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-का० ४३. ६ ५९]
जैनमतम् । प्रमाणपञ्चकातिक्रान्तरूपमप्रमेयत्वं स्यात्, तदा तेष्वप्यभावप्रमाणविषयता स्यात् । न चात्र 'तत्त्वेऽपि सा संभाविनीति । यस्य च प्रत्यक्षाः, स भगवान् सर्वज्ञ इति ।
६५८. तथास्ति कश्चिदतीन्द्रियार्थसार्थसाक्षात्कारी, अनुपदेशालिङ्गाविसंवादिविशिष्ट. दिग्देशकालप्रमाणाद्यात्मकचन्द्रादिग्रहणाद्युपदेशदायित्वात् । यो यविषयेऽनुपदेशालिङ्गाविसंवाद्य - पदेशदायी तत्साक्षात्कारी यथास्मदादिः, अनुपदेशालिङ्गाविसंवाद्य पदेशदायी च कश्चित् तस्मा. त्तत्साक्षात्कारी, तथाविधं च श्रीसर्वज्ञ एवेति ।
५९. यच्चोक्तं 'प्रमाणपश्चकाप्रवृत्तेः सर्वज्ञस्याभावप्रमाणगोचरत्वम्; तदपि वाङ्मात्रम्; प्रमाणपञ्चकाप्रवृत्तेरसंभवात् । सा हि बाधसद्भावत्वेन स्यात्, न च सर्वज्ञे बाधकसंभवः । प्रमाणका ही विषय हुई तब भी वह प्रमेय तो हुई हो। यदि समुद्रके जलकी तौलमें प्रत्यक्षादि पांच प्रमाणोंकी अप्रवृत्ति रहने पर भी अभाव प्रमाणकी प्रवृत्ति न हो तो अभाव प्रमाण व्यभिचारी हो जायेगा, उसका यह नियम टूट जायेगा कि 'जहां प्रत्यक्षादि पांच प्रमाण प्रवृत्त नहीं होंगे वहाँ मैं प्रवृत्ति करूंगा'। इस तरह जब समुद्रके जलकी तौल प्रमेय है तब उसका किसी न किसी महापुरुषको साक्षात्कार अवश्य होगा । और जिसको उसका साक्षात्कार है वही सर्वज्ञ है।
-'६५८. तथा, 'कोई आत्मा अतीन्द्रिय पदार्थोंका साक्षात्कार करनेवाला है, क्योंकि वह शास्त्र तथा अनुमापक हेतओंकी सहायताके बिना ही चन्द्रग्रहण आदि ज्योतिविद्याका यथार्थ उपदेश देता है। इस दिन इतने बजकर इतने मिनट होनेपर खग्रास या अपूर्णग्रास आदि रूपसे भावि चन्द्रग्रहणका उपदेश अतीन्द्रियज्ञानके बिना नहीं हो सकता। जो जिस विषयका शास्त्र या लिंगकी सहायताके बिना अविसंवादी उपदेश देता है वह उस पदार्थका साक्षात्कार करनेवाला होता है, जैसे किसी घट आदिको प्रत्यक्ष देखकर उसका यथावत् वर्णन करनेवाले हम लोग। बिना किसी शास्त्रको सहायताके तथा अनुमान करनेवाले हेतुओंकी मददके बिना भावी चन्द्रग्रहण आदिका दिन घण्टा मिनट खग्रास आदि नियत रूपसे उपदेश देनेवाला कोई आत्मा इस जगत्में है, अतः वह उन भावि अतीन्द्रिय पदार्थोंका साक्षात्कार अवश्य करता है। सर्वप्रथम ज्योतिष विद्याका साक्षात् उपदेश देनेवाले जिनेन्द्रदेव हैं अतः वे अतीन्द्रिय पदार्थोके देखनेवाले सर्वज्ञ हैं।' इस अनुमानसे भी सर्वज्ञ सिद्ध होता है।
६५९. आपने जो पहले कहा था कि-'चूंकि सर्वज्ञको सिद्ध करनेवाले प्रत्यक्षादि पांच प्रमाण नहीं हैं अतः अभावप्रमाणके द्वारा उसका अभाव ही सिद्ध होता है' यह युक्तिशून्य है केवल प्रलाप मात्र है; क्योंकि जब अनुमान प्रमाण सर्वज्ञको सत्ता ठोक-बजाकर सिद्ध कर रहा है तब प्रत्यक्षादि पांच प्रमाणोंकी अप्रवृत्ति कैसे कही जा सकती है ? प्रत्यक्षादि पांच प्रमाणोंकी अप्रवृत्ति तो उस पदार्थमें होती है जिसमें इन प्रमाणों द्वारा बाधा आती हो। सर्वज्ञमें तो कोई भी प्रमाण बाधा देनेवाला नहीं मिलता। उसकी सत्ता निर्बाध है । आप ही बताइए कौन ऐसा प्रमाण है जो सर्वज्ञका बाधक होता हो-प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम, उपमान, या अर्थापत्ति ? 'सर्वज्ञका प्रत्यक्ष
१. तेष्वपि म २। २. "सूक्ष्माद्यर्थोपदेशो हि तत्साक्षात्कर्तृपूर्वकः । परोपदेशलिङ्गाक्षानपेक्षावितथत्वतः ॥९॥" -तत्त्व.३गे...११ । "सूक्ष्मान्तरितदूरार्थाः कस्यचित्प्रत्यक्षाः अनुपदेशलिङ्गान्वयव्यतिरेकपूर्वकाविसंवादिनष्ट मुष्टिचिन्तालाभालाभसुखदुःखग्रहोपरागाधुपदेशकरणान्यथानुपपत्तेः ।"-बृहस्सवज्ञसि. पृ. १३० । “यो तद्विषयानुपदेशालिङ्गान्वयव्यतिरेकाविसंवादिवचनानुक्रमकर्ता स तत्साक्षात्कारी यथा अस्मदादियथोक्तजलशैत्यादिविषयवचनरचनानुक्रमकारी तद्दष्टा नष्टमुष्टयादिविषयानुपदेशलिङ्गान्वय. व्यतिरेकाविसंवादिवचनरचनानुक्रमकर्ता च कश्चिद्विमत्यधिकरणभावापन्नः पुरुष इति ।"-लघुसर्वज्ञसि. पृ. १००। सन्मति टी. पृ. ६५ । न्यायवि. वि. द्वि. पृ. २९.। ३. बाधकत्वेन भ. १, २, प. १, २, क. । आप्तमी. वृ. पृ. । २५ For Private & Personal Use Only
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