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________________ -का० ५२.६२८०] जैनमतम् । ३०७ $ २७८. तथाल्पश्रुतत्वेनेति पक्षस्त्वनुद्घोष्य एव; मुक्त्यवाप्यानुमितविशिष्टसामर्थ्याषतुषादिभिरनेकान्तिकत्वात्, तन्न विशिष्टसामर्थ्यासत्त्वं स्त्रीणां घटते। $२७९. नापि पुरुषानभिवन्द्यत्वेन स्त्रीणां होनत्वम्, यतस्तदपि कि सामान्येन गुणाधिकपुरुषापेक्षया वा। आद्योऽसिद्धः, तीर्थकरजनन्यादयो हि शर्करपि पूज्यन्ते किमङ्ग शेषपुरुषैः। द्वितीयश्चेत् तदा गणधरा अपि तीर्थकरैर्नाभिवन्द्यन्त इति तेषामपि हीनत्वान्मोक्षो न स्यात् । तथा चतुर्वर्णस्य सङ्घस्य तीर्थकरैर्वन्द्यत्वात्सङ्घान्तर्गतत्वेन संयतीनामपि तीर्थकरवन्द्यत्वाभ्युपगमात्कथं स्त्रीणां हीनत्वम् । ६२८०. अथ स्मा(सा)रणाद्यकर्तृत्वेनेति पक्षः; तवाचार्याणामेव मुक्तिः स्यान्न शिष्याणां १२७८. इसी तरह श्रुतज्ञानकी अपूर्णता या अल्प श्रुतज्ञान होनेके कारण भी स्त्रियां हीन या मोक्षके अयोग्य नहीं हैं। अल्पश्रुत होनेको तो दरअसल आपको बात ही नहीं छेड़नी चाहिए, क्योंकि मोक्षके साथ पूर्ण श्रुतज्ञानकी कोई व्याप्ति नहीं है । जिन्हें केवल 'उड़दकी बिजी अलग है तथा ऊपरका छिलका अलग है' इतना ही भेदज्ञान था ऐसे माषतुष आदि मुनियोंने भी मोक्ष प्राप्त किया है। अतः श्रुतज्ञानको पूर्णता या अपूर्णताका मोक्षके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। मोक्ष जानेके लिए तो अन्तरंगको भाव श्रुतरूप विशिष्ट शक्ति चाहिए, सो स्त्रियों में हो ही सकती है। अतः अल्पश्रुत होनेसे मोक्ष नहीं जा सकनेका नियम माषतुषादिसे व्यभिचारी है। इस तरह विशिष्ट सामर्थ्यके अभावके कारण स्त्रियोंको हीन कहकर उन्हें मोक्ष जानेसे नहीं रोक सकते। $२७९. 'पुरुष उन्हें नमस्कार नहीं करते अतः वे हीन हैं' यह कथन भी युक्त नहीं है। क्योंकि स्त्रियां सामान्यरूपसे ही सब पुरुषोंके द्वारा अवन्द्य हैं या किसी अपनेसे विशिष्ट गुणी पुरुषके द्वारा। पहला पक्ष तो असिद्ध है; क्योंकि तीर्थंकरकी माता आदिको जब बड़े-बड़े इन्द्र भी आकर नमस्कार करते हैं तब अन्य साधारण मनुष्योंकी तो बात ही क्या। यदि अपनेसे अधिक गुणवालोंके द्वारा अवन्ध होनेके कारण स्त्रियां हीन हों और इसीलिए उनका मोक्षका दरवाजा बन्द होता है; तो तीर्थकर गणधरोंको भी नमस्कार नहीं करते अतः गणधर भी होन दरजेमें आकर मोक्ष जानेसे रोक दिये जाय। जब तीर्थकर मुनि, आर्या, श्रावक और श्राविका इन चारों प्रकारके संघको सामान्य रूपसे नमस्कार करते हैं, तब संघके अन्तर्गत साध्वी और श्राविकाएं भी तीर्थकरके द्वारा नमस्कृत हो ही जाता है, अतः स्त्रियोंको हीन क्यों समझा जाय? ६२८०. यदि स्त्रियां पढ़ा नहीं सकतीं या दूसरेको कर्तव्य या पाठका स्मरण नहीं करा १. -सत्त्वं घट-म. २ । २. "स्त्रीणां न निर्वाणपदप्राप्तिः, यतिगृहिदेववन्द्यपदाऽनहत्वात, नपुंसकादिवत् ।" न्यायकुम. पृ. ८७५। ३. तीर्थकरपरमेश्वरजनन्यादयो वज्रिभिरपि भ.२ । ४. शेषैः भ,२। ५. तीर्थकरपरमेश्वर-म. २। ६. तीर्थकरवन्ध-म.., २, प. १,२। ७. कथं हीनत्वं स्त्रीणाम् म. २१८. "अप्रतिवन्धत्वाच्चेत्संयतवर्गेण नायिकासिद्धिः । वन्दतां ता यदि ते नोनत्वं कल्प्यते तासाम् ।। सन्त्यूनाः पुरुषेभ्यस्ताः स्मारणचारणादिकारिभ्यः । तीर्थकराकारिभ्यो न च जिनकल्पादिरिति गणधरादीनाम् । अर्हन् न वन्दते न तावताऽसिद्धिरंगगते । प्राप्तान्यथा विमुक्तिः स्थानं स्त्रीपुंसयोस्तुल्यम् ॥"-स्त्रीमु. ३को. ३४-२६ । “अथ महाव्रतस्थपुरुषावन्द्यत्वात् न तासां मुक्त्यवाप्तिः, तहि गणधरादेरपि अहंदवन्धत्वात न मुक्त्यवाति: स्यात् ।"-सन्मति. टी. पृ. ७५४ । रस्नाकराव. ७५७ । शास्त्रवा. यशो. पृ. ४२९ A.। युक्तिप्र. पृ. ११४ । ९. "इतश्च तत्सिद्धम् यतः सारणवारणपरिचोदनादीनि स्त्रीणां पुरुषाः कुर्वन्ति न स्त्रियः पुरुषाणाम्, तीर्थकराकारधराश्च पुरुषा न स्त्रियः । उक्तं च"सारणवारणपरिचोयणणइ पुरिसा करेई रतहु इत्थी" -न्यायकु. पृ. ८७३ । “सारणा हिते प्रवर्तनलक्षणा कृत्यस्मारणलक्षणा वा, उपलक्षणत्वाद् वारणा अहितान्निवारणलक्षणा, चोयणा संयमयोगेषु स्खलितः सन्नयुक्तमेतद् भवादृशां विधातुमित्यादिवचनेन प्रेरणा, प्रतिचोदना तथैव पुनः-पुनः प्रेरणा।" पाच्छा , वृ. गा. १७ । ओघनि.टी.गा. १४८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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