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________________ षड्दर्शनसमुच्चये [ का० ५८. ६ ४३६मानोऽनेकस्वभावतायामेव भवति, तथा च पूर्वापरविरोधः सुबोधः।। ६४३६. अर्थवत्प्रमाणमित्यत्रार्थः सहकारी यस्य तदर्थवत्प्रमाणमित्यभिधाय योगिप्रत्यक्षमतीताद्यर्थविषयमभिदधानस्य पूर्वापरविरोधः स्यात्, अतीतादेः सहकारित्वायोगात्। ४३७. तथा स्मृतिगृहीतग्राहित्वेने न प्रमाणमिष्यते अनर्थजन्यत्वेन वा। गृहीतग्राहित्वेन स्मृतेरप्रामाण्ये धारावाहिज्ञानानामपि गृहीतग्राहित्वेनाप्रामाण्यप्रसङ्गः। न च धारावाहिज्ञानानामप्रामाण्यं नैयायिकवैशेषिकैः स्वीक्रियते, अनर्थजन्यत्वेन तु स्मृतेरप्रामाण्येऽतीतानागतादिविषयस्यानुमानस्याप्यनर्थजन्यत्वेनाप्रामाण्यं भवेत, त्रिकालविषयं ते चानुमानं शब्दवदिष्यते, धूमेन हि वर्तमानोऽग्निरनुमीयते मेघोन्नत्या भविष्यन्ती वृष्टिर्नदीपूरेण च सैव भूतेति, तदेवं धारावाहिज्ञानैरनुमानेन च स्मृतेः सादृश्ये सत्यपि यत्स्मृतेरप्रामाण्यं धारावाहिज्ञानादीनां च प्रामाण्यमिष्यते स पूर्वापरविरोधः। $४३८. ईश्वरस्य सर्वार्थविषयं प्रत्यक्ष किमिन्द्रियार्थसंनिकर्षनिरपेक्षमिष्यत आहोस्विदिन्द्रियार्थसंनिकर्षोत्पन्नम् । यदीन्द्रियार्थसंनिकर्षनिरपेक्षं तदेन्द्रियार्थसंनिकर्षोत्पन्नं ज्ञानमव्यपदेश्यतथा ज्ञान और आत्माका समवाय एकस्वभाववाला नहीं हो सकता। भिन्न समवायियोंमें नियमपूर्वक सम्बन्धव्यवस्था करनेवाला समवाय एक स्वभाववाला रह ही नहीं सकता, अन्यथा सभीमें एक ही प्रकारका समवाय होगा। पर घट और रूपका समवाय आत्मा और ज्ञानके समवायसे जुदा ही है। ४३६. 'प्रमाण अर्थवाला होता है यहां 'अर्थवत्' की व्याख्या यह की गयी है कि'चूंकि प्रमाण ज्ञानमें अर्थ सहकारी कारण होता है अतः प्रमाण अर्थवाला कहा जाता है।' इस तरह अर्थकारणतावादको स्वीकार करके भी योगियोंके प्रत्यक्षको अतीत और अनागत आदि विनष्ट और अनुत्पन्न पदार्थों का विषय करनेवाला मानना स्पष्ट ही स्ववचन विरोध है । अतीतादिपदार्थ तो असत् होनेके कारण योगिज्ञानमें सहकारी कारण हो ही नहीं सकते। अर्थकारणतावादका अतीतादिपदार्थोके ज्ञानके साथ सीधा विरोध है। ४३७. आप यह बताइए कि स्मृति अप्रमाण क्यों है क्या वह गृहीत-जाने गये पदार्थको जानती है या वह पदार्थसे उत्पन्न नहीं होती-अनर्थज है ? यदि गृहीतग्राही होनेसे स्मृति अप्रमाण है; तो 'यह घड़ा है यह घड़ा है' इस प्रकारके एक सरोखे धारावाही ज्ञानोंको भी अप्रमाण कहना होगा। पर नैयायिक और वैशेषिक धारावाही ज्ञानोंको प्रमाण मानते हैं । यदि पदार्थसे उत्पन्न न होनेके कारण स्मृति अप्रमाण हो; तो अतीत और अनागतपदार्थों के अनुमान भी अप्रमाण हो जायेंगे। अतीत और अनागत पदार्थ विनष्ट तथा अनुत्पन्न होनेसे असत् हैं, अतः उससे अनुमानको उत्पत्ति नहीं हो सकती। नैयायिक और वैशेषिक आगमकी तरह अनुमानको भी त्रिकालविषयक मानते हैं। धूमसे मौजूदा वर्तमान अग्निका अनुमान होता है, विशिष्ट काले घने मेघोंको देखकर आगे होनेवाली वर्षाका अनुमान किया जाता है तथा नदीके पूरको देखकर अतीत वृष्टिका अनुमान होता है। इस तरह धारावाही ज्ञान तथा अनुमानसे अस्मृतिकी पूरी-पूरी समानता है, फिर भी धारावाही ज्ञान और अनुमानको प्रमाण माना जाना तथा स्मृतिको अप्रमाण, यह स्ववचनविरोध या मूर्खतापूर्ण पक्षपात ही है। $४३८. यह बताइए कि आप लोग सब पदार्थों को जाननेवाला ईश्वरके प्रत्यक्षकी इन्द्रिय और पदार्थके सन्निकर्षसे उत्पत्ति मानते हैं, या सन्निकर्षके बिना ही ? यदि ईश्वरका प्रत्यक्ष सन्निकर्षके बिना ही हो जाता है, तो 'इन्द्रिय और पदार्थके सन्निकर्षसे उत्पन्न होनेवाले, अव्यप १.-स्वेन प्रामा-म. २, प. १, २ । २. -न स्मृतेः भ. २, प. २ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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