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- का० ४६९२८ ]
जनमतम् ।
न च क्षित्यादावप्यकृत्रिम संस्थानसारूप्यमस्ति, येनाकृत्रिमत्वबुद्धिरुत्पद्यते तस्यैवानभ्युपगमात्, अभ्युपगमे चापसिद्धान्तप्रसक्तिः स्यादिति । कृतबुद्धघुत्पादकत्वरूपविशेषणासिद्धेविशेषणासिद्धत्वं हेतोः ।
२७. सिध्यतु वा, तथाप्यसौ विरुद्धः, घटावाविव शरीरादिविशिष्टस्यैव बुद्धिमत्कर्तुरन
साधनात् ।
६ २८. नन्वेवं दृष्टान्तदान्तिक सोम्यान्वेषणे सर्वत्र हेतुनामनुपपत्तिरिति चेत् । न । धूमाद्यनुमाने महानसे तरसाधारणस्याग्नेः प्रतिपत्तेः । अत्राप्येवं बुद्धिमत्सामान्यप्रसिद्धेर्न विरुद्धत्वमित्यप्ययुक्तं दृश्यविशेषाधारस्यैव तत्सामान्यस्य कार्यत्वहेतोः प्रसिद्धेर्नादृश्यविशेषाधारस्य, तस्य स्वप्नेऽप्यप्रतीतेः, खरविषाणाधारतत्सामान्यवत् । ततो यादृशात्कारणाद्यादृशं कार्यमुपलब्धं विशेषण सिद्ध हो जाय तब उस सिद्धविशेषण हेतुसे प्रकृत अनुमान हो, और जब प्रकृत अनुमान हो जाय तब उससे कार्यत्व हेतु के कृतबुद्धयुत्पादकत्वरूप विशेषण की सिद्धि हो । दूसरे पक्ष में यदि अनुमानान्तर से कृतबुद्धयुत्पादकत्वरूप विशेषणको सिद्धि मानी जाती है तो उस अनुमानान्तरका उत्थान भी सविशेषण हेतुसे ही मानना चाहिए। अब इस अनुमानान्तर के हेतुके विशेषणको किसी तृतीय अनुमानसे सिद्ध करना होगा तथा तृतीय अनुमानके हेतुके विशेषणको चौथे अनुमानसे, इस तरह उत्तरोत्तर अनुमानोंकी कल्पनासे अनवस्था दोष आता है । अतः कार्यत्व हेतुके कृतबुद्धयुत्पादकत्व रूप विशेषण के सिद्ध न हो सकनेके कारण कार्यत्व हेतु विशेषणासिद्ध हो जाता है । $ २६. ईश्वरवादी - हम पहले ही बता चुके हैं कि - जिस जमीन को खोदकर जैसाका तैसा भर दिया है उसमें किसीको भी कृतबुद्धि नहीं होती अतः यह कोई नियम नहीं है कि 'जो कार्य हों वे कृतबुद्धि उत्पन्न करें ही ।'
जैन - आपका कहना युक्त नहीं है, क्योंकि – जिस जमीनको खोदकर जैसाका तैसा भर दिया वह अनखोदो जमीनके ही समान हो जाती है अतः वहाँ कृतबुद्धि नहीं भी हो, परन्तु पृथिवी आदि किस अकृत्रिम वस्तुकी समानता है जिसके कारण इनमें कृतबुद्धि नहीं हो पाती और अकृत्रिम बुद्धि ही इनमें सदा होती है ? कोई भी अकृत्रिम पृथिवी आदि तो आपने मानी ही नहीं है यदि पृथिवी आदि किसी नहीं रची गयी अकृत्रिम वस्तुकी समानता रखती है तो उनमें कार्यत्व हेतु असिद्ध ही हो जाता है । पृथिवी आदिको अकृत्रिम माननेपर तो आपके 'ईश्वर कृत' रूप सिद्धान्तका भी विरोध होता है। इस तरह 'कृतबुद्धिको उत्पन्न करना' इस विशेषणके असिद्ध होने से हेतु विशेषणासिद्ध हो जाता है ।
$ २७. अथवा यह मान भी लें कि पृथिवी आदिमें 'ये ईश्वरने बनाये हैं' यह कृतबुद्धि होती है फिर भी यह कार्यत्व हेतु विरुद्ध है, क्योंकि इससे घड़े आदिमें जैसा शरीरी अल्प बुद्धिवाला कर्ता देखा जाता है वैसा ही शरीरी ओर असर्वज्ञ ही कर्ता सिद्ध होगा । किन्तु आपको तो सर्वज्ञ और अशरीरी कर्ता इष्ट है और सिद्ध होता है उससे बिलकुल उलटा शरीरी ओर असर्वज्ञ, अतः इष्ट विरुद्ध सिद्ध करनेके कारण यह हेतु विरुद्ध है ।
$ २८. ईश्वरवादी - आप तो इस तरह कुतर्क करके बालकी खाल खींच रहे हैं । दृष्टान्त तथा दान्तिक – जिसकी सिद्धिके लिए दृष्टान्त दिया जा रहा है - में पूर्णरूप से समानता तो कहीं भी नहीं देखी जाती । 'चन्द्रमाके समान मुँह है' यहाँ क्या चन्द्रमाके, आकाश में रहना, रात्रिमें प्रकाश करना आदि सभी धर्म मुखमें देखे जाते हैं । दृष्टान्त तो किसी खास धर्मकी मुख्यता से दिया जाता है । पर्वत में अग्नि सिद्ध करनेके लिए दिये गये जो रसोईघरकी अग्निका दृष्टान्त दिया जाता है उसके भी सभी धर्म पर्वतको अग्निमें कहाँ पाये जाते हैं । दृष्टान्त और दान्तिक में यदि इस
१. प्रसाधनेन नन्वेवं म. २ । २. - सामान्यान्वे - म. २ । ३. नन्वत्रा-भ २ । २३
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