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________________ mmmmmm ३२६ षड्दर्शनसमुच्चये [ का० ५५. ६ ३१९ - कचूततः पुष्पिताः शेषचूताः, शशाङ्कोवयात् समुद्रवृद्धिः, सूर्योदयात् पद्माकरबोधः, वृक्षात्च्छाया चैते पक्षधर्मताविरहेऽपि सर्वजनैरनुमीयन्ते । कालाविकस्तत्र धर्मी समस्त्येवेति चेत् । न; अतिप्रसङ्गात् । एवं हि शब्दस्यानित्यत्वे साध्ये काककादिरपि गमकत्वप्रसक्तेः, लोकादेमिणस्तत्र कल्पयितुं शक्यत्वात् । अनित्यः शब्दः धावणात, मझातायम् एवंविधस्वरान्यथानुपपत्तेः, सर्व नित्यमनित्यं वा सत्त्वादित्यादिषु सपक्षे सत्त्वस्याभावेऽपि गमकत्वदर्शनाच्चेति।। सफल अनुमान कराते हैं। जैसे-'आकाशमें चन्द्रमा उग आया है क्योंकि जलमें उसका प्रतिबिम्ब पड़ रहा है' इस अनुमानमें जलमें पड़ा हुआ चन्द्रका प्रतिबिम्ब रूप हेतु, 'रोहिणी नक्षत्र एक मुहूर्तके बाद उदय होगा क्योंकि अभी कृत्तिका नक्षत्रका उदय हो रहा है। इसमें कृतिकोदय हेतु, 'सभी आमोंमें बौर आ गये हैं क्योंकि वे आम हैं जैसे कि यह बोरवाला आम' इसमें पुष्पित आम्रत्वं हेतु, 'समुद्र में ज्वारभाटा आ रहा है क्योंकि चन्द्रका उदय हो रहा है' इसमें चन्द्रोदय हेतु, 'कमल खिल गये क्योंकि सूर्यका उदय हो गया है' इसमें सूर्योदय हेतु, 'छाया पड़ रही है क्योंकि धूप भी है और वृक्ष भी' यहाँ वृक्षत्व हेतु, इत्यादि अनेक हेतुओंमें पक्षधर्मत्व नहीं पाया जाता, ये हेतु अपने पक्षमें नहीं रहते फिर भी अविनाभावके कारण सच्चे हेतु हैं। देखो कृत्तिके दय हेतु शकट रूप पक्षमें नहीं पाया जाता, इसी तरह चन्द्रोदय हेतु समुद्र रूप पक्षमें नहीं रहता फिर भी अविनाभावी होनेसे अपने साध्यका यथार्थ अनुमान कराते ही हैं। शंका-कृतिकोदय हेतुमें आकाश या कालको धर्मी बनाकर पक्षधर्मता घटायी जा सकती है । जैसे काल या आकाश एक मुहूर्तमें रोहिणीके उदयसे युक्त होगा क्योंकि अभी उसमें कृत्तिकाका उदय हो रहा है। __समाधान-इस तरह व्यापक चीजोंको पक्ष बनानेको परम्परा कायम की जायेगी और इसके बलपर हेतुको सच्चा माना जायेगा; तो बड़ी गड़बड़ हो जायेगी। संसारमें कोई भी हेतु पक्षधर्मसे रहित नहीं हो सकेगा। 'शब्द अनित्य है क्योंकि कौआ काला है' यह पक्षधर्मसे रहित हेतु भी लोकको धर्मी मानकर पक्षधर्मवाला बनाया जा सकेगा-लोक अनित्यशब्दवाला है क्योंकि उसमें काला कोआ पाया जाता है। अतः काल आकाश आदि तटस्थ व्यापक पदार्थोंको धर्मी मानकर किसीमें पक्षधर्मत्व सिद्ध करना केवल कल्पना जाल है। इसमें अतिप्रसंग-अव्यवस्था नामका दूषण होता है । 'शब्द अनित्य है क्योंकि वह सुना जाता है' 'यहाँ मेरा भाई है क्योंकि इस प्रकारको आवाज भाईके बोले बिना नहीं आ सकती' 'समस्त पदार्थ नित्य वा अनित्य हैं १.-धर्मतो विरहेऽपि म. २ । “नो हि शकटे धर्मिणि उदेष्यतायां साध्यायां कृत्तिकाया उदयोऽस्ति तस्य कृत्तिकाधर्मत्वात् ततो न पक्षधर्मत्वम् ।"-प्रमाणप. पृ. ७१। न्यायकुमु. प. ४४.। प्रमेयक. प. ३५४ । स्या. र. पृ. ५१९ । प्रमेयर. ३।१५। प्रमाणमी. पृ. ४० । २. "तथा न चन्द्रोदयात् समुद्रवृद्धअनुमानं चन्द्रोदयात् (पूर्व पश्चादपि ) तदनुमानप्रसङ्गात्। चन्द्रोदयकाल एव तदनुमानं तदैव व्याप्तेगुहीतत्वादिति चेत, यद्येवं तत्कालसंबन्धित्वमेव साध्यसाधनयोः, तदा च स एव कालो धर्मी तत्रैव च साध्यानुमानं चन्द्रोदयश्च तत्संबन्धीति कथमपक्षधर्मत्वम् ।"-प्रमाणवा. स्व. टी. १३। ३. "कालादिमिकल्पनायामतिप्रसङ्गः ।"-प्रमाणसं. पृ. १०४ । “यदि पुनराकाशं कालो वा धर्मी तस्योदेष्यच्छकटवत्त्वं साध्यं कृत्तिकोदयसाधनं पक्षधर्म एवेति मतम्, तदा धरित्रोधर्मिणी महोदध्याधाराग्निमत्त्वं साध्यं महानसधूमवत्त्वं साधनं पक्षधर्मोऽस्तु तथा च महानसधूमो महोदधौ अग्नि गमयेदिति न कश्चिदपक्षधर्मों हेतः स्यात।"-प्रमाणप. प. ७१ । तत्त्वार्थश्लो प. २०० । “काककायादेरपि प्रासादधावल्ये साध्ये जगतो धमित्वेन पक्षधर्मत्वस्य कल्पयितं सूशकत्वात् ।"-ग्यायकुमु. पृ. ११० । सन्मति.टी, पृ. ५९१ । स्या. र.पृ ५१९ । जनतर्कमा. पृ. १२। ४. “अनित्यः शब्दः श्रावणत्वात, सर्व क्षणिक सत्त्वात, इत्यादेः सपक्षे सत्त्वाभावेऽपि गमकत्वप्रतीतेः ।"-न्यायकुमु. ४४०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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