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________________ - का० ५५. ९ ३१७ ] जनमतम् । ३२३ मानागमभेदतस्तत्पञ्चधा' । संस्कारप्रबोधसंभूतमनुभूतार्थविषयं तदित्याकारं वेदनं स्मरणम्, यथा तत्तीर्थकरबिम्बमिति । अनुभवस्मरणकारणकं सङ्कलनं प्रत्यभिज्ञानम्, तदेवेदं तत्सदृशं तद्विलक्षणं तत्प्रतियोगीत्यादि, यथा स एवायं देवदत्तः गोसदृशो गवयः गोविलक्षणो महिषः इदमस्माद्दीर्घ ह्रस्वमणीयो महीयो बवीयो वा दूरादयं तीव्रो वह्निः सुरभीदं चन्दनमित्यादि । अत्रादिशब्दात् स एव वह्निरनुमीयते स एवानेनाप्यर्थः कथ्यत इत्यादि स्मरणसचिवानुमानागमादिजन्यं च संकलनमुदाहार्यम् । उपलम्भानुपलम्भसंभवं "त्रिकालीकलितसाध्यसाधनसंबन्धाद्यालम्बनमिदमस्मिन् सत्येव भवतीत्याद्याकारं संवेदनं तर्कः यथाग्नौ सत्येव धूमो भवति तदभावे न भवत्येवेति । २ प्रत्यभिज्ञान, ३ तर्क, ४ अनुमान, ५ आगम । पहले देखे गये पदार्थ के संस्कारके प्रबोधसे उत्पन्न होनेवाला, अनुभूत पदार्थको विषय करनेवाला, 'वह था' इत्यादि रूपमें 'वह' शब्दसे जिसका निरूपण होता है उस अविसंवादी ज्ञानको स्मरण कहते हैं । जैसे तीर्थंकरकी वह प्रतिमा कितनी मनोज्ञ थी । अनुभव और स्मरणसे उत्पन्न होनेवाले संकलन - ज्ञान पूर्व और उत्तर में एकत्व सादृश्य आदि रूपसे सम्बन्ध, या उन दोनोंके जोड़को प्रत्यभिज्ञान कहते हैं । यह प्रत्यभिज्ञान अनेक प्रकारका है। एकत्व प्रत्यभिज्ञान- यह वही है, जैसे यह वही देवदत्त है । सादृश्य प्रत्यभिज्ञान- यह उसके समान है, जैसे गायके सदृश गवय है । वैलक्षण्य प्रत्यभिज्ञान - यह उससे विलक्षण है, जैसे भैंस गायसे विलक्षण है । प्रतियोगि प्रत्यभिज्ञान - यह उसकी अपेक्षा दूर - समीप, छोटा-बड़ा इत्यादि रूपसे होता है । जैसे यह इससे लम्बा है, यह छोटा है, कम वजनका है, बहुत दूर है । अग्नि तेज है, चन्दन सुगन्धि है | आदि शब्दसे स्मरण और अनुमानके द्वारा तथा स्मरण और आगमसे होनेवाले संकलनका भी प्रत्यभिज्ञान में समावेश कर लेना चाहिए। जैसे 'यह उसी अग्निका अनुमान किया जा रहा है जिसे पहले देखा था' 'यह शब्द भी उसी अर्थको कह रहा है' । उपलम्भ और अनुपलम्भसे उत्पन्न होनेवाले त्रिकाल त्रिलोकवर्ती सभी साध्य साधनोंके सम्बन्धको विषय करनेवाला ज्ञान तर्क कहलाता है । 'साध्यके होनेपर ही साधन होता है' इस साध्य और साधनके सद्भावरूप अन्वयको जाननेवाला ज्ञान उपलम्भ कहलाता है । 'साध्यके अभाव में साधन नहीं होता' इस साध्य ओर साधनके अभावरूप व्यतिरेकको जाननेवाला ज्ञान व्यतिरेक कहलाता है । 'यह इसके होनेपर ही होता है, इसके अभाव में तो कभी भी नहीं होता' यह तर्क प्रमाणका आकार है । जैसे अग्निके होनेपर ही धूम होता है, अग्निके अभाव में तो कभी भी नहीं होता । इस तरह साधारण रूपसे संसार के समस्त अग्नि और घूमोंके अविनाभाव सम्बन्धको तर्क प्रमाण जान लेता है । T १. " प्रत्यक्षादिनिमित्तं स्मृतिप्रत्यभिज्ञानतर्कानुमानागमं भेदम् ।" - परीक्षामु, ३।२ । लघी, स्ववृ. इलो. १० । प्रमाणनय ३|१| प्रमाणमी. १।२।३ । २. - कारवेदनं भ २ । ३. संस्कारोद्बोधनिबन्धना तदित्याकारा स्मृतिः । स देवदत्तो तथा ।" परीक्षामु ३।३-४ । “तत्र संस्कारप्रबोधसंभूतमनुभूतार्थविषयं तदित्याकारं वेदनं स्मरणमिति । तत्तीर्थकर बिम्बमिति यथेति । " — प्रमाणनय ३।३-४ । प्रमागप. पू. ६९ । प्रमाणमी. १।२। ३ । ४. "दर्शनस्मरणकारणकं संकलनं प्रत्यभिज्ञानम् । तदेवेदं तत्सदृशं तद्विलक्षणं तत्प्रतियोगीत्यादि । यथा स एवायं देवदत्तः । गोसदृशो गवयः । गोविलक्षणो महिषः । इदमस्माद् दूरम् । वृक्षोऽयमित्यादि ।” परीक्षामु ३।५-१० । प्रमाणप. पू. ६९ । प्रमाणनय ३।४ - ६ । प्रमाणमी. ११२/४ । ५. - कालकलित - आ. क. । ६. “ उपलम्भानुपलम्भनिमित्तं व्याप्तिज्ञानमूहः । इदमस्मिन्सत्येव भवत्यसति न भवत्येवेति च । यथाग्नावेव धूमस्तदभावे न भवत्येवेति च ।" - परीक्षामु. ३१११ - १३ । “ उपलम्भानुपलम्भसंभवं त्रिकालीकलित साध्यसाधनसंबन्धाद्यालम्बन मिदम स्मिन्सत्येव भवतीत्याकारं संवेदनमूहापरनामा तर्क इति ।" - प्रमाणनय ३७ । प्रमाणसं. का. १२ । प्रमाणप. पृ. ७० । प्रमाणमी. ११२२५ | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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