________________
३०४
षड्दर्शनसमुच्चये __ [का० ५२. ६ २७५सद्भावेन चारित्रासंभवः।
२७५. नापि मन्दसत्त्वतया; यतः सत्त्वमिह व्रततपोधारणविषयमेषितव्यम्, तच्च तास्वनल्पं सुदुर्धरशीलवतीषु संभवति । अतो न चारित्रासंभवेन तासां होनत्वम् । ननु भवत्वविशिष्टं चारित्रं स्त्रीणां, परं परमप्रकर्षप्राप्तं यथाख्याताभिधं तासां न स्यादिति पुरुषेभ्यो हीनत्वमिति चेत् । तहि चारित्रपरमप्रकर्षाभावोऽपि तासां किं कारणाभावेन, 'विरोधसंभवेन वा। न तावदाद्यः पक्ष; अविशिष्टचारित्राभ्यासस्यैव तन्निबन्धनत्वात्, तस्य च स्त्रीष्वनन्तरमेव समर्थितत्वात् । नापि द्वितीयः; यथाख्यातचारित्रस्याग्दिशामत्यन्तपरोक्षतया केनचिद्विरोधानिर्णयादिति न चारित्राभावेन स्त्रीणां हीनत्वम् ।।
६२७६. नापि विशिष्टसामर्थ्यासत्त्वेन; यत इदमपि कि 'सप्तमनरकपृथ्वीगमनायोग्यत्वेन, वादादिलब्धिरहितत्वेन, अल्पश्रुतत्वेन वा। न तावदाद्यः पक्षः; यतस्तदभावः किं यत्रैव जन्मनि से उसमें जीवोंकी उत्पत्तिकी ही कम सम्भावना है तथा होने पर भी बुद्धि पूर्वक हिंसा न होने से उक्त परिग्रहका दोष नहीं होना चाहिए। अतः वस्त्रके रहने मात्रसे स्त्रियोंमें चारित्रका अभाव नहीं किया जा सकता।
६२७५. शक्ति या धैर्यकी कमीसे भी स्त्रियोंको हीन-कमजोर नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यहां शक्तिका तात्पर्य है व्रत-उपवास,तप आदि धारण करनेकी सामर्थ्य । सो यह सामर्थ्य तो कोई-कोई स्त्रियों में पुरुषोंसे भी अधिक पायी जाती है। वे भी अत्यन्त दुर्धर व्रत-उपवास आदि धैर्यपूर्वक करती हैं। उनका अखण्ड शील और कठिन कायक्लेश उनकी इस सामर्थ्यका पक्का प्रमाण है। अतः चारित्रका अभाव होनेके कारण स्त्रियोंको पुरुषसे हीन नहीं माना जा सकता।
दिगम्बर-साधारण व्रत उपवासादि रूप चारित्र स्त्रियोंमें भले ही हो जाय, परन्तु परम उत्कृष्ट यथाख्यात-स्वरूपस्थिति रूप चारित्र स्त्रियों में नहीं हो सकता अतः वे पुरुषोंसे हीन हैं।
श्वेताम्बर-परम उत्कृष्ट यथाख्यात चारित्र स्त्रियोंमें क्यों नहीं होता? कौन-सा ऐसा बाधक है जिसके कारण उनका यथाख्यात चारित्र परमोत्कृष्ट दशाको नहीं पहुंच पाता? क्या उनमें उसके कारण हो नहीं जुट पाते अथवा कोई विरोधी कारणके आनेसे वह रुक जाता है ? कारणोंका अभाव तो नहीं कहा जा सकता, क्योंकि साधारण व्रत-उपवास आदि चारित्रका अभ्यास हो यथाख्यात चारित्रमें कारण होता है । सो स्त्रियोंमें इस व्रत-उपवासादि रूप चारित्रका सद्भाव तो अभी ही बता आये हैं। यथाख्यात चारित्र अतीन्द्रिय होनेके कारण अत्यन्त परोक्ष है, अतः उसका किसके साथ विरोध है । इसका निर्णय अल्पज्ञानवाले हम लोग नहीं कर सकते । इस तरह चारित्रके अभावके कारण हम स्त्रियोंको पुरुषोंसे होन नहीं कह सकते।
$२७६. विशिष्ट शक्तिके अभावसे भी स्त्रियां पुरुषोंसे होन नहीं कही जा सकतों, आप बताइए कि स्त्रियोंमें कौन-सी विशिष्ट शक्तिका अभाव है ? क्या वे सातवें नरक नहीं जा सकतीं, या वाद आदि ऋद्धियां प्राप्त नहीं कर पातीं। वे वाद नहीं कर सकती अथवा उनमें श्रुतज्ञानकी पूर्णता नहीं होती : सातवें नरक नहीं जा सकनेके कारण विशिष्ट शक्तिका अभाव नहीं माना जा सकता, क्योंकि वे जिस जन्ममें मोक्ष जाती हैं उसी ही जन्ममें सातवें नरक नहीं जा
१. विरोधिसं-भ. १, २, प. १, २। २. सप्तमपृथ्वी-भ. २, क. । ३. अलब्धश्रत-भ. २ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org