजं म. १, २, प. १, २। २. सत्प्रयोग--भ. २। ३. व्यस्तं-भ. । ४.-कं यल्लिगिज्ञानमनु-भ. २। ५. सूत्रामात्र-प. १, २, सूत्रमात्र-म, २। ६. -कृष्टे परोक्षेऽर्थे बुद्धिरनुमानलक्षणम् भ. २ । ७. परोक्षार्थे म. २ ।
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