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________________ १२३ -का० ३१. ६९०] नैयायिकमतम् । ६८७. साध्यसाम्यापादनेन प्रत्यवस्थानं साध्यसमा जातिः। यदि यथा घटस्तथा शब्दः प्राप्तं तहि यथा शब्दस्तथा घट इति, शब्दश्च साध्य इति घटोऽपि साध्यो भवेत्, ततश्च न साध्यः साध्यस्य दृष्टान्तः स्यात् । न चेदेवं तथापि वैलक्षण्यात्सुतरां न दृष्टान्त इति । ६८८. प्राप्त्यप्राप्तिविकल्पाभ्यां प्रत्यवस्थान प्राप्त्यप्राप्तिसमे जाती । यदेतत्कृतकत्वं साधनमुपन्यस्तं तत्कि प्राप्य साध्यां साधयत्यप्राप्य वा। प्राप्य चेत्, तहि द्वयोविद्यमानयोरेव प्राप्तिर्भवति न सबसतोरिति । द्वयोश्च सत्त्वात्कि कस्य साध्यं साधनं वा। अप्राप्य तु साधनत्वमयुक्तमतिप्रसंगादिति ९-१० ६८९. प्रसंगापादनेन प्रत्यवस्थानं प्रसंगसमा जातिः। यद्यनित्यत्वे कृतकत्वं साधनं, तवा कृतकत्वे कि साधनं, तत्साधनेऽपि कि साधनमिति ११॥ ६९०. प्रतिदृष्टान्तेन प्रत्यवस्थानं प्रतिदृष्टान्तसमा जातिः । अनित्यः शब्दः प्रयत्नानन्तरीय ६८७. दृष्टान्तमें साध्यकी असिद्धत्वादि रूप समानताका प्रसंग देकर खण्डन करना साध्यसमा जाति है । यथा 'जैसा घड़ा है वैसा ही शब्द है' तो इसका अर्थ यह भी हुआ कि 'जैसा शब्द है वैसा घड़ा है' क्योंकि समानता तो दुतरफा हो होनी चाहिए । चूंकि शब्द अभी साध्य-असिद्ध है इसलिए घड़ेको भी साध्य होना चाहिए । और जब घड़ा साध्य-असिद्ध हो गया तब वह दृष्टान्त नहीं रह सकेगा, क्योंकि दृष्टान्त तो प्रसिद्ध होता है, जो स्वयं साध्य-असिद्ध है वह दूसरे साध्यको सिद्ध करनेके लिए दृष्टान्त नहीं बन सकता। यदि वह साध्य के समान असिद्ध नहीं है, अर्थात् साध्यकी समानता उसमें नहीं पायी जाती, तब ऐसा विलक्षण पदार्थ अन्वय दृष्टान्त कैसे हो सकता है ? अन्वय दष्टान्त तो साध्यके समानधर्मवाला ही होता है। ६८८. प्राप्ति और अप्राप्तिका प्रश्न उठाकर खण्डन करना प्राप्ति-अप्राप्तिसमा जातियां हैं। जैसे-यह कृतकत्वसाधन अपने अनित्यत्वरूप साध्यको प्राप्त करके उससे सम्बन्ध स्थापित करके उसकी सिद्धि करता है, अथवा बिना प्राप्त किये ही? यदि सम्बन्ध रखकर साध्यकी सिद्धि करता है; तो प्राप्ति अर्थात् सम्बन्ध तो दो विद्यमान-सिद्ध पदार्थों में ही होता है, एक मौजूद तथा दूसरा गैरमौजूद हो तो उनमें सम्बन्ध नहीं हो सकता । इसलिए जब हेतु और साध्य दोनों ही सत्विद्यमान-सिद्ध हैं तब कौन किसका साधन तथा कौन किसका साध्य होगा? एक साधन तथा दूसरा साध्य क्यों होगा ? या तो दोनों ही साध्य होंगे या दोनों ही साधन । यदि हेतु साध्यको प्राप्त किये बिना ही उसकी सिद्धि करे, तो धूमहेतुको जलरूप साध्यकी भी सिद्धि करनी चाहिए। इस तरह इस पक्षमें अतिप्रसंग दोष होता है। ६८९. दृष्टान्तमें भी साधनको आवश्यकताका प्रसंग देकर खण्डन करना प्रसंगसमा जाति है । जैसे-यदि अनित्य साध्यकी सिद्धिके लिए कृतकत्व रूप साधनका प्रयोग किया गया है तो कृतकत्वकी सिद्धिके लिए कौन-सा साधन होगा? उस साधनकी सिद्धिके लिए भी अन्य साधनका प्रयोग होना चाहिए। $९०. प्रतिदृष्टान्त अर्थात् साध्यका अभाव सिद्ध करनेवाले दृष्टान्तका प्रसंग देकर खण्डन करना प्रतिदृष्टान्तसमा जाति है । यथा, 'शब्द अनित्य है क्योंकि वह प्रयत्न करनेपर उत्पन्न होता १. “साध्यसाम्यापादनेन प्रत्यवस्थानं साध्यसमा जातिर्भवति।" -न्यायक. पृ. १८। २. प्राप्तस्तहि आ., क.। ३. "प्राप्त्यप्राप्तिविकल्पाभ्यां प्रत्यवस्थान प्राप्त्यप्राप्तिसमे जाती भवतः।"-न्यायक. पृ.१०। ४. चेत द्वयोवि-प. १, २, भ. १,२। ५. "प्रसङ्गापादनेन प्रत्यवस्थानं प्रसङ्गसमा जातिर्भवति।" -न्यायक. पृ. १८। ६."प्रतिदृष्टान्ते प्रत्यवस्थानं प्रतिदृष्टान्तसमा जातिः।"-न्यायक. पृ. १८। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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