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- का० ४९. ११८२]
जैनमतम् ।
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प्रयोगवित्रसादिजनित औदारिकादिशरीरेषु' जतुकाष्ठादिश्लेषवत् परमाणु संयोगजवद्वेति । सौक्ष्म्यं - सूक्ष्मता । स्थौल्यं - स्थूलता । संस्थानमाकृतिः । भेदः - खण्डशो भवनम् । तमश्छायादयः प्रतीताः । सर्व एवैते स्पर्शादयः शब्दादयश्च पुद्गलेष्वेव भवन्तीति ।
६१८१. पुद्गला द्वेधा, परमाणवः स्कन्धाच । तत्र परमाणोर्लक्षणमिदम् - "कारणमेव तदन्त्यं, सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः । एकरसवर्णगन्धो, द्विस्पर्शः कार्यलिङ्गश्च ॥ १ ॥”
$ १८२. व्याख्या । सकलभेदपर्यन्तवतित्वादन्त्यं तदेव कारणं न पुनरन्यद्द्द्वयणुकादि तदेव किमित्याह सूक्ष्मः -- आगमगम्यः अस्मदादीन्द्रियव्यापारातीतत्वात् । नित्यश्चेति द्रव्यार्थिकनयापेक्षया ध्रुवः, पर्यायार्थिकनयापेक्षया तु नीलादिभिराकारैरनित्य एवेति । न ततः परमणीयो द्रव्यमस्ति तेन परमाणुः । तथा पञ्चानां रसानां द्वयोर्गन्धयोः पञ्चविधस्य वर्णस्यैकेन रसादिना युक्तः । तथा चतुर्णां स्पर्शानां मध्ये द्वावविरुद्धौ यौ स्पर्शौ स्निग्धोष्णौ " स्निग्धशीतौ रूक्षशीतौ
प्रयोगसे इनका नित्य सम्बन्ध सूचित होता है । शब्द - ध्वनि या कानसे सुनाई देनेवाली आवाज है। परस्पर चिपकनेको बन्ध कहते हैं । यह बन्ध कहीं तो पुरुषके प्रयोगसे किया जाता है और कहीं अपने ही आप स्वाभाविक रूपसे ही हो जाता है । कोई कारीगर लाख और लकड़ीको परस्पर चिपका देता है, यह प्रायोगिक बन्ध है । हमारे स्थूल औदारिक आदि शरीरोंमें अवयवोंका बन्ध या परमाणुओं का परस्परमें बन्ध स्वभावसे ही होता रहता है। सौक्ष्म्य - पतलापन बारीकपन । स्थौल्य - मुटाई। संस्थान - शक्ल आकार । भेद - टुकड़े-टुकड़े हो जाना । अन्धकार, छाया आदि तो प्रत्यक्ष से ही प्रतीत होते हैं । ये सब स्पर्श आदि तथा शब्द आदि पुद्गल द्रव्यमें ही होते हैं ।
$ १८१. पुद्गल सामान्यतः दो प्रकारके होते हैं-१ स्कन्धरूप, २ परमाणुरूप । परमाणुका लक्षण शास्त्र में इस प्रकार बताया है - "परमाणु कारण ही होता है - वह स्कन्ध आदि कार्यों को उत्पन्न करनेके कारण ही है । वह कभी भी किसीसे उत्पन्न नहीं होता अतः कार्यं रूप नहीं है । परमाणुको कोई भी उत्पन्न नहीं कर सकता । वह अन्त्य - आखिरी हिस्सा है उससे छोटा कोई द्रव्य नहीं हो सकता । सूक्ष्म है, नित्य है । इसमें कोई एक रूप, एक रस, एक गन्ध, शीत और उष्ण में से कोई एक तथा चिकने और रूखेमें से कोई एक स्पर्श पाया जाता है । यह प्रत्यक्षसे नहीं दिखाई देता फिर भी स्कन्धरूप कार्योंसे इसका अनुमान किया जाता है ।"
१८२. किसी पदार्थ टुकड़े-टुकड़े करते-करते जो आखिरी टुकड़ा हो, जिसका दूसरा खण्ड न हो सके वह अन्तिम भाग ही परमाणु है । वह कारण ही होता है, द्व्यणुक – दो परमासे बना स्कन्ध तो कार्य भी है । वह परमाणु सूक्ष्म है । हम लोगोंकी इन्द्रियोंके व्यापार से उसका परिज्ञान नहीं हो सकता । आगमसे उसकी सत्ता जानी जाती है । वह परम सूक्ष्म होनेसे ही परमाणु कहा जाता है । द्रव्य दृष्टिसे वह ध्रुव है, सदा रहनेवाला है, किसीकी ताकत नहीं है कि वह परमाणुका नाश कर सके। हाँ, पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षासे—उसकी हालतोंपर दृष्टिपात करनेसे—उसके नील-पीतादि विकारोंके ऊपर नजर रखनेसे वह अनित्य प्रतीत होता है। उससे छोटा और कोई टुकड़ा नहीं हो सकता अतः वह परमाणु है । उसमें पाँच रसमें से कोई एक रस, सुगन्ध और दुर्गन्धमें से एक गन्ध, तथा काले-पीले आदि पांच रंगोंमें से कोई एक रंग पाया जाता है। चार स्पर्शो में से कोई दो अविरोधी स्पर्श होते हैं । वह या तो चिकना और गरम
१. - शरीरजतुका - भ. १, २, प. १, २ । २. परमाणुवद्वेति म. २ । ३. उद्धृतोऽयं त. मा. ५।२५ । ४. - या नित्यः ध्रुवः म २ । ५. स्निग्धशीतौ रूक्षोष्णो वा भ. २ ।
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