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________________ -का० ३५.६८] सांख्यमतम् । १४३ $ ७. अथ तत्त्वपञ्चविंशतिमेव विवक्षुरादौ सत्त्वादिगुणस्वरूपमाह । सत्त्वं रजस्तमश्चेति ज्ञेयं तावद्गुणत्रयम् । प्रसादतापदैन्यादिकार्यलिङ्ग क्रमेण तत् ॥३५॥ ६८.तावच्छब्दः प्रक्रमे तच्चैवं ज्ञातव्यं (व्यः)। तेषु पञ्चविंशतौ तत्त्वेषु सत्त्वं सुखलक्षणम्, रजो दुःखलक्षणम्, तमश्च मोहलक्षणमित्येवं प्रथमं तावद्गुणत्रयं जेयम् । तस्य गुणत्रयस्य कानि लिङ्गानीत्याह-'प्रसाद' इत्यादि । तत्सत्वादिगुणत्रयं क्रमेण प्रसादतापदैन्यादिकार्यलिङ्गम्। प्रसादः-प्रसन्नता, तापः-संतापः, दैन्यं-दीनवचनादिहेतुविषण्णता, द्वन्द्व प्रसादतापदैन्यानि, तानि आदिः प्रकारो येषां कार्याणां तानि प्रसादतापदैन्यादीनि, प्रसादतापदैन्यादीनि कार्याणि लिङ्ग-गमकं-चिह्नं यस्य तत्प्रसादतापदैन्यादिकार्यलिङ्गम् । अयं भावः। प्रसादबुद्धिपाटव. लाघवप्रसवानभिष्वङ्गाद्वेषप्रोत्यादयः कार्य सत्त्वस्य लिङ्गम् । तापशोषभेदचलचित्ततारतम्भोद्वेगाः कार्य रजसो लिङ्गम् । दैन्यमोहमरणसादनबीभत्साज्ञानागौरवादीनि कार्य तमसो लिङ्गम् । एभिः ... ७. इन पचीस तत्त्वोंके कहनेकी इच्छासे सर्वप्रथम सत्त्व आदि गुणोंका स्वरूप कहते हैं सत्त्व, रज और तम ये तीन गुण हैं। प्रसाद, ताप तथा दीनता आदि कार्योसे उनका क्रमशः अनुमान होता है ॥३५॥ १८. श्लोकमें 'तावत्' शब्द प्रक्रमार्थक है। वह इस प्रकारका है-उन पचीस तत्वोंमें सर्वप्रथम सुखलक्षणवाला सत्त्व, दुःखात्मक रज, तथा मोहस्वरूप तम इन तीन गुणोंका स्वरूप समझ लेना चाहिए। ये सत्त्वादि तीनों गुणोंका क्रमशः प्रसन्नता, ताप तथा दीनता आदि कार्यों द्वारा अनुमान होता है। प्रसाद-प्रसन्नता खुशतबियती, ताप-सन्ताप, जलन, डाह, दैन्य-दीनताके वचन कहनेसे होनेवाली चेहरेकी विषण्णता, विषाद आदि नानाप्रकारके कार्य ही सत्त्व आदि गुणोंके लिंग अर्थात् पहचान करानेवाले चिह्न होते हैं। तात्पर्य यह कि प्रसन्नता, बुद्धिकी पटुताचतुराई, लाघव-निरभिमानता-चित्तमें घमण्ड न होनेसे हलकापन, प्रसव-प्रजनन, अनभिष्वंगअनासक्ति, द्वेषरहितता, प्रीति आदि कार्य सत्त्वगुणके चिह्न हैं-अर्थात् इनसे सत्त्वगुणकी पहचान होती है । ताप-जलन, शोष-डाहके कारण हृदय तथा शरीरका सूख जाना, भेद-कूटबुद्धि, चित्तको चंचलता, स्तम्भ-किसीको सम्पत्ति देखकर भौंचक्का हो जाना, उद्वेग-रोष आदि रजोगुणके कार्य हैं अर्थात् इनसे रजोगुणका अनुमान होता है । दैन्य-दीनता, मोह-मूढता, अज्ञान, मरण, सादनदूसरेको बाधा पहुँचाना, बीभत्स-भयानकता, डरावनापन, अज्ञान-मूर्खता या विपरीतज्ञान, अगौरव-स्वाभिमानशून्य होना आदि तमोगुणके कार्य हैं । अर्थात् इनके द्वारा तमोगुणका परिचय होता है । इन कार्योंसे सत्त्वादिगुणोंका अनुमान किया जाता है। जैसे-संसारमें जो सुखी होता है वह आर्जव-सरलता, मादेव-निरभिमानवृत्ति, कोमलचित्तता, सत्य, शौच-निर्लोभवृत्ति या १. "सत्त्वं लघुप्रकाशकमिष्टमुपष्टम्भकं चलं च रजः। गुरु वरणकमेव तमः...॥" -61. का. १३ । "त्रैगुण्यम्॥सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः भावे ण्यस्वैगुण्यम् । प्रसादो लाघवं सङ्गः प्रसङ्गात् प्रीतिरार्जवम्।। तुष्टिस्तितिक्षा सत्त्वस्य रूपं साक्षात् सुखावहम् । शोकस्तम्भद्वेषतापखेदभोगाभिमानिता।। रजोरूपाण्यनेकानि बहुदुःखप्रदानि वै । तमो नामाच्छादनादि बीभत्सावरणादि च॥ दैन्यगौरवनिद्रादिप्रमादालस्यलक्षणम् । मोहात्मकमनन्तं तदेवं त्रैगुण्यमीरितम् । सत्त्वं प्रकाशकं विद्याद्रजो विद्यात् प्रवर्तकम् ॥ विनाशकं तमो विद्यात् त्रैगुण्यं नाम संज्ञितम् ।"-सांख्यसं. पृ. १४ । भगवद्गी. ११६-८। २. तावच्छब्दः अवधारणे ( प्रक्रमे ) आ.। तावच्छब्दोऽपक्रमे भ. २। ३. -शतितत्त्वेषु भ. २। ४. त्रयमेव ज्ञेयम् आ.। ५. "प्रकाशशीलं सत्त्वं, क्रियाशीलं रजः, स्थितिशीलं तम इति ।"-योगद. व्यासमा. २०१८। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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