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-का० ४९ ६ ११९] जनमतम् ।
२२५ मृतशरीरे कियढेलानन्तरं समुत्पन्नानां कृम्यादीनां कथं चैतन्यम् । ततो यत्किचिदेतत् ।
११७ किंच न चैतन्यं भूतमात्रकारणम् । तथा सति चैतन्यस्य भूतमात्रजन्यस्वभावत्वात तेषामपि तज्जननस्वभावत्वात् सर्वदा सर्वत्र घटादौ पुरुषादिष्विव व्यक्तचैतन्योत्पादो भवेत, निमित्ताविशेषात् । एवं च घटादिपुरुषयोरविशेषः स्यात् ।
११८. ननु 'कायाकारपरिणामप्राणापानपरिग्रहवद्भ्यो भूतेभ्यश्चैतन्यमुपलभ्यते' इति वचनान्न पूर्वोक्तोऽतिप्रसङ्गदोषावकाश इति चेत्; तन्न; त्वन्मते कायाकारपरिणामस्यैवानुपपद्यमानत्वात् । तथाहि-- स कायाकारपरिणामः किं पृथिव्यादिभूतमात्रनिबन्धनः, उत वस्त्वन्तरनिमित्तः उताहेतुकः इति त्रयी गतिः। तत्र न तावदाद्यः पक्षः कक्षीकरणीयः पृथिव्यादिसत्तायाः सर्वत्र सद्भावात् सर्वत्रापि कायाकारपरिणामप्रसङ्गः।
६११९. तथाविधसाम्यादिभावसहकारिकारणवैकल्यान्न सर्वत्र तत्प्रसङ्ग इति चेत् तन्न; गरमी न होनेसे मुरदा शरीर इस लायक ही नहीं रहा कि वह चैतन्यको उत्पन्न कर सके। अतः ये सब कुतर्क निरर्थक हैं केवल वाग्जाल मात्र हैं।
- ११७. यदि पृथिवी आदि भूतोंसे चैतन्य उत्पन्न हो जाता हो, तो इसका अर्थ यह हुआ कि-चैतन्यका हर एक भूतसे उत्पन्न होनेका स्वभाव है तथा भूतोंका चैतन्यको पैदा करनेका स्वभाव है। ऐसी हालतमें घड़े आदि सभी भौतिक पदार्थों में चैतन्यकी उत्पत्ति हो जानेसे सब जीवमयी सृष्टि हो जायेगी। तब घट तथा पुरुषोंमें कोई फर्क हो नहीं रहेगा। जिस प्रकार भूतोंसे पुरुषमें चैतन्य प्रकट होता है उसी तरह घटादिमें भी चैतन्यकी अभिव्यक्ति होनी ही चाहिए। फिर तो घड़ा भी बोलेगा, चालेगा, फिरेगा वा खायेगा-पीयेगा।
११८. चार्वाक-भाई, तुम लोगोंकी तो विचित्र बुद्धि है। हम तो यह कह रहे हैं कि'जब भूतोंका विशिष्ट रासायनिक मिश्रण होकर शरीर रूपसे परिणमन हो जाता है तथा उसमें श्वासोच्छवासकी धमनी चलने लगती है तभी उनसे चैतन्यकी उत्पत्ति होती है साधारण भूतोंसे नहीं।' आप घड़ेमें साधारण भूतोंकी सत्ता दिखाकर चैतन्योत्पत्तिका प्रसंग दे रहे हैं। यह तो बुद्धिकी विचित्रता ही है।
जैन-बुद्धिकी विचित्रता तो आपको मालूम होती है। आपके मतमें भूतोंका शरीर रूपसे परिणमन होना ही कठिन है। आप बताइए भूतोंका शरीर रूपसे परिणमन क्या वे भूत हैं इसीलिए हो जाता है, या अन्य कोई वस्तु उन भूतोंको शरीर रूप से परिणमन करा देती है अथवा बिना किसी कारणके अकस्मात् ही भूत शरीर बन जाते हैं ? पहली कल्पना तो सचमुच आपकी बुद्धिका दिवाला ही निकाल देगी। वे भूत हैं इसीलिए उन्हें शरीर रूप बन जाना चाहिए; तब घड़ा भी शरीर क्यों नहीं बन जाता ? घड़ा ही क्यों ? संसारके समस्त भौतिक पदार्थ शरीर बन जायें और उनमें चैतन्यको उत्पत्ति हो जानी चाहिए।
६११९. चार्वाक-आप तो घूम-फिरकर फिर वहीं आ जाते हैं। हम दस बार कह चुके हैं कि-उतनी मिकदारमें भूतोंका मिश्रण सब घट-पटादिमें नहीं है अतः सभी भौतिक पदार्थ शरीर नहीं बन सकते। चैतन्यकी उत्पत्ति या भूतोंका शरीर रूपसे परिणमन करने में यही विशिष्ट मिश्रण, अमुक मात्रामें संयोग ही सहकारी होता है।
१. "पृथिव्य (व्या) पस्तेजोवायुरिति तत्त्वानि, तत्समुदाये शरीरेन्द्रियविषयसंज्ञाः तेभ्यश्चैतन्यम्" इत्यत्र" -प्रमेयक. पृ. ११६ । तत्वोप. पृ.१। भामती ३।३।५४ । तरवसं. पं. पृ. ५२० । त. श्लो. पू. २८ । न्यायकुमु. पृ.३४१। २. चेन्न त्वन्मते सोऽपि भ. १, २. प. १,२।
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