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________________ - का० ४६. १६० ] जैनमतम् । १९५ वा ? यसत्त्वम्; कि तत्र साधनमनुपलम्भः, विरुद्धविधिः, वक्तृत्वादिकं वा । यद्यनुपलम्भः कि सर्वज्ञस्य, उत तत्कारणस्य; तत्कार्यस्य तद्वघापकस्य वा । यदि सर्वज्ञस्य; सोऽपि किं स्वसंबन्धी सर्वसंबन्धी वा । स्वसंबन्धी 'चेन्निविशेषणः, उत उपलब्धिलक्षणप्राप्तत्वविशेषणो वा । आ परचित्तविशेषादिभिरनैकान्तिकः 'अनुपलम्भात्' इति हेतु:, तेषामनुपलम्भेऽप्यसत्त्वानभ्युपगमात् । नाप्युपलब्धिलक्षणप्राप्तत्वविशेषणः; सर्वत्र सर्वदा च सर्वज्ञाभावसाधनस्याभावप्रसङ्गात् । न हि सर्वथाप्यसत उपलब्धिलक्षणप्राप्तत्वं घटते, क्वचित्कदाचित्सत्त्वोपलम्भाविनाभावित्वात्तस्य । एतेन सर्व संबन्धिपक्षोऽपि प्रत्याख्यातः । किं च असिद्धः सर्व संबन्ध्यनुपलम्भः, असर्वंविदा प्रतिपत्तुमशक्यअसत्ता सिद्ध करेंगे या उसमें असर्वज्ञता साधेंगे ? यदि आप सर्वज्ञकी असत्ता सिद्ध करना चाहते हैं, तब आप अनुपलम्भको हेतु बनायेंगे या विरुद्ध विधिको अथवा वक्तृत्व आदिको ? यदि सर्वज्ञकी असत्ता सिद्ध करनेमें अनुपलम्भ हेतुका प्रयोग किया जाता है तब यह जानना जरूरी है कि यह अनुपलम्भ सर्वज्ञका है या उसके कारणोंका है अथवा उसके कार्यका है, किंवा उसके व्यापक धर्मका है ? यदि सर्वज्ञको असत्ता सिद्ध करने में सर्वज्ञका ही अनुपलम्भ हेतुरूपमें उपस्थित - किया जाता है; तब यह बताइए कि किसको सर्वज्ञका अनुपलम्भ है खुद आपको, या संसारके सब प्राणियोंको ? यदि आप अपनेको होनेवाले सर्वज्ञ के अनुपलम्भसे सर्वज्ञका अभाव मानते हैं; तब यह जानना जरूरी है कि - यह अनुपलम्भ साधारण अनुपलम्भ है अथवा दृश्य - दिखने लायक पदार्थका है । साधारण अर्थात् किसी दृश्य आदि विशेषण रहित - अनुपलम्भसे सर्वज्ञका अभाव नहीं किया जा सकता; क्योंकि 'इस समय देवदत्तके मन में क्या बात है' इसको यज्ञदत्तका कोई भी प्रमाण नहीं जानता परन्तु इस अनुपलम्भसे देवदत्तको चित्तवृत्तिका अभाव तो नहीं हो सकता । दृश्य पदार्थको अनुपलब्धि किसी खास देशमें या किसी विशेष समय में ही वस्तुका अभाव साध सकती है सब देशों और सब समयों में नहीं । जैसे दृश्य घड़ेको अनुपलब्धि घड़ेके अभावको किसी खास जगह या किसी विशेष समय में ही बता सकती है वह घड़ेका सर्वथा तीनों काल या तीनों लोकोंमें अभाव सिद्ध नहीं कर सकती । आप ही सोचो जिस वस्तुका सर्वथा अभाव होगा वह दृश्य - दृष्टिगोचर होनेके योग्य कैसे हो सकती है। दृश्य कहनेका मतलब ही है कि वह कभी न कभी कहीं न कहीं उपलब्ध होती है, उसकी सत्ता है । इसलिए दृश्यानुपलब्धिके द्वारा सर्वज्ञका अत्यन्त लोप नहीं किया जा सकता। हां, इतना कर सकते हैं कि 'इस समय और यहाँ सर्वज्ञ नहीं हैं'। इसी तरह दृश्य पदार्थकी सब प्राणियोंको अनुपलब्धि हो नहीं सकती । वह किसी न किसीको उपलब्ध होगा ही । सर्वज्ञ जैसा सचेतन पदार्थं यदि अन्य किसीको उपलब्ध न भी हो पर खुद अपने आपको तो उपलब्ध होगा ही, अतः किसी भी दृश्यपदार्थकी सब प्राणियोंको अनुपलब्धि नहीं हो सकती । ओर आप यह कैसे जानेंगे कि संसार के समस्त प्राणी सर्वज्ञको नहीं जानते ?' किसी भी असर्वज्ञके लिए 'सबको सर्वज्ञकी अनुपलब्धि है' यह जानना नितान्त असम्भव है । जबतक संसारके समस्त प्राणियोंका तथा उनके ज्ञानोंका एक-एक करके यथार्थ परिज्ञान नहीं होता तबतक 'इन समस्त प्राणियोंके ज्ञानों में सर्वज्ञ प्रतिभासित नहीं होता' यह जानना असम्भव है | जैसे दर्पणको जाने बिना दर्पण में आये हुए प्रतिबिम्बका देखना असम्भव है ठीक उसी तरह सब आदमियों के ज्ञानोंको जाने बिना उसमें आये हुए सर्वज्ञके अभावका प्रतिबिम्ब नहीं जाना जा सकता । जिस बुद्धिमान् मनुष्यको यह स्पष्ट मालूम हो रहा है कि - ये संसार के समस्त प्राणी सर्वज्ञको नहीं जान रहे हैं' बस वही बुद्धिमान् सर्वज्ञ है । इसी तरह सर्वज्ञता के कारणों की अनुपलब्धि होनेसे सर्वज्ञका अभाव होना भी अत्यन्त दुष्कर है; क्योंकि सर्वज्ञतामें कारण है १. चेन्निविशेषेण, उपलब्धिलक्षणप्राप्तत्वविशेषेण वा म. २ । २. गमनात् भ २ । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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