________________
२३९
-का. ४९.६ १४५ ]
जैनमतम् । पादसंघातवत् । तदेव कदाचित्किचिदचेतनमपि शस्त्रोपहतत्वात्, पाण्यादिवदेव, न चात्यन्तं तदचित्तमेवेति।
६१४५. अथ नाप्कायो जीवः, तल्लक्षणायोगात्, प्रस्रवणादिवदिति चेत्, नैवम्; हेतोरसिद्धत्वात् । यथा हि-हस्तिनः शरीरं कललावस्थायामधुनोत्पन्नं सद्रवं सचेतनं च दृष्टम् एवमप्कायोऽपि, यथा वाण्डके रसमात्रमसंजातावयवमनभिव्यक्तचञ्चवादिप्रविभागं चेतनावदृष्टम् । एषैव चोपमा अजीवानामपि । प्रयोगश्वायम्-सचेतना आपः, शस्त्रानुपहतत्वे सति द्रवत्वात्, हस्तिशरीरोपादानभूतकललवत् । हेतोविशेषणोपादानात् प्रस्रवणादिव्युदासः। तथा सात्मकं तोयम्, अनुपहतद्रवत्वात, अण्डकमध्यस्थितकललवदिति । इदं वा प्राग्वज्जीववच्छरीरत्वे सिद्धे सति प्रमाणम् । सचेतना हिमादयः क्वचित, अप्कायत्वात्, इतरोदकवदिति । तथा क्वचन चेतनावत्य आपः, खातभूमिस्वाभाविकसंभवात्, दर्दुरवत् । अथवा सचेतना अन्तरिक्षोद्भवा आपः, अभ्रादिविकारे स्वत टाँकी नहीं लगी जिसे अभी तक काटा नहीं है वह खान रूप पृथिवी सचेतन है क्योंकि वह बढ़नेवाली शिलाओंका समुदाय है जैसे हाथ-पैर आदिका समुदाय । जब उसमें टांकी लग जाती है उसे काटकर उसमें-से पत्थर निकाला जाता है तब उसी पृथिवीका, वह काटा हुआ भाग निर्जीव हो जाता है; क्योंकि वह हथियारोंसे काटी गयो है जैसे कटा हुआ हाथ। अतः पृथिवीको सर्वथा अचेतन नहीं कह सकते। हाँ, जो पृथिवी बढ़ती नहीं है उसे तो सचेतन हम भी नहीं कहते। कोई पृथिवी सचेतन होती है तथा कोई अचेतन । लोकमें भी 'यह मिट्टी मर गयी' यह व्यवहार देखा जाता है । अतः पृथिवीको सचेतन मानना चाहिए।
६१४५. शंका-अच्छा पृथिवीमें जीव मान लेते हैं, पर जलमें तो जीवके कोई भी चिह्न नहीं पाये जाते अतः उसे सचेतन नहीं कह सकते जैसे कि पेशाबको।
समाधान-देखो, जब हाथोका शरीर हथिनीके गर्भ में कलल-पानी जैसा पतला रहता है. वह बहनेवाला होकर भी सचेतन है उसी तरह पानीको भी सचेतन मानना चाहिए। देखो अण्डे में पक्षीका शरीर बिलकुल पानी जैसा प्रवाही रहता है, उस समय उसमें हाथ-पैर-चोंच आदि कोई भी अवयव प्रकट नहीं होता। वह जिस प्रकार सचेतन है उसी तरह पानी भी सजीव है। जल अण्डे के भीतर रहनेवाले तरल पदार्थको ही तरह सजीव है। प्रयोग-बिना बिलोया हुआ, अताडित जल सचेतन है, क्योंकि वह शस्त्र आदिसे ताडित न होकर प्रवाही है। जिस प्रकार हाथीके स्थूल शरीरका मूल गर्भवर्ती कलल प्रवाही होकर सचेतन है उसी तरह जल भी। मूत्र आदि बहने वाले पदार्थ मूत्राशय आदिसे ताड़ित होते हैं अतः वे प्रवाही होकर भी सजीव नहीं हैं। अतः 'शस्त्रादिसे अताडित' विशेषणसे मूत्रादिको व्यावृत्ति हो जाती है।
२. जिस प्रकार अण्डेके भीतर रहनेवाला पतला बहनेवाला पदार्थ आघातसे रहित होकर बहनेवाला है अतः वह सचेतन है, उसी तरह अताड़ित जल भी सचेतन है क्योंकि वह अताड़ित
र बहनेवाला है। बात यह है कि जिस जलको लकड़ी आदिसे नचा देते हैं, उसे छपछपा देते हैं वह जल लकड़ी आदिके प्रचण्ड अभिघातसे अचेतन हो सकता है अतः हेतुमें 'अताड़ित' विशेषण दिया गया है। इसी तरह कोई-कोई बरफ आदि भी सचेतन होते हैं क्योंकि वे जलकाय हैं जैसे कि अन्य पानी। जमीनसे स्वाभाविक रूपमें निकलनेवाला पानी सचेतन है क्योंकि वह पृथिवी खोदते ही स्वाभाविक रूपसे निकलता है जैसे कि पृथिवी खोदनेपर निकलनेवाला मेढक । बादलोंसे बरसनेवाला पानी सचेतन है, क्योंकि वह बादलोंके मिल जानेसे अपने आप बरसता है जैसे कि
१. -त्पन्नस्य द्रवं चेतनं आ., क.। -त्पन्नस्य द्रवं सचेतनं म. १, प. १, २। २. इदं प्रा. भ. २, प.१,२।३.-बादथवा म. ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org