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________________ - का० ६४. ६ ४९१] वैशेषिकमतम् । $ ४८८. वर्ग: पृथिव्यप्तेजोवायुमनःसु मूर्तिमद्रव्येषु प्रयत्नाभिघातविशेषापेक्षाकर्मणः समुत्पद्यते, नियतदिक्रियाकार्यप्रबन्धहेतुः स्पर्शवद्व्यसंयोगविरोधी च। तत्र शरीराविप्रयत्नाविर्भूतकर्मोत्पन्नवेगवशादिषोरपान्तरालेऽपातः, सच नियतदिक्रियाकार्यसंबन्धोन्नीयमानसद्भावः। लोष्टाद्यभिघातोत्पन्नकर्मोत्पाद्यस्तु शाखादौ वेगः। $४८९. केचित्तु संस्कारस्य त्रिविधस्य भेवतया वेगं प्राहुः। तन्मते चतुविशतिरेव गुणाः । शौर्योदार्यकारुण्यदाक्षिण्योन्नत्यादीनां च गुणानामेष्वेव प्रयत्नबुद्धचादिषु गुणेष्वन्तर्भावान्नाधिक्यम् । ६४९०. स्पर्शादीनां गुणानां सर्वेषां गुणत्वाभिसंबन्धो द्रव्याश्रितत्वं निष्क्रियत्वमगुणत्वं च। तथा स्पर्शरसगन्धरूपपरत्वापरत्वगुरुत्वद्रवत्वस्नेहवेगा मूर्तगुणाः। बुद्धिसुखदुःखेच्छाधर्माधर्मप्रयत्न. भावनाद्वेषशब्दा अमूर्तगुणाः । संख्यापरिमाणपृथक्त्वसंयोगविभागा उभयगुणा इत्यादि गुणविषयं विशेषस्वरूपं स्वयं समवसेयम् ॥६३॥ ४९१. अथ कर्मव्याचिख्यासुराह उत्क्षेपावक्षेपावाकुश्चनकं प्रसारणं गमनम् । पञ्चविधं कमैतत्परापरे द्वे तु सामान्ये ।।६४॥ ४८८. पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और मन रूप मूर्त द्रव्योंमें प्रयत्नपूर्वक अभिघातटक्कर लगानेसे क्रिया होती है और क्रियासे वेग उत्पन्न होता है। इसी वेगके कारण फेंके गये पत्थर आदि निश्चित दिशामें ही जाते हैं इधर-उधर नहीं। यह वेग पदार्थोकी नियत दिशामें ही गति कराता है। किसी स्पर्शवाले पृथिवी आदि मूर्त पदार्थोंसे टकरानेके कारण वेग रुककर नष्ट हो जाता है। शरीर आदिकी चेष्टासे उत्पन्न होनेवाली क्रियासे बाणमें क्रिया और वेग उत्पन्न होता है। इस वेगके कारण बाण बीचमें नहीं गिरकर सीधा लक्ष्य तक पहुंच जाता है। धनुषको खींचकर जब बाण छोड़ा जाता है तब वह वेगके कारण लक्ष्य तक जा पहुंचता है। इस तरह बाण आदिको नियत दिशामें क्रिया होना ही वेगकी सत्ता सिद्ध कर देता है। पत्थर आदिकी चोटसे वृक्षोंको डालियोंमें क्रिया होकर वेग उत्पन्न होता है। ४८९. कोई आचार्य संस्कारके ही वेग, भावना और स्थितिस्थापक ये तीन भेद करते हैं, वेगको स्वतन्त्र गुण नहीं मानते। इनके मतसे चौबीस हो गुण हैं। शूरता उदारता करुणा कुशलता उन्नति आदिका इन्हीं प्रयत्न बुद्धि आदि गुणोंमें अन्तर्भाव हो जाता है अतः चौबीससे अधिक गुण नहीं हैं। ६४९०. स्पर्श आदि सभी गुणोंमें गुणत्वका समवाय है, ये सभी द्रव्याश्रित हैं, निष्क्रिय तथा निर्गुण हैं। स्पर्श रस गन्ध रूप परत्वापरत्व गुरुत्व द्रवत्व स्नेह और वेग ये मूर्त द्रव्योंके गुण हैं । बुद्धि सुख दुःख इच्छा धर्म अधर्म प्रयत्न भावना द्वेष और शब्द अमूर्त द्रव्योंके गुण हैं। संख्या परिमाण पृथक्त्व संयोग और विभाग ये मूर्त और अमूर्त दोनों ही द्रव्योंके खण्ड हैं। इस तरह गुणोंका विशेष स्वरूप स्वयं समझ लेना चाहिए ॥६॥ $४९१. अब कर्मपदार्थका व्याख्यान करते हैं- . ___ उत्क्षेपण अवक्षेपण आकुश्चन प्रसारण और गमन ये पाँच कर्म हैं। परसामान्य और अपरसामान्यके भेदसे दो प्रकारके सामान्य हैं ॥६४॥ १. वेगो मूर्तिमत्सु पञ्चसु...", -प्रश. मा. पृ. १३६ । २. मनोमूर्ति - भ. २। ३. प्रशस्तपादभाष्यकाराः।-प्रश. मा. पृ. १३६ । ४. कारुण्योग्रयादि-भ. २। ५. परिणाम - म २। ६. द्रष्टव्यम्-प्रश. भा. पृ३८-४३ । ७. "उत्क्षेपणमवक्षेपणमाकूञ्चनं प्रसारणं गमनमिति कर्माणि ।" -वशे. सू. १।११७ । ८. “सामान्यं द्विविधम् परमपरश्च ।"-प्रश. भा. पृ. १६० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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