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जेनमतम् ।
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१४. एकत्वं च क्षित्यादिकर्तुरनेककर्तृणामेकाधिष्ठातृनियमितानां प्रवृत्त्युपपत्तेः सिद्धम् । प्रसिद्धा हि स्थपत्यादीनामेकपूत्रधारपरतन्त्राणां महाप्रासादादिकार्यकरणे प्रवृत्तिः ।
$ १५. न च ईश्वरस्यैकरूपत्वे नित्यत्वे च कार्याणां कादाचित्कत्वं वैचित्र्यं च विरुध्यते इति वाच्यम् । कादाचित्कविचित्रसहकारिलाभेन कार्याणां कादाचित्कत्ववैचित्र्यसिद्धौ विरोधासंभवात् ।
$ १४. जिस प्रकार बहुत-से छोटे-मोटे कार्यकर्ता अपने प्रधान संचालकके अधीन रहते हैं, जिस तरह छोटे-मोटे अनेक राजा-महाराजा एक सम्राट् - चक्रवर्तीके इशारेपर चलते हैं तथा जैसे अनेक देव आदि एक इन्द्रकी आज्ञामें रहते हैं उसी प्रकार संसारके समस्त चक्रवर्ती इन्द्र आदि एक महान् विभूतिरूप ईश्वर के नियमसे नियन्त्रित होकर अपनी प्रवृत्ति करते हैं । उसके नियमके बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता । वही सर्वश्रेष्ठ, सर्वशक्तिशाली अन्तिम अधिष्ठाता ईश्वर है । अतः वह एक ही हो सकता है । अपने नायक - नेता माननेपर तो कार्य नष्ट हो जायँगे । उनमें मतभेद होनेपर विचारे कार्यों की दुर्दशा हो जायगी । अतः सबका नियन्ता ईश्वर एक ही माना जाना चाहिए। यह तो प्रसिद्ध ही है कि - छोटे-मोटे अनेक मजदूर कारीगर आदि एक मुख्य इंजीनियर के अधीन रहकर ही बड़े-बड़े राजमहल बनाने में प्रवृत्त होते हैं । मुख्य इंजीनियर ही उन सबको दिशा प्रदर्शन करके उनका नियन्त्रण करता है । इसी तरह इस विश्वका प्रधान कुशल इंजीनियर ईश्वर है और वह एक है, नित्य है ।
$ १५. शंका - ईश्वर जब नित्य तथा एक रूप है, उसका स्वभाव सदा एक जैसा ही रहता है; तब उससे उत्पन्न होनेवाले इस जगत् में यह आकाश, ये चमचमाते तारे, वह तड़कती हुई बिजली, यह झर-झर झरनेवाला पानी, वह धधकती हुई आग, यह सनसनानेवाली वायु यह सब विचित्रता कैसे होगी? एक रूप कारणसे तो एक ही प्रकारके कार्यं उत्पन्न होंगे। इसी तरह जब
नित्य समर्थ है तब कार्य भी सभी एक ही साथ उत्पन्न होंगे, उनका कभी-कभी होना -- अर्थात् वसन्तमें ही आमकी बौर आना, बरसात में ही सर्वत्र हरी-भरी घासका गलीचा बिछना, ठण्ड में कुहरेका छा जाना, दिनमें ही सूर्यका तपना - यह सब कभी-कभी होना - नियत समयपर नियत ऋतु आदिका होना खटाई में पड़ जायगा। क्योंकि नित्य कार्यसे तो सभी कार्य युगपत् ही उत्पन्न होते हैं । कार्योंका कभी-कभी होना तो अन्य हेतुओंकी अपेक्षा रखता है । यदि ईश्वर अन्य कारणों की अपेक्षा रखे तो वह परतन्त्र हो जायगा ।
समाधान - अकेले ईश्वरसे ही ये सब कार्यं उत्पन्न नहीं होते ईश्वरके सिवाय अन्य भी सहकारी उत्पादक कारण हैं । सब मिलकर ही कार्योंको उत्पन्न करते हैं । ईश्वर तो उन पुरजोंको फिट करनेवाला है । वह तो नियन्ता है, निर्देशक है । अतः ईश्वर भले ही सदा एक रूपमें रहे, परन्तु अन्य सहकारीकारण तो अपने समयानुसार कभी-कभी ही इकट्ठे हो पाते हैं, उन सहकाकारणों में रहस्यमय विचित्रताएँ भी पायी जाती हैं इसलिए जब-जब जैसे-जैसे सहकारीकारण जुटते जाते हैं ईश्वर उनका विनियोग कर अर्थात् उनका ठीक यथास्थान उपयोग कर विचित्र कार्योंको उत्पन्न करता जाता है । अत: कार्यों में विचित्रता तथा उनका नियत समयपर ही होना विचित्र-विचित्र सहकारीकारणोंकी कृपाका ही फल है । ईश्वर सदा तैयार रहता है, ये सहकारीकारण ही धीरे-धीरे जुड़ पाते हैं ।
१. " अत एवैक ईश्वर इष्यते न द्वौ बहवो वा भिन्नाभिप्रायतया लोकानुग्रहोपघातवैशसप्रसङ्गात्, इच्छाविसंवादसंभवेन च ततः कस्यचित्संकल्पविघातद्वारकानैश्वर्यप्रसङ्गाद् इत्येक एवेश्वरः ।" न्यायमं.
प्रमाण, पृ. १८७ ।
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