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-का० ४९. २०५] जैनमतम् ।
२६७ यित्वात्, आतपवत् । तस्मिन्नेव पक्षे सनिदर्शनं साधनपञ्चकं प्रपञ्च्यते । यथा शब्दोऽम्बरगुणो न भवति संहारसामर्थ्यात् अगुरुधूपवत्, तथा वायुना प्रेर्यमाणत्वात् तृणपर्णादिवत्, सर्वदिग्गाह्यत्वात् प्रदीपवत्, अभिभवनीयत्वात् तारासमूहादिवत्, अभिभावकत्वात् सवितृमण्डलप्रकाशवत् । महता हि शब्देनाल्पीयानभिभूयते शब्द इति प्रतीतमेव, तस्मात्पुद्गलपरिणामः शब्दः।।
२०४. अथ शङ्के तद्विनाशे तदीयखण्डेषु च यथा पौदगलिकत्वाद्रूपमुपलभ्यते, तथा शब्देऽपि कुतो नेति चेत्, उच्यते, सूक्ष्मत्वात्, विध्यातप्रदीपशिखारूपादिवत् गन्धपरमाणुव्यवस्थितरूपादिवद्वेति । गन्धादीनां तु पुद्गलपरिणामता प्रसिद्धव।।
$२०५. तमश्छायादीनां त्वेवम्-तमः पुद्गलपरिणामो दृष्टिप्रतिबन्धकारित्वात् कुख्यादिवत्, आवारकत्वात् पटाविवत् । का गुण नहीं है। वह तो मूर्त तथा पौद्गलिक है। जिस तरह पर्वतकी तरफ फेंका गया पत्थर उससे टकराकर वापस उलटा आता है उसी तरह शब्द भी दीवाल आदिसे टकराकर वापस प्रतिध्वनि करता है अतः इसे पत्थरकी ही तरह मूर्त मानना चाहिए। शब्द आकाशका गुण नहीं है क्योंकि जहां उसे रास्ता मिलता है वह वहींसे चला जाता है जैसे कि सूर्यका प्रकाश । शब्द यदि अमूर्त होता तो वह सब जगह अप्रतिहत निर्बाधरूपसे गमन कर सकता था फिर उसे द्वार-रास्तेकी आवश्यकता ही क्यों होती। शब्दको पौद्गलिक सिद्ध करनेके लिए तथा उसको आकाशका गुण न होनेमें निम्नलिखित पांच हेतु और दिये जा सकते हैं-शब्द आकाशका गुण नहीं है क्योंकि उसमें अगुरु-धूपकी तरह फैलनेकी शक्ति पायी जाती है, वह तिनके-पत्ते आदिको तरह वायुसे यहां-वहां फेंका जा सकता है, वायु उसे अपने अनुकूल प्रेरणा कर सकती है, वह सभी दिशाओंमें रहनेवालोंके द्वारा ग्रहण किया जा सकता है जैसे कि दीपकका प्रकाश, जैसे सूर्यका प्रकाश तारोंको ढंक देता है उसी तरह तीव्र शब्दोंसे मन्द शब्दोंका अभिभव होता है वे सुनाई नहीं देते, अतः वे अभिभवके योग्य हैं जैसे कि तारागण, तथा अभिभव करनेवाले भी हैं जैसे सूर्यका प्रकाश । बड़े जोरसे कहे जानेवाले शब्दोंसे छोटे शब्दोंका अभिभव प्रसिद्ध ही है । इस तरह फैलना, दूसरेसे प्रेरित होना, सब तरफ सुनाई देना, दूसरेको ढंकना तथा दूसरेके द्वारा ढंके जानेके कारण शब्द पौद्गलिक है। ये धर्म अमर्त वस्तुओंमें नहीं पाये जाते अतः शब्द मूर्त है।
६२०४. शंका-जिस तरह शंख या शंखके टूटे हुए टुकड़े पोद्गलिक हैं तो उनका रूप भी आँखोंसे दिखाई देता है, उसी तरह शब्द आँखोंसे क्यों नहीं दिखाई देता? - समाधान-शब्द पोद्गलिक है अतः उसमें रूप विद्यमान है तो सही, परन्तु सूक्ष्म होनेके कारण वह आंखोंसे गृहीत नहीं होता। जिस तरह बुझा देनेपर दीपककी लोके रूप आदि होते हुए भी सूक्ष्म परिणमन होनेसे नहीं दिखाई देते, अथवा जिस प्रकार गुलाब आदि फूलोंको जब सुवास आती है तब उस आये हुए गन्ध द्रव्यके रूप आदि अनुभूत होनेके कारण प्रत्यक्ष नहीं होते उसी तरह शब्दका रूप भी सूक्ष्म और अनुभूत होनेके कारण दृष्टिगोचर नहीं हो पाता। गन्ध आदिका पुद्गलपन तो प्रसिद्ध ही है। क्योंकि वे प्राण आदि बाह्य इन्द्रियोंसे गृहीत होते हैं।
२०५. अन्धकार और छायाको इस प्रकार पुद्गलात्मक सिद्ध करना चाहिए-अन्धकार पोद्गलिक है क्योंकि वह नेत्रको देखनेमें रुकावट डालता है जैसे कि दीवाल आदि। वह दूसरे पदार्थों को ढंक देता है उनका आवरण बन जाता है जैसे कि कपड़ा आदि।
१. सति दर्शनसाधनपंचकं भ.१। सन्निदर्शनं साधनं पंचकं प.१,२। सन्निदर्शनं साधनपंचक म.२ २. अगुरुवत् म..। ३. च यत्पो म.३। ४. "तमस्तावत्पुदगलपरिणामः दष्टिप्रतिबन्धकारित्वात कुड्यादिवत, आवारकत्वात पटादिवत ।" -तत्वार्थ. भा. व्या. पृ. ३१३ । न्यायक्रम. पृ. ६७१।
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