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________________ -का० ३१.६१०१] नैयायिकमतम् । शब्दस्य प्रागुच्चारणावग्रहणम् । अथानुपलब्धिः स्वात्मनि न वर्तते चेत्, तहनुपलब्धिः स्वरूपेणापि नास्ति । तथाप्यनपलब्धेरभाव उपलब्धिरूपस्ततोऽपि शब्दस्य प्रागच्चारणादप्यस्तित्वं स्यादिति । द्वेधापि प्रयत्नकार्यत्वाभावान्नित्यः शब्द इति २१ । १००. साध्यधर्मनित्यानित्यविकल्पेन शब्दस्य नित्यत्वापादनं नित्यसमा जातिः। अनित्यः शब्द इति प्रतिज्ञाते जातिवादी विकल्पयति। येयमनित्यता शब्दस्योच्यते सा किमनित्या नित्या वेति । यद्यनित्या तदियमवश्यमपायिनीत्यनित्यतायाः अपायान्नित्यः शब्दः। अथानित्यता नित्यैव तथापि धर्मस्य नित्यत्वात्तस्य च निराश्रयस्यानुपपत्तेस्तवाश्रयभूतः शब्दोऽपि नित्य एव स्यात्, तस्यानित्यत्वे तद्धर्मस्य नित्यत्वायोगात्। इत्युभयथापि नित्यः शब्द इति २२। ६१०१. एवं सर्वभावानामनित्यत्वोपपादनेन प्रत्यवस्थानमनित्यसमा जातिः । घटसाधर्म्यमनित्यत्वेन शब्दस्यास्तीति तस्यानित्यत्वं यदि प्रतिपाद्यते, तदा घटेन सर्वपदार्थानामस्त्येव किमपि सावय॑मिति तेषामप्यनित्यत्वं स्यात् । अथ पदार्थान्तराणां तथाभावेऽपि नानित्यत्वं तहि शब्दस्यापि तन्मा भूदिति, अनित्यत्वमात्रोपपावनपूर्वकविशेषोद्भावनादविशेषसमातो भिन्नेयं जातिः २३। ढंकी हुई वृक्षको जड़ या जमीनमें गड़ी हुई कोल आदिकी मिट्टीरूप आवरणके कारण अनुपलब्धि है उसी तरह उच्चारणसे पहले शब्दकी भी आवरणके कारण ही अनुपलब्धि है। यदि अनुपलब्धि स्वरूपसत् नहीं है अर्थात् अनुपलब्धि नहीं है, तो आवरणकी अनुपलब्धि न होनेसे आवरणकी उपलब्धि ही फलित होती है । तब भी उच्चारणसे पहले शब्दका अस्तित्व ही सिद्ध होता है। इस तरह दोनों ही प्रकारसे शब्द प्रयत्नका कार्य नहीं हो सकता अतः उसे नित्य ही मानना चाहिए। $१००. साध्यमें नित्य अनित्य विकल्प करके उसमें नित्यत्वका आपादन करना नित्यसमा जाति है। जैसे-शब्द अनित्य है' इस प्रतिज्ञामें जातिवादो विकल्प करता है कि-'आपने जो यह शब्दको अनित्यता कही है वह अनित्य है या नित्य ? यदि अनित्यता अनित्य है; तब यह अवश्य ही नष्ट होगी, अतः अनित्यताके नष्ट होनेपर तो शब्द नित्य ही हो जायेगा। यदि अनित्यता नित्य है; शब्दमें सदा रहती है। तब धर्मके नित्य होनेसे उसके आश्रयभूत शब्दको भी नित्य ही होना चाहिए, क्योंकि धर्म निराश्रय रह ही नहीं सकता अतः नित्य धर्मका आश्रय भी नित्य ही होना चाहिए। यदि आश्रयभूत शब्द अनित्य है, तो उसमें रहनेवाला अनित्यत्वधर्म नित्य कैसे हो सकता है ? इस तरह दोनों ही विकल्पोंमें शब्दमें नित्यता ही सिद्ध होती है। १०१. एक पदार्थको अनित्यता देखकर सभी पदार्थोंमें अनित्यताको सिद्धि करके दूषण देना अनित्यसमा जाति है। जैसे-'यदि शब्दमें अनित्यत्व रूपसे घटकी सदृशता पायी जाती है इसलिए वह अनित्य है तब घटके साथ सभी पदार्थों की भी तो किसी न किसी रूपमें ( सद्रूपमें ) समानता है ही इसलिए सभी पदार्थों में घड़ेकी तरह अनित्यता होनी चाहिए। यदि अन्य सब पदार्थों में घटकी सद्रूपसे समानता होनेपर भी अनित्यता नहीं मानते तब शब्दमें भी अनित्यता नहीं माननी चाहिए। अविशेषसमा जातिमें तो जिस किसी भी धर्मकी अपेक्षासे सब पदार्थों में समानताका प्रसंग दिया जाता है परन्तु अनित्यसमा जातिमें केवल अनित्यरूप विशेष धर्मसे ही सब पदार्थों में समानता दिखाई जाती है। १. “साध्यमनित्यत्वविकल्पेन शब्दनित्यत्वापादनं नित्यसमा जातिर्भवति ।" -न्यायक. पृ. २०। २. "सर्वभावानित्यत्वोपपादनेन प्रत्यवस्थानमनित्यसमा जातिभवति ।" -न्यायक. पृ. २१ । ३.-मित्येतेषाम-भ.२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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