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षड्दर्शनसमुच्चये
[का० ५८.६४२१$ ४२१. तथाहि प्रथमं तावत्ताथागतसंमते मते पूर्वापरविरोष उद्भाव्यते। पूर्व सर्व क्षण. भङ्गारमभिधाय पश्चादेवमभिदधे "नाननुकृतान्वयव्यतिरेक कारणं, नाकारणं विषयः"[ ] इति। अस्यायमर्थः-ज्ञानमर्थे सत्येवोत्पद्यते न पुनरसतीत्यनुकृतान्वयव्यतिरेकोऽर्थो ज्ञानस्य कारणम् । यतश्चाज्जानमुत्पद्यते तमेव तद्विषयीकरोतीति । एवं चाभिदधानेनार्थस्य क्षणद्वयं स्थितिरभिहिता। तद्यथा-अर्थात्कारणाज्ज्ञानं कार्य जायमानं द्वितीये क्षणे जायते न तु समसमये कारणकार्ययोः समसमयत्वायोगात् । तच्च ज्ञानं स्वजनकमेवार्थ गृह्णाति नापरम् "नाकारणं विषयः" [ ] इति वचनात् । तथा चार्थस्य क्षणद्वयं स्थितिर्बलादायाता सा च क्षणक्षयेण विरुद्धति पूर्वापरविरोधः।
६४२२. तथा नाकारणं विषय इत्युक्त्वा योगिप्रत्यक्षस्यातीतानागतादिरप्यों विषयोऽभ्यधायि । अतीतानागतश्च विनष्टानुत्पन्नत्वेन तस्य कारणं न भवेत् । अकारणमपि च तं विषयतयाभिवधानस्य पूर्वापरविरोधः स्यात् ।
६४२३. एवं साध्यसाधनयोाप्तिग्राहकस्य ज्ञानस्य कारणत्वाभावेऽपि त्रिकालगतमर्थ
६ ४२१. सबसे पहले हम बौद्धमतको कुछ असम्बद्ध तथा पूर्वापर विरुद्ध बातोंका वर्णन करते हैं । बौद्ध एक ओर तो संसारके समस्त पदार्थोंको क्षणभंगुर मानते हैं और दूसरी ओर क्षणिकताके विरुद्ध भी बोल जाते हैं। वे कहते हैं कि-"जो पदार्थ कार्यके साथ अन्वय और व्यतिरेक नहीं रखता वह कारण नहीं हो सकता, जो ज्ञान कारण नहीं होता वह ज्ञानका विषय भी नहीं हो सकता।" ज्ञान पदार्थके रहनेपर ही उत्पन्न होता है न कि पदार्थके अभावमें। अत: ज्ञानके साथ अन्वयव्यतिरेक रखनेके कारण पदार्थ ज्ञानमें कारण होता है । जिस पदार्थसे जो ज्ञान उत्पन्न होता है वह उसी पदार्थको जानता है। इस तरह उसी पदार्थको ज्ञानका कारण तथा उसी पदार्थको ज्ञानका विषय माननेके लिए पदार्थकी दो क्षण तक स्थिति माननी आवश्यक है। देखो, पदार्थ ज्ञानका कारण है । कार्य कारणके दूसरे क्षणमें उत्पन्न होता है तथा कारण कार्यसे एक क्षण पहले रहता है। अतः यदि ज्ञान पदार्थरूप कारणसे उत्पन्न होता है तो वह दूसरे क्षणमें हो उत्पन्न होगा। पदार्थ ज्ञानको अपने समान समयमें तो उत्पन्न नहीं कर सकता, क्योंकि कार्य और कारण समान समयवर्ती नहीं होते, वे नियमसे आगे-पीछे-पूर्वोत्तर कालवर्ती होते हैं। यह भी नियत है कि ज्ञान अपने कारणभूत पदार्थको ही जानता है। "जो ज्ञानका कारण नहीं है वह ज्ञानका विषय नहीं होता" यह उन्हींका वचन है । तब वही अर्थ कारण होनेसे तो ज्ञानसे एक क्षण पहले रहेगा और विषय होने के कारण ज्ञानके साथ रहेगा। इस तरह पदार्थको दो क्षण तक जबरदस्ती ठहरना ही पड़ेगा। पदार्थों को दो क्षण तक स्थिति माने बिना उन्हें ज्ञानका विषय नहीं बना सकते। इस तरह एक ओर तो पदार्थकी दो क्षण तक स्थिति मानना और दूसरी ओर संसारको क्षणिक कहना सरासर विरोधी बातें हैं।
६४२२. 'जो ज्ञानके कारण नहीं वे ज्ञानके विषय भी नहीं' इस नियमके अनुसार तो त्रिकालवर्ती यावत् पदार्थोंको जाननेवाले योगियोंके ज्ञानमें अतीत अनागत और वर्तमान सभी पदार्थों को कारण मानना ही होगा। अब विचार कीजिए कि जब अतीत तो अतीत हैं विनष्ट हो चुके हैं तथा अनागत आये नहीं हैं, उत्पन्न ही नहीं हुए हैं तब वे योगिज्ञानमें कारण कैसे हो सकते हैं । यदि अतीत और अनागत पदार्थ योगिज्ञानमें कारण न होकर भी उसके विषय माने जाते हैं तो उक्त नियमका विरोध होनेसे स्पष्ट ही पूर्वापर विरोध है।
5 ४२३. इसी तरह त्रिकालवर्ती साध्य और साधनोंको जाननेवाले व्याप्ति ग्राहक ज्ञानमें
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