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________________ १८६ षड्दर्शनसमुच्चये [का० ४६. ६४५४५. सर्वज्ञत्वमप्यस्य केन प्रमाणेन ग्राह्यम् । न तावत्प्रत्यक्षेण, तस्येन्द्रियार्थसन्निकर्षोत्पन्नत्वेनातीन्द्रियार्थग्रहणासमर्थत्वात् । नाप्यनुमानेन, अव्यभिचारिलिङ्गाभावात् । ननु जगद्वैचित्र्यान्यथानुपपत्तिरूपं तदस्त्येवेति चेत् न, तेन सहाविनाभावाभावात्, जगद्वैचित्र्यस्य सार्वज्यं विनापि शुभाशुभकर्मपरिपाकादिवशेनोपपद्यमानत्वात् । ४६. किंचायं यदि सर्वज्ञः, तदा जगदुपप्लवकरणस्वैरिणः पश्चादपि कर्तव्यनिग्रहानसुरा हम लोगोंके ज्ञान आदि ।' इस अनुमानसे ईश्वरके गुणोंकी नित्यता खण्डित हो जाती है । अतः ईश्वरके ज्ञान आदिकी नित्यताका जो वर्णन आपने किया है वह भी खण्डित हो जाता है। ४५. ईश्वरकी सर्वज्ञता भी इसी तरह किसी भी प्रमाणसे सिद्ध नहीं होती। प्रत्यक्ष तो इन्द्रिय और पदार्थके सम्बन्धसे उत्पन्न होकर स्थूल तथा वर्तमान पदार्थोको जानता है इसलिए ईश्वरकी अतीन्द्रिय सर्वज्ञताको जानना उसकी सामर्थ्य के बाहर है। उसकी सर्वज्ञताका नियत सहचारी, उसके बिना न होनेवाला कोई निर्दोष लिङ्ग भी नहीं दिखाई देता जिसके द्वारा उसकी अतीन्द्रिय सर्वज्ञताका अनुमान लगाया जा सके। .. ईश्वरवादी-हम आप को ईश्वरको सर्वज्ञताको सिद्ध करनेवाला अकाट्य प्रमाण बताते हैं। देखो, यह विश्व कितना विचित्र है । एक मनुष्यके ही शरीरपर विचार करो तो मालूम हो जायेगा कि इसका सिरजनहार कितना कुशल तथा बुद्धिमान होगा। पेटमें भोजन जाता है उसका किस प्रक्रियासे रक्त आदि बनकर यह शरीररूपी मशीन पुष्ट हो कर अपना कार्य करती है। यह विचारते ही आश्चर्य होता है । आषाढ़का महीना आया, तो बादल घिर आये, बिजली चमकने लगी, वह रंग-बिरंगा इन्द्रधनुष मानो पृथिवीसे स्वर्ग तक एक पुल बनाया गया हो, वह हरी-भरी घास, वह नदियोंकी बाढ़ कहां तक कहें इस जगत्का एक-एक कण रहस्यपूर्ण है। वह अपने भीतर अपनी विचित्रताकी लम्बी कहानी छिपाये बैठा है। ऐसे विचित्र जगत्को क्या कोई सर्वज्ञ हुए बिना बना सकता है ? देखो, नाखून उखड़ जाता है तो वहां उसी प्रकारकी कठोर खालका आना शुरू होता है और नाखून फिर बन जाता है। यदि इसका बनानेवाला न होता तो कैसे नाखूनकी जगह चुन-चुनकर कठोर परमाणु फिट किये जाते तथा मुंहके भीतर तलुए में अत्यन्त कोमल। अतः जगत्की रहस्यमय अनोखी रचना ही ईश्वरकी सर्वज्ञताका सबसे बड़ा प्रमाण है। जैन-आपने जगत्की विचित्रताका जो चित्र खींचा है वह है तो बहुत सुन्दर, पर उसका ईश्वरकी सर्वज्ञताके साथ अविनाभाव रूपसे गठबन्धन करना निपट अज्ञानताका प्रदर्शन । जब ईश्वरमें साधारण रूपसे कर्तृत्व सिद्ध हो जाय, तब हो जगत्की विचित्रताका ईश्वरकी सर्वज्ञता के साथ सम्बन्ध जोड़ा जा सकता है। पर दुःख तो इसी बातका है कि किसी भी हेतुसे ईश्वरका कर्तृत्व सिद्ध नहीं होता। जगत्को विचित्रता अनगिनती प्राणियोंके असंख्य प्रकारके पुण्य-पापोंसे होती है। जिस प्राणीका जिस जातिके शुभ या अशुभ कर्मका उदय होता है उसी जातिको सुखदुःख सामग्री उत्पन्न होती जाती है। ४६. यदि ईश्वर सर्वज्ञ होता तो वह संसारमें अत्याचार करनेवाले राक्षसोंको पहले क्यों बनाता? यह तो एक मामूली आदमी भी समझता है कि 'जिस चीजको पीछे नष्ट करना पड़े उसे इले ही उत्पन्न न करना ही बेहतर है' कीचड़में पैर लिपटाकर धोने की अपेक्षा कीचड़से बचकर चलने में ही बुद्धिमानी है। जिन राक्षसोंको मारनेके लिए उसे स्वयं अवतार लेना पड़ा उनको उस सर्वज्ञने आखिर पहले बनाया ही क्यों था? हम-जैसे लोगोंको भी, जो उसकी सर्वज्ञता तथा १. परिपाक-वशे-म. २ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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