________________
-का० ३३.६५] सांख्यमतम् ।
१४१ ६३. सांख्याः केचिदीश्वरदेवाः, अपरे च निरीश्वराः। ये च निरीश्वरास्तेषां नारायणो देवः। तेषामाचार्या विष्णुप्रतिष्ठाकारकाश्चैतन्यप्रभृतिशब्दरभिधीयन्ते। तेषां मतवक्तारः कपिला
ञ्चशिखभार्गवोलकादयः, ततः सांख्याः कापिला इत्यादिनामभिरभिधीयन्ते। तथा कपिलस्य परमर्षिरिति द्वितीयं नाम, तेन तेषां पारमर्षा इत्यपि नाम ज्ञातव्यम् ।
६४. वाराणस्यां तेषां प्राचुर्यम् । 'बहवो मासोपवासिका ब्राह्मणा अचिर्गिविरुद्धधूममार्गानुगामिनः । सांख्यास्त्वचिर्मार्गानुगाः । तत एव ब्राह्मणा वेदप्रिया यज्ञमार्गानुगाः । सांख्यास्तु हिंसाढयवेदविरता अध्यात्मवादिनः । ते च स्वमतस्य महिमानमेवमामनन्ति । तदुक्तं माठरप्रान्ते -
"हस पिब लल खाद मोद नित्यं भक्ष्व च भोगान् यथाभिकामम् ।
यदि विदितं ते कपिलमतं तत्प्राप्स्यसि मोक्षसोख्यमचिरेण ॥१॥" शास्त्रान्तरेऽप्युक्तम् -
"पञ्चविंशतितत्त्वज्ञो यत्र तत्राश्रमे रतः।
शिखी मुण्डी जटी वापि मुच्यते नात्र संशयः ॥२॥३३॥ १५. अथ शास्त्रकारः सांख्यमतमुपदर्शयति ।
३. कुछ सांख्य तो ईश्वरको देव मानते हैं तथा कुछ निरीश्वरवादी हैं। जो निरीश्वर हैं उनके नारायण ही देवता हैं। इनके आचार्य विष्णु प्रतिष्ठाकारक चैतन्य आदि शब्दोंसे पुकारे जाते हैं। कपिल आसरि पंचशिख भार्गव तथा उलक आदि सांख्यमतके प्रख्यात वक्ता हैं। इसीलिए ये सांख्य तथा कपिल आदि शब्दोंसे व्यवहृत होते हैं। कपिलका 'परमर्षि' भी नाम है, अतः ये पारमर्ष भी कहे जाते हैं।
६४. सांख्य लोग वाराणसी में प्रचुरतासे रहते हैं। बहुत-से मासोपवासी साधु एक-एक माहका उपवास करनेवाले हैं। ब्राह्मण लोग अचिमार्गसे विरुद्ध धूममार्गके अनुयायी होते हैं। सांख्यलोग अर्चिमार्गका ही अनुसरण करते हैं। इसीलिए ब्राह्मण वेदानुयायी तथा याज्ञिक अनुष्ठान करनेवाले होते हैं। सांख्य वैदिकी हिंसासे विरक्त रहकर आध्यात्मिक साधना करते हैं। ये लोग अपने मतकी महिमाका इस प्रकार वर्णन करते हैं। माठरवृत्तिमें कहा है कि-"खूब हंसो, मजेसे पीओ, लाड़ आनन्द करो, खूब खाओ, खुशीसे मौज करो, हमेशा रोज-ब-रोज इच्छानुसार भोगोंको भोगो। इस तरह जो तबियतमें आवे बेखटके करो, इतना सब करके भी यदि तुम कपिलमतको अच्छी तरह समझ लोगे तो विश्वास रखो कि तुम्हारी मुक्ति समीप है। तुम शीघ्र ही कपिल मतके परिज्ञानमात्रसे सबकुछ मजामौज करते हुए भी मुक्त हो जाओगे ॥१॥ दूसरे शास्त्रोंमें भी कहा है"सांख्यके पचीस तत्त्वोंको यथावत् जाननेवाला चाहे जिस आश्रममें रहे, वह चाहे शिखा रखे, मुण्ड मुड़ावे या जटा धारण करे उसकी मुक्ति निश्चित है। सांख्य तत्त्वोंका ज्ञाता बिना शकके मोक्षलाभ करता है ॥२॥"
६५. अब शास्त्रकार सांख्यमतका निरूपण करते हैं१. पंचशंख भ. २ । २. बाह्या मा-भ. १, २, प. १, २। ३. "हस पिब लल मोद नित्यं विषयानुपभुज कुरु च मा शङ्काम् । यदि विदितं ते कपिलमतं तत्प्राप्स्यसे मोक्षसौख्यं च ॥" -सां. का. माठर. पृ. ५३। ४. -उद्धृतोऽयम्-सा. का. माठर, पृ. ३ । शास्त्रवा. का. ३॥७॥ तत्वसं. प. पू. १७। "तथा च उक्तं पञ्चशिखेन प्रमाणवाक्यम्-पञ्चविंशतितत्त्वज्ञः""" -तत्वयाथा. पृ. ६१। सन्मति टी. पृ. २४२ । न्यायाव. टी. पृ. १४ । तत्वस. सू. वृ. १२४॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org