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________________ १२४ षड्दर्शनसमुच्चये [ का० ३१. ६९१कत्वात्, घटवदित्युक्ते जातिवाद्याह। यथा घटः प्रयत्नानन्तरीयकोऽनित्यो दृष्टः, एवं प्रतिदृष्टान्त आकाशं नित्यमपि प्रयत्नानन्तरीयकं दृष्टं, कूपखननप्रयत्नानन्तरं तदुपलम्भादिति । न चेदमनैकान्तिकत्वोद्भावनं भङ्ग्यन्तरेण प्रत्यवस्थानात् १२ । ६९१. अनुत्पत्त्या प्रत्यवस्थानमनुत्पत्तिसमा जातिः। अनुत्पन्ने शब्दाख्ये धर्मिणि कृतकत्वं धर्मः क वर्तते । तदेवं हेत्वाभावादसिद्धिरनित्यत्वस्येति १३।। ९२. साधर्म्यसमा वैधय॑समा वा या जातिः पूर्वमुदाहारि सैव संशयेनोपसंहियमाणा संशयसमा जातिर्भवति । किं घटसाधात्कृतकत्वादनित्यः शब्द उत तद्वैधादाकाशसाधादमूर्तत्वान्नित्य इति १४। ९३. द्वितीयपक्षोत्थापनबुद्धया प्रयुज्यमाना सैव साधम्र्यसमा वैधय॑समा , जातिः प्रकरणसमा भवति । तत्रैवानित्यः शब्दः कृतकत्वाद् घटवविति प्रयोगे नित्यः शब्दः श्रावणस्वाच्छन्दत्ववदिति । उद्धावनप्रकारभेदमात्रेण च जातिनानात्वं द्रष्टव्यम् १५ । है जैसे कि घड़ा' यह कहनेपर जातिवादी कहता है कि-प्रयत्न करनेपर तो पदार्थको उत्पत्ति भी होती है तथा अभिव्यक्ति भी, अतः यद्यपि घड़ा प्रयत्नानन्तरीयक अर्थात् प्रयत्नका अविनाभावी होकर अनित्य देखा गया है फिर भी नित्य आकाशरूप प्रतिदृष्टान्त मौजूद है। कुआं खोदने. पर गड्ढे में आकाश निकल आता है, अतः जिस तरह प्रयत्नानन्तरीयक होनेपर भी आकाश नित्य है उसी प्रकार शब्दको भी नित्य होना चाहिए।' यद्यपि यह जाति प्रयत्नानन्तरीयक हेतुमें व्यभिचार दिखानेके कारण अनेकान्तिक हेत्वाभास सरीखी मालूम होती है। परन्तु अनैकान्तिक हेत्वाभासमें जहाँ केवल हेतुकी मात्र विपक्षवृत्ति दिखाई जाती है, तब इसमें व्यभिचारके स्थानको प्रतिदष्टान्तके रूपमें उपस्थित करके पक्षमे साध्याभावका प्रसंग दिया जाता है। इस तरह परिपाटीमें भेद होनेसे यह अनैकान्तिक हेत्वाभास रूप नहीं है। ९१. धर्मीके उत्पत्तिके पहले कारणोंका अभाव दिखाकर खण्डन करना अनुत्पत्तिसमा जैसे-यदि शब्द नामक धर्मी अनत्पन्न है तो कृतकत्व हेत कहां रहेगा? अर्थात आश्रयासिद्ध हेत्वाभास हो जायेगा । जब हेतु ही नहीं रहा तब साध्यको सिद्धि कैसे होगी? यदि उत्पत्तिके पहले भी शब्द उत्पन्न अर्थात् विद्यमान है तो वह नित्य हो जायेगा। ९२. पूर्वोक्त साधर्म्यसमा या वैधव्समा जाति जब साध्य में सन्देह उत्पन्न करने के लिए प्रयक्त होती है तब वही संशयसमा जाति कही जाती है। जैसे 'घटके कृतकत्वरूप साधर्म्यसे शब्द अनित्य है, अथवा आकाशके अमूर्तत्वरूप साधर्म्यसे नित्य ? अथवा 'घटके कृतकत्वरूप साधर्म्यसे शब्दको अनित्य माना जाय अथवा घटके ही अमूर्तत्वरूप विलक्षणधर्मसे नित्य ?' ९३. पूर्वोक्त साधर्म्यसमा या वैधम्यसमा जाति जब दूसरे विरुद्धपक्षको खड़ा करनेकी दृष्टिसे प्रयुक्त होती है तब वही प्रकरणसमा कही जाती है। जैसे-'शब्द अनित्य है क्योंकि वह घड़ेकी तरह कृत्रिम है' इसी प्रयोगमें 'शब्द नित्य है क्योंकि वह श्रोत्र इन्द्रियके द्वारा सुना जाता है जैसे शब्दत्व' यह कहकर शब्द नित्यत्व नामका एक दूसरा ही पक्ष खड़ा कर देना प्रकरणसमा जाति है। इन जातियों में कहनेके ढंगकी विचित्रताके कारण ही परस्पर भेद है। १. न चैतदन-भ. २ । २. “अनुत्पत्त्या प्रत्यवस्थानमनुत्पत्तिसमा जातिर्भवति ।"-न्यायक, पृ. ११ । ३. “साधर्म्यवैधर्म्यसमा जातिर्या पूर्वमुदाहृता सैव संशयेनोपक्रियमाणा संशयसमा जातिर्भवति ।" -न्यायक. पृ. १९ । ४. वा भ. २। ५. “द्वितीयपक्षोत्थापनबुद्धया प्रयुज्यमाना सैव साधर्म्यसमा वैधर्म्यसमा जातिः प्रकरणसमा भवति ।"-न्यायक. पृ.१९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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