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________________ -का० ५५. ६ ३३४] जनमतम् । ३३५ कर्मबन्धचित्तादिसंस्कारक्रोधाभिमानमायालोभरागद्वेषमोहाद्युपाधिद्रव्यत्वलुठनपतनादिवेगादीनां कारणत्वेने सुखादीनामकारणत्वेन वा घटस्यानन्तधर्मत्वम् । ६३३१. स्नेहगुरुत्वे तु पुरापि स्पर्शभेवत्वेन प्रोचाने । $३३२. कर्मतश्चोत्क्षेपणावक्षेपणाकुश्चनप्रसारणभ्रमणस्यन्दैनरेचनपूरणचलनकम्पनान्यस्थानप्रापणजलाहरणजलादिधारणादिक्रियाणां तत्तत्कालभेदेन तरतमयोगेन 'वानन्तानां हेतुत्वेन घटस्यानन्ताः क्रियारूपाः स्वधर्माः, तासां क्रियाणामहेतभ्योऽन्येभ्यो व्यावत्तत्वेनानन्ताः परधर्माश्च । $३३३. सामान्यतः पुनः प्रागुक्तनीत्यातीतादिकालेषु ये ये विश्ववस्तूनामनन्ताः स्वपरपर्याया भवन्ति तेष्वेकद्विव्याधनन्तपर्यन्तधर्मैः सदृशस्य 'घटस्थानन्तभेदस्यानन्तभेवसादृश्यभावेनानन्ताः स्वधर्माः। ६३३४. विशेषतश्च घटोऽनन्तद्रव्येष्वपरापरापेक्षयैकेन द्वाभ्यां त्रिभिर्वा याववनन्तैर्वा धर्मविलक्षण इत्यनन्तप्रकारवैलक्षण्यहेतुका अनन्ताः स्वधर्माः, अनन्तद्रव्यापेक्षया च घटस्य स्थूलताक्रोध, किसीको मान, किसीको माया तथा किसीको लोभ होता है, इस तरह भिन्न-भिन्न व्यक्तियोंको क्रोध मान माया लोभ राग द्वेष मोह आदि विकारोभावोंकी उत्पत्तिमें निमित्त होनेसे लुढ़कना गिरना वेग आदिमें कारण होनेसे, अथवा किसीके सुख आदिमें निमित्त न होनेके कारण भी अनन्त स्वभाववाला होता है। ३३१. चिकनापन और भारीपन तो स्पर्शके ही भेद हैं अतः स्पर्शका वर्णन करते समय इनकी अपेक्षा स्व-परपर्यायोंका निरूपण कर दिया गया है। $३३२. क्रियाकी दृष्टिसे वही सोनेका घड़ा ऊपर फेंका जा सकता है, नीचे पटका जा सकता है, मोड़ दिया जा सकता है, फैलाया जा सकता है तथा इधर-उधर अनेक तरहसे चलाया जा सकता है, वह चू सकता है, वह खाली भी रहता है, भरा भी जाता है, यहांसे वहां पहुंचाया जाता है, हिलता है, पानी भरनेके काम आता है, उसके द्वारा कुएंसे पानी भी खींचा जाता है-इस तरह असंख्य क्रियाओंका कारण होनेसे अनेक स्वभाववाला है । तथा इन्हीं क्रियाओंके तीनों काल और जोरसे धीरेसे मध्यमरूपसे इत्यादि तरतमभावोंसे अनन्त भेद हो सकते हैं। वह घड़ा इन अनन्त क्रियाओंका कारण होता है अतः वह घड़ा अनन्त क्रियावाला होनेसे अनन्तधर्मवाला है। ये सब उसके स्वधर्म हैं तथा इन क्रियाओंमें जो पदार्थ कारण नहीं होते उन सबसे व्यावृत्त होनेके कारण उसमें अनन्त ही परधर्म हैं। ६३३३. पहले जितने प्रकारके स्वधर्म या परधर्म कहे गये हैं उन सबमें प्रकृत घड़ा अन्य घड़ोंसे एक दो तीन आदि अनन्तधर्मोसे समानता रखता है, घड़ोंसे ही क्या, अन्य पदार्थोंसे भी घड़ेकी एक दो आदि सैकड़ों धर्मोंसे समानता पायी जाती है। अतः सादृश्य रूपी सामान्यकी दृष्टिसे घड़ेके अनन्त ही सदृशपरिणमन रूप स्वभाव हो सकते हैं। इस प्रकार सामान्यकी अपेक्षा घड़ेमें स्वपर्याय तथा उससे भिन्न धर्मों की अपेक्षा परपर्याय विचारनी चाहिए। ६३३४. इसी तरह यह घड़ा अन्य अनन्त ही द्रव्योंसे एक दो तीन आदि अनन्त ही धर्मों की अपेक्षा विलक्षण है उनसे व्यावृत्त होता है अतः उसमें अन्य पदार्थोंसे विलक्षणता करानेवाले अनन्त ही धर्म विद्यमान हैं और इसीलिए वह विशेष विलक्षणताकी दृष्टिसे भी अनन्त स्वभाववाला है। अनन्त ही द्रव्योंकी अपेक्षा इस घड़ेमें किसीकी अपेक्षा मोटापन तो किसीकी १. -हाग्न्युपा भ. १, २, प. १, २, क. । २. -न तेषामकारणत्वेन वा भ. ., २, प. १, २ । ३.- स्पन्दनदवनरेचन म.२। स्पन्दनपूरण-प. १,२ । ४. -णाविक्रि-म. २।५. चान-म, २। ६. नाभेदसादृश्य -अ., आ., क.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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