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________________ -का० ४६. ६२४ ] नेयायिकमतम्। १७५ तद्विशेषो वा। 'यद्याधः, तहि न ततो बुद्धिमत्कर्तृविशेषसिद्धिः, तेन समं व्याप्त्यसिद्धः, कि तु कर्तृसामान्यस्य, तथा च हेतोरकिंचित्करत्वं साध्यविरुद्धसाधनाद्विरुद्धत्वं वा । ततः कार्यत्वं कृतबुद्धपत्पादकम्, बुद्धिमत्कर्तुर्गमकं न सर्वम् । सारूप्यमात्रेण च गमकत्वे वाष्पादेरप्यग्नि प्रति गमकत्वप्रसङ्गः, महेश्वरं प्रत्यात्मत्वादेः सादृश्यात्संसारित्वकिचिज्जत्वाखिलजगदकर्तृत्वा . नुमापकानुषङ्गः, तुल्याक्षेपसमाधानत्वात् । ततो वाष्पधूमयोः केनचिवंशेन साम्येऽपि तथा कुतश्चिद्विशेषाभूमोऽग्नि गमयति न वाष्पादिः, तथा क्षित्यादीतरकार्यत्वयोरपि कश्चिद्विशेषोऽभ्युपगम्यः। wwwwwwwwwwwwwwwwwwww कार्यत्व रूप हेतुसे जगत्को ईश्वर रचित सिद्ध करना चाहते हैं या किसी खास प्रकारके कार्यत्वसे ? साधारण कार्यत्व-बनावटसे जगत्को ईश्वर रचित कहना ईश्वरको हँसी करना है । साधारण कार्यस्वकी तो साधारण कर्ता-जिस किसी भी अनिश्चित कर्तासे व्याप्ति है न कि ईश्वर-जैसे सर्वज्ञत्वादि गुणयुक्तविशेष कर्तासे । इस तरह जिस किसीके कर्ता सिद्ध होनेसे तो आपका प्रयोजन सिद्ध नहीं हो सकेगा। आपको तो अपने सर्वज्ञ अशरीरी ईश्वरको कर्ता सिद्ध करना है। सामान्य कार्यत्व हेतुने आपके विशेषकर्ताके विरुद्ध सामान्यकर्ताको सिद्ध किया है अतः यह हेतु इष्टसे उलटा सिद्ध करनेके कारण विरुद्ध है। कार्य किसी न किसी कर्तासे उत्पन्न होते हैं, यह तो मोटी तथा सर्वसम्मत बात है अतः आपका सामान्य कार्यत्व हेतु इससे अधिक कुछ भी सिद्ध न कर सकनेके कारण अकिचित्कर भी हो जाता है। कार्य जिन कारणोंसे उत्पन्न होते हैं वे ही कारण उनके कर्ता हैं। उन कार्योंको भोगनेवाले प्राणी भी अपने कर्मों के द्वारा उनके कर्ता हो सकते हैं। इसलिए जो कार्य 'कृतबुद्धि-ईश्वरने इनको बनाया' इस कृतबुद्धिको उत्पन्न करते हैं वे ही कार्य ईश्वरको अपना कर्ता सिद्ध कर सकते हैं सभी कार्य नहीं। यदि 'कार्य कार्य सब एक हैं, कार्य कार्य सब बराबर हैं। इस बाईस पसेरीके भाव सभी कार्योको तोलोगे और सामान्य कार्यत्व हेतुसे भी विशेष ईश्वरको कर्ता सिद्ध करनेका असफल प्रयत्न करोगे, तब कोई मूर्ख धुंआ और भाफमें भी धुंधलेपनकी समानता देखकर उन्हें एक मानकर भाफसे भी अग्निकी सिद्धि करने लगेगा। भाफ और धुंआमें धुंधलेपनकी दृष्टिसे तो समानता है ही। इसी तरह 'आत्मा आत्मा सब बराबर' इस साधारण नियमसे ईश्वर तथा हमारी आत्मामें भी समानता है अतः आत्मत्व हेतुके द्वारा ईश्वरको भी हमारी ही तरह संसारी, असर्वज्ञ तथा संसारका अकर्ता सिद्ध हो जाना चाहिए। जो प्रश्न तथा उत्तर आप अपने कार्यत्व सामान्य हेतुके समर्थमें दोगे वे ही प्रश्नोत्तर यहां भी किये जा सकते हैं। अतः जिस प्रकार भाफ और धुंआमें धुंधलेपनकी दृष्टिसे थोड़ी-बहुत समानता होनेपर भी अपने विशेष धर्मों के कारण धूम ही अग्निका अनुमापक होता है भाफ नहीं, अथवा जिस प्रकार आत्मत्वको दृष्टिसे ईश्वर तथा हम लोगोंमें समानता होनेपर भी हममें ही रहनेवाला ,कर्मयुक्त आत्मत्व हो संसारित्व या असर्वज्ञता सिद्ध करता है सामान्य आत्मत्व नहीं; ठीक इसी तरह पृथिवी आदि कार्य तथा घड़े आदि कार्यों में यद्यपि कार्यत्व रूप स्थूल दृष्टिसे समानता है फिर भी उसमें कोई ऐसी विशेषता अवश्य हो माननी पड़ेगी जिससे वह विशेषकर्ताका अनुमान करा सके। अतः सामान्यकार्यत्व हेतु ईश्वरको जगत्कर्ता सिद्ध नहीं कर सकता। १. तहि न बुद्धिमत्कत विशेषबुद्धिः-म. २। २. -साधनाद्विरुद्धं वा-प. १, ३। -साधकत्वाद्विरुद्धं वा- म. २। ३. वा कि च तत्कार्यत्वम्-भ. ।। ४. -त्यानुषङ्ग:- भ. २। ५. -कार्यतयो-म. २॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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