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________________ १९४ षड्दर्शनसमुच्चये [का० ४६.६६०तथाहि-तबाधकं प्रत्यक्षम्, अनुमानम्, आगमः, उपमानम्, अर्थापत्तिर्वा । तत्राद्यः पक्षो न श्रेयान् यतो यदि प्रत्यक्षं वस्तुनः कारणं व्यापकं वा स्यात्, तदा तन्निवृत्तौ वस्तुनोऽपि निवृत्तियुक्तिमती, वह्नयादिकारणवृक्षत्वादिव्यापकनिवृत्तौ धूमत्वादिशिशपात्वाविनिवृत्तिवत् । न चार्थस्याध्यक्ष कारणम्, तदभावेऽपि देशादिव्यवधानेऽर्थस्य भावात् । नापि व्यापकम् तन्निवृत्तावपि देशादिविप्रकृष्टवस्तूनामनिवर्तमानत्वात् । न चाकारणाव्यापकनिवृत्तीवप्यकार्या व्याप्यनिवृत्तिरुपपन्ना, अतिप्रसक्तेरिति । ६०. नाप्यनुमानं 'तबाधकम् धमिसाध्यधर्ससाधनानां स्वरूपासिद्धः। तत्र हि धमित्वेन किं सर्वज्ञोऽभिप्रेतः, सुगताविः, सर्वपुरुषा वा। यदि सर्वज्ञः, तदा किं तत्र साध्यमसत्त्वम्, असर्वज्ञत्वं नहीं होता इसलिए प्रत्यक्ष ही सर्वज्ञका बाधक है' इस प्रकार प्रत्यक्षको बाधक कहना समुचित नहीं है, क्योंकि यदि प्रत्यक्ष वस्तुका कारण या वस्तुका व्यापक होता तभी उसकी निवृत्ति होनेसे वस्तुका अभाव किया जा सकता है। जिस प्रकार धूमका कारण अग्नि है अतः अग्निकी निवृत्ति होनेपर धुएंका अभाव देखा जाता है। वृक्षत्व सीसोन नीम आदि सभी विशेष वृक्षोंमें पाया जानेसे शिशपा आदिका व्यापक है अतः वृक्षत्व रूप व्यापक धर्मके अभावमें सीसोन आदि वृक्षविशेषोंका अभाव होता है, उसी तरह यदि प्रत्यक्ष वस्तुका व्यापक या कारण होता तो अवश्य ही प्रत्यक्ष न होनेसे वस्तुका अभाव होता परन्तु प्रत्यक्ष न तो पदार्थका कारण ही है और न व्यापक ही। प्रत्यक्षके अभावमें भी दूर देशमें पदार्थका सद्भाव देखा जाता है अतः प्रत्यक्ष पदार्थका कारण नहीं है तथा प्रत्यक्षकी निवृत्ति होनेपर भी दूरदेशवर्ती पदार्थों की निवृत्ति नहीं देखी जाती अतः वह पदार्थका व्यापक भी नहीं है। जब प्रत्यक्ष पदार्थका कारण या व्यापक नहीं है तब प्रत्यक्षकी निवृत्तिसे अर्थात् सर्वज्ञको प्रत्यक्षता न होनेसे-सर्वज्ञ रूप पदार्थका अभाव कैसे माना जा सकता है ? जो वस्तु कारण या व्यापक नहीं है उसकी निवृत्तिसे यदि जो कार्य या व्याप्य नहीं है ऐसे पदार्थकी निवृत्ति मानी जाय तो अतिप्रसङ्ग अर्थात् अव्यवस्था दोष आता है। अर्थात् घट की निवत्तिमें भी सुमेरुपर्वतको निवत्ति होनी चाहिए। ६०. अनुमान भी सर्वज्ञका बाधक नहीं हो सकता; क्योंकि बाधक अनुमानमें आप किसे धर्मी बनाओगे, क्या साध्य रखोगे तथा किसे हेतु बनाओगे यही अनिश्चित है। धर्मी, साध्य तथा हेतुके स्वरूपका निश्चय किये बिना तो अनुमान हो ही नहीं सकता। बताइए-आप सर्वज्ञको धर्मी बनायेंगे या बुद्ध आदिको, अथवा सभी पुरुषों को ? सर्वज्ञको धर्मी बनानेपर आप उसकी १. "अतीन्द्रियार्थदशिनो हि बाधकं प्रमाणं प्रत्यक्षम्, अनुमानादि, अभावो वा स्यात् ?'-न्यायमु. पृ. ८९ । “न तावत् प्रत्यक्षं बाधकम, तस्यातद्विषयत्वात् । -तत्वसं. प. पृ. ८४८ । ३. "कारणं व्यापकाभावे निवृत्तिश्चेह युज्यते । हेतुमद्वयाप्तयोस्तस्मादुत्पत्तेरेकभावतः ।। ३२७१॥ कृशानुपादपाभावे धूमानादिनिवृत्तिवत् । अन्यथाऽहेतुतैव स्यान्नानात्वं च प्रसज्यते ॥३२७२॥"-तत्वसं. प. पृ. ५ । ४. -भावकार्या-भ, १, प. १, २, क.। ५. -व्यापकनि-प. १, २। ६. "नाप्यनुमानम्, धर्मि-साध्यसाधनानां स्वरूपाप्रसिद्धः, तदबाधके हनुमाने धमित्वेन, सर्वज्ञोऽभिप्रेतः सुगतः, सर्वपुरुषा वा? यदि सर्वज्ञः; तदा किं तत्र साध्यम्-असत्त्वम्, असर्वज्ञत्वं वा । यद्यसत्त्वम्; किं तत्र साधनम्अनुपलम्भः, विरुद्धविधिः वक्तृत्वादिकं वा । यद्यनुपलम्भः; स कि सर्वज्ञस्य, तत्कारणस्य, तत्कार्यस्य, तद्व्यापकस्य वा । यदि सर्वज्ञस्य सोऽपि कि स्वसम्बन्धी, सर्वसम्बन्धी वा। स्वसम्बन्धी चेतः सोऽपि किं निविशेषणः, उपलब्धिलक्षणप्राप्तत्वविशेषणो वा?"-न्यायकुमु. पृ. ९१ । स्या. रत्ना. पृ. ३८२ । "किं स्वोपलम्भनिवृत्तिस्त्वया सर्वज्ञाभावसिद्धयेऽनुपलम्भोऽभिप्रेतः। आहोस्वित्सर्वपुरुषोपलम्भनिवृत्तिर्वा । अनुपलम्भोऽपि किं निविशेषणोऽभीष्ट उपलब्धिलक्षणप्राप्तस्येत्येतस्य विशेषणस्यानाश्रयणात् । आहोस्वित् सविशेषेण इति ।"-तत्त्वसं. प. पृ. ८५० । निवृत्तिमें भी सुम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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