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-का० ५२. ६२७६] जैनमतम् ।
३०५ तासां मुक्तिगामित्वं तत्रैवोच्यते, सामान्येन वा। यद्याद्यपक्षः; तहि पुरुषाणामपि यत्र जन्मनि मुक्तिगामित्वं तत्र सप्तमपृथ्वीगमनयोग्यत्वं', ततस्तेषामपि मुक्त्यभावः स्यात् । अथ द्वितीयः, तदायमाशयो भवतः, यथा सर्वोत्कृष्टपवप्राप्तिः सर्वोत्कृष्टेनाध्यवसायेन प्राप्यते, सर्वोत्कृष्टे च द्वे एव पदे सर्वदुःखस्थानं 'सप्तमी नरकपृथ्वी सर्वसुखस्थानं मोक्षश्च, ततो यथा स्त्रीणां सप्तमपृथ्वीगमनमागमे निषिद्धं तद्गमनयोग्यतथाविधसर्वोत्कृष्टमैनोवीर्याभावात्, एवं 'मोक्षोऽपि तधाविषशुभमनो. वीर्याभावान्न स्त्रीणां भविष्यति । प्रयोगश्चात्र-नास्ति स्त्रीषु मुक्तिकारणशुभमनोवीर्यपरमप्रकर्षः प्रकर्षत्वात् सप्तमपृथ्वीगमनकारणाशुभमनोवीर्यपरमप्रकर्षवत् तदेतदयुक्तम्; 'व्यातेरभावात् । न हि बहिर्व्याप्तिमात्रेण हेतुर्गमकः स्यात्, किं त्वन्ताप्त्या, अन्यथा तत्पुत्रत्वादेरपि गमकत्वप्रसङ्गः, अन्तर्व्याप्तिश्च प्रतिबन्धबलेनैव सिध्यति, न चात्र प्रतिबन्धो विद्यते, ततः संदिग्धसकती इसलिए उनमें विशिष्ट शक्तिका अभाव है या सामान्यरूपसे किसी भी जन्ममें वे सातवें नरक नहीं जा सकती? यदि उसी जन्ममें सातवें नरक नहीं जानेके कारण वे अशक्त समझी जाय; तो चरमशरीरी पुरुष भी तो जिस जन्मसे मोक्ष जाते हैं उसी जन्ममें सातवें नरक नहीं जाते अतः उन्हें भी असमर्थ करार दिया जाय तथा मोक्ष जानेके अयोग्य मान लिया जाय। एक ही जन्ममें वही व्यक्ति सातवें नरक भी जाय और मोक्ष भी यह तो असम्भव बात है।
दिगम्बर-हमारा अभिप्राय यह है कि सर्वोत्कृष्ट पदकी प्राप्ति सर्वोत्कृष्ट ध्यानसे ही होती है। सबसे ऊंचे दो ही पद हो सकते हैं-एक तो सबसे अधिक दुःखका स्थान सातवां नरक और दूसरा सबसे अधिक सुखका स्थान मोक्ष । तो जिस तरह आगममें स्त्रियोंको सातवें नरक जानेका निषेध है क्योंकि उनमें सातवें नरकको जाने के योग्य तीव्र मानसिक संक्लेश तथा उतनी हिम्मत नहीं होती, ठीक उसी तरह उनमें मोक्ष जानेके योग्य हिम्मत तथा शुभ मानसिक भाव नहीं होते अतः वे मोक्ष भी नहीं जा सकती। प्रयोग-स्त्री जातिमें मोक्ष जानेके कारण शुभ भाव तथा शक्तिको प्रकर्षता नहीं है, उनमें इतनी अधिक हिम्मत तथा तीव्र शुभभाव नहीं हैं, क्योंकि वह परम प्रकर्ष-सर्वोच्च दशा है जिस तरह सातवें नरक जाने में कारण तीव्र संक्लेश भाव तथा उतनी हिम्मत स्त्रियोंमें इसीलिए नहीं पायी जाती कि वह सर्वोच्चदशा है उसो तरह मोक्ष जानेके लायक शक्ति तथा सर्वोच्च विशुद्धभावोंके प्राप्त करनेकी योग्यता अबलाओंमें नहीं है।
श्वेताम्बर-आपका कथन अयुक्त है, क्योंकि वैसा नियम नहीं है। किसी दृष्टान्तमें हेतु और साध्यकी व्याप्ति मिल जानेसे हो वह हेतु सच्चा नहीं हो सकता, किन्तु पक्षमें भी उसका अविनाभाव विधिवत् मिलना चाहिए। उसको अन्तर्व्याप्ति पक्षमें साध्य-साधनको व्याप्ति ही सचमुच उसमें सत्यता लानेका प्रधान कारण होती है। यदि बहिर्व्याप्ति-दृष्टान्तमें साध्यसाधनकी व्याप्ति-मात्रसे ही हेतु सच्चा मान लिया जाय, तो गर्भगत लड़केमें सांवलापन सिद्ध करनेके लिए दिया जानेवाला तत्पुत्रत्व-चूंकि यह भी उसीका लड़का है-हेतु भी सच्चा हो जाना
१. गमनायोग्य-आ.। २. सप्तमनरक-भ. २। ३. सर्वोत्कृष्टाशुभ-इत्यादि पाठः भा. प. । ४. यथा मुक्तिगमनमपि तद्गमनयोग्यतथाविधशुभमनोवीर्याभावात् इत्यपि पाठः आ. पा. । ५. -रणं शुभ-म.२, क.। ६.-प्रकर्षात्सप्तम-क.। ७. “निर्वाणकारणज्ञानादिपरमप्रकर्षः स्त्रीषु नास्ति. परमप्रकर्षत्वात्, सप्तमपृथिवीगमनकारणाऽपुण्यपरमप्रकर्षवत् ।"-न्यायकुमु. पृ. ८६०। प्रमेयक पृ. ३२८ । ८. -श्चिन्तव्य-आ., क.। "सप्तमपृथिवीगमनाद्यभावमव्याप्तमेव मन्यन्ते । निर्वाणाभावेनापश्चिमतनवो न तां यान्ति ॥"-खीम. श्लो. ५। सन्मति. टी. प. ७५३ । प्रज्ञा. मलय, पृ. २. BI नन्दि. मलय. पृ. १३२ Bरत्नाकराव. ७.५०। शास्त्रवा. यशो, पृ. ४२८ A. । युक्तिप्र. पृ.1१५।
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