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________________ ३४० षड्दर्शनसमुच्चये [का. ५५. ६३४९ - ६३४९. ननु नास्तित्वमभावोऽभावश्च तुच्छरूपस्तुच्छेन च सह कथं संबन्धः, तुच्छस्य सकलशक्तिविकलतया संबन्धशक्तेरप्यभावात् । अन्यच्च, यदि परपर्यायाणां तत्र नास्तित्वं तर्हि नास्तित्वेन सह संबन्धो भवतु, परपर्यायैस्तु सह कथं संबन्धः, न खलु घटः पटाभावेन संबद्धः पटेनापि सह संबद्धो भवितुमर्हति, तथाप्रतीतेरभावात, तदेतदसमीचीनं, सम्यावस्तुतत्त्वापरिज्ञानात्, तथाहि-नास्तित्वं नाम तेन तेन रूपेणाभवनमिष्यते तेन तेन रूपेणाभवनं च वस्तुनो धर्मः ततो नैकान्तेन तत्तुच्छरूपमिति न तेन सह संबन्धाभावः। तेन तेन रूपेणाभवनं च तं तं पर्यायमपेक्ष्यैव भवति नान्यथा, तथाहि-यो यः पटादिगतः पर्यायः तेन तेन रूपेण मया न भवितव्यमिति सामर्थ्याद् घटस्तं तं पर्यायमपेक्ष्यते इति सुप्रतीतमेतत्, ततस्तेन तेन पर्यायेणाभवनस्य तं तं पर्यायमपेक्ष्य संभवात्तेऽपि परपर्यायास्तस्योपयोगिन इति तस्येति व्यपदिश्यन्ते । एवंरूपायां च विवक्षायां पटोऽपि घटस्य संबन्धी भवत्येव, पटमपेक्ष्य घटे पटरूपेणाभवनस्य भावात्, तथा च लौकिका अपि घटपटादीन् परस्परमितरेतराभावमधिकृत्य संबद्धान् व्यवहरन्तीत्यविगीतमेतत् । इतश्च ते पर्यायास्तस्येति व्यपदिश्यन्ते, स्वपर्यायविशेषणत्वेनं तेषामुपयोगात् । इह ये यस्य स्वपर्यायविशेषकत्वेनोपयुज्यन्ते तेतस्य पर्यायाः, यथा घटस्य रूपादयः पर्यायाः परस्परविशेषकाः। तो अवश्य ही लोकविरोध होता है, परन्तु हम तो उनका नास्तित्व ही घड़ेमें बतला रहे हैं। दरिद्र और धनका भी नास्तित्व रूपसे सम्बन्ध है ही। संसारमें सभी लोग कहते ही हैं कि 'इस दरिद्रके धन नहीं है' अर्थात् धन और दरिद्रका अस्तित्व रूप सम्बन्ध न होकर नास्तित्वरूप सम्बन्ध है । इसी तरह परपर्यायोंका भी पदार्थके साथ अस्तित्वरूप सम्बन्ध न होकर नास्तित्वरूपसे ही सम्बन्ध माना जाता है । परपर्याय अस्तित्वरूपसे उसकी न कही जायें पर नास्तित्वरूपसे तो वे उसकी कही ही जा सकती हैं । और नास्तित्वरूपसे परपर्यायोंका वस्तुमें सम्बन्ध माननेसे किसी भी लोकव्यवहारका विरोध नहीं होता। $ ३४९. शंका-नास्तित्व तो अभावको कहते हैं, अभाव तो तुच्छ या नीरूप होता है, उसका कोई भी वास्तविक स्वरूप नहीं होता, अतः उस तुच्छ अभावके साथ वस्तुका सम्बन्ध कैसे माना जा सकता है ? निःस्वरूप अभाव तो समस्त शक्तियोंसे रहित होता है, उसमें वस्तुके साथ सम्बन्ध रखनेको भी शक्ति नहीं होती। यदि घड़ेमें परपर्यायोंका नास्तित्व है तो नास्तित्व नामके धर्मसे घड़ेका सम्बन्ध माना जा सकता है न कि परपर्यायोंके साथ। यदि पटका अभाव घड़ेमें रहता है-पटके नास्तित्वसे घड़ेका सम्बन्ध है तो इससे पटसे भी घड़ेका सम्बन्ध कैसे कहा जा सकता है ? कहीं भी ऐसी प्रतीति नहीं होती कि जिस पदार्थका अभाव जिसमें पाया जाता है वह पदार्थ भी उसमें पाया जावे । घड़ेका अभाव भूतल में पाया जायेगा? __समाधान-आपकी शंका बिलकुल मिथ्या है, आपने वस्तुके तत्त्वको ठीक तरह नहीं समझा । 'जो-जो पट आदिकी पर्यायें हैं उस रूपसे मुझे परिणमन नहीं करना चाहिए' इस रूपसे ही घड़ा उन-उन पटादिको पर्यायोंकी अपेक्षा करता है न कि उन पटादिपर्याय रूपसे अपना परिणमन करनेके लिए। यह बात तो सर्व प्रसिद्ध है। उन पटादिपर्याय रूपसे अपना परिणमन नहीं होने देना उन पर्यायोंकी अपेक्षा रखकर ही हो सकता है। अतः उस रूपसे परिणमनके निषेधके लिए ही वे परपर्यायें घड़ेके उपयोगी हैं। और इसी उपयोगिताके कारण ही वे घड़ेकी पर्यायें १. संबन्ध न श-म. १, २, प. १,३। २. -पर्ययैस्तु म.२। ३. संबन्धः म.२। ४. संबन्धो भ. २, आ., क.। ५. रूपेण भवन- भ. २।६. पर्यय-भ. २। ७. पर्यया-म. २। ८. पर्यया-म. २ । ९.-विशेषकत्वेन - भ.२।१०.-यः पर भ.३। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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