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षड्दर्शनसमुच्चये
[का०४९.६१८८"इषुकारनरः कश्चिद्राजानं सपरिच्छदम् ।
__ न जानाति पुरो यान्तं यथा ध्यानं समाचरेत् ॥१॥" तत्कि राजा न गतः । स गत एव, पुनरनवस्थितचेतस्कत्वान्न दृष्टवान् । नष्टचेतसां वा सतोऽपि भावस्यानुपलब्धिः।
F१८८. तथा सौक्षम्यात् यथा जालकान्तरगतधूमोष्मनीहारादीनां त्रसरेणवो नोपलभ्यन्ते, परमाणुवचणुकादयो वा सूक्ष्मनिगोदादयो नोपलभ्यन्ते, तत्कि न सन्ति । सन्त्येव ते, पुनः सौक्षम्यान्नोपलब्धिः।
६१८९. तथावरणात कुड्यादिव्यवधानाज्ज्ञानाद्यावरणाद्वानुपलब्धिः तत्र व्यवधानाद् यथा कुड्यान्तरे व्यवस्थितं वस्तु नोपलभ्यते तत्कि 'नास्ति । किं तु तदस्त्येव, पुनव्य॑वधानान्नोपलब्धिः एवं स्वकर्णकन्धरामस्तकपृष्ठानि नोपलभ्यन्ते; चन्द्रमण्डलस्य च सन्नपिपरभागो न दृश्यते, अर्वागभागेन व्यवहितत्वात् ।
१९०. ज्ञानाद्यावरणाच्चानुपलब्धिः यथा मतिमान्द्यात्सतामपि शास्त्रसूक्ष्म्यार्थविशेषाणामनुपलब्धिः, सतोऽपि वा जलधिजलपलप्रमाणस्यानुपलब्धिः, विस्मृतेर्वा पूर्वोपलब्धस्य वस्तुनोऽनुप. लब्धिः, मोहात् सतामपि तत्त्वानां जीवादीनामनुपलब्धिरित्यादि। है-"जिस तरह अपने लक्ष्यपर एकाग्र दृष्टि रखनेवाला तीरन्दाज बड़ी ठाट-बाटसे अपनी मण्डली. के साथ सामनेसे निकलनेवाले राजाको भी नहीं जानता है इसी प्रकार एकाग्र ध्यान करना चाहिए।" यदि तीरन्दाजने राजाकी तरफ ध्यान न होनेसे उसे जाते हुए नहीं देखा तो क्या राजा वहाँसे निकला ही नहीं। राजाको सवारी तो वहांसे अवश्य निकली है परन्तु उस ओर उपयोग न होनेसे वह दिखाई नहीं दिया। जिनका चित्त विक्षिप्त हो जाता है उन पागलोंको मौजूद पदार्थों का भी परिज्ञान नहीं होता।
१८८. इसी तरह पदार्थोंकी सूक्ष्मता भी उनको अनुपलब्धिमें कारण होती है। घरके छप्परके छेदोंसे निकलनेवाले या आनेवाले धुएं, गरमी तथा कुहरेके परमाणु सूक्ष्म होनेसे नहीं दिखाई देते, परमाणु द्वयणुक आदि भी दृष्टिगोचर नहीं होते तथा सूक्ष्म निगोदिया जीव भी चर्मचक्षुओंसे नहीं दिखाई देते; तो क्या इन सबका अभाव मान लिया जाय ? वे सब परमाणु आदि हैं तो सभी, परन्तु अत्यन्त सूक्ष्म होनेसे नजरमें नहीं आते।
१८९. दीवाल आदिका व्यवधान आनेसे अथवा ज्ञानावरण कर्मसे बुद्धिकी मन्दता होनेके कारण व्यवहित पदार्थों की अनुपलब्धि होतो है, दोवाल आदिके उस तरफ रखे हुए पदार्थ नहीं दिखाई देते तो क्या वहां दीवालके उस ओर पदार्थ हैं ही नहीं ? पदार्थ हैं तो, परन्तु व्यवधान होनेके कारण आड़ आ जानेसे दिखाई नहीं देते। इसी तरह अपने ही कान, कन्धे तथा मस्तकका पिछला भाग आड़ आ जानेसे नहीं दिखाई देता। चन्द्रमाके उस तरफका हिस्सा इस तरफके भागसे व्यवहित हो जानेसे मौजूद होकर भी नहीं दिखाई देता।
$ १९०. ज्ञानावरण कर्मके उदय आ जानेसे बुद्धिकी मन्दता होनेपर शास्त्रोंके गहन अर्थोंको नहीं समझ पाते। 'समुद्र में कितनी रत्तो पानी है' यह समुद्रके पानीका रत्तियोंका प्रमाण मौजूद होकर भी हम लोगोंके ज्ञानमें नहीं आता। विस्मरण हो जानेसे-भूल जानेसे पहले जाने गये पदार्थकी याद नहीं आती। मिथ्यात्व या मोहके कारण विद्यमान भी जोवादि तत्त्वों का यथार्थ परिज्ञान नहीं हो पाता। इससे इन सब वस्तुओंका अभाव नहीं किया जा सकता। इनकी अनुपलब्धि तो आवरणके कारण हो रही है न कि पदार्थोंकी गैरमौजूदगीसे।
१. गतः गत एव सः भ. २। २. नास्ति तदस्त्येव म. २ । ३. अर्वागभावेन म. २ । ४. -पि जलधि-म.२।
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