________________
- का० ३१. ६७७] नैयायिकमतम् ।
११७ ६७५. 'सा वितण्डा त्वित्यादि'तुशब्दोऽवधारणार्थो भिन्नक्रमश्च । सा तु सैव विजिगीषुकथैव प्रतिपक्षविजिता वादिप्रयुक्तपक्षप्रतिपन्थी प्रतिवाद्युपन्यासः प्रतिपक्षस्तेन विजिता रहिता प्रतिपक्षसाधनहीनेत्यर्थः वितण्डोदाहृता। 'वैतण्डिको हि स्वाभ्युपगतपक्षमस्थापयन् यत्किचिद्वादेन परोक्तमेव दूषयतीत्यर्थः ॥३०॥ ६७६. अथ हेत्वाभासादितत्वत्रयस्वरूपं प्रकटयति
हेत्वाभासा असिद्धाद्याश्छल कूपो नवोदकः ।
जातयो दृषणामासाः पक्षादिर्दष्यते न यैः ॥३१॥ $ ७७. असिद्धविरुद्धानकान्तिककालात्ययापविष्टप्रकरणसमाः पञ्च हेत्वाभासाः। तत्र पक्षधर्मत्वं यस्य नास्ति, सोऽसिद्धः, अनित्यः शब्दश्चाक्षुषत्वादिति १। विपक्षे सन्सपक्षे चासन् विरुद्धः, नित्यः शब्दः कार्यत्वाविति २। पक्षावित्रयवत्तिरनैकान्तिकः अनित्यः शब्दः प्रमेयत्वा
६७५. तु शब्द निश्चयार्थक है। यह तु शब्द भिन्न क्रमवाला है। अतः प्रतिपक्षसे रहित वह जल्प ही वितण्डा कहलाता है । वादोके द्वारा स्थापित पक्षकी अपेक्षा प्रतिवादीका पक्ष प्रतिपक्ष कहलाता है। वितण्डामें प्रतिवादी प्रतिपक्षका अर्थात् अपने पक्षका स्थापन नहीं करता, वह तो वैतण्डिक बनकर जिस किसी भी तरह वादीका मुंह बन्द करनेमें, मात्र उसके पक्षका खण्डन ही खण्डन करने में झुका रहता है । तात्पर्य यह कि अपने पक्षका स्थापन न करके मात्र परपक्ष खण्डनको वितण्डा कहते हैं ॥३०॥
६७६. अब हेत्वाभास छल और जातिका स्वरूप कहते हैं
असिद्ध आदि हेत्वाभास हैं। 'इस कुएंमें नवोदक है' यहाँ नूतन जलके अभिप्रायसे प्रयुक्त नवोदक शब्दका 'नव प्रकारका जल' अर्थ करना छल है । जैसे जातियाँ दूषणाभास हैं, इनके द्वारा पक्ष आदिका वस्तुतः खण्डन नहीं होता ॥३१॥
७७. असिद्ध, विरुद्ध, अनेकान्तिक, कालात्ययापदिष्ट तथा प्रकरणसम ये पांच हेत्वाभास अर्थात् हेतुके लक्षणसे रहित होकर हेतुकी तरह भासमान होनेवाले हैं। जिस हेतुमें पक्षधर्मत्व न पाया जाय अर्थात् जो हेतु पक्षमें न रहे वह असिद्ध है जैसे शब्द अनित्य है क्योंकि वह चाक्षुषचक्षुरिन्द्रियके द्वारा दिखाई देता है । शब्द श्रोत्रग्राह्य होता है अतः चाक्षुषत्व हेतु शब्दरूप पक्षमें न रहने के कारण असिद्ध है। जो हेतु सपक्षमें तो न रहता हो और विपक्ष में रहता हो वह विरुद्ध है। जैसे शब्द नित्य है क्योंकि वह कार्य है। कार्यत्व हेतु अनित्यरूप विपक्षमें तो रहता है पर किसी भी नित्य सपक्षमें नहीं। पक्ष, सपक्ष तथा विपक्ष तीनोंमें रहनेवाला हेतु अनैकान्तिक है।
१. -धनाहीना-प. १, २, भ. १, २, क.। २. "तयोरेकतरं वैतण्डिको न स्थापयतीति । परपक्षप्रतिषेधेनैव प्रवर्तते इति ।" -न्यायभा. ११३। ३. "सव्यभिचारविरुद्ध-प्रकरणसम-साध्यसमकालातीता हेत्वाभासाः।" -न्यायसू. १२४“अहेतवो हेतुवदवभासमानाः हेत्वाभासाः। हेतोः पञ्च लक्षणानि पक्षधर्मत्वादीनि उक्तानि । तेषामेकैकापाये पश्च हेत्वाभासा भवन्ति । असिद्ध-विरुद्धअनैकान्तिककालात्ययापदिष्टप्रकरणसमाः।" -न्यायक. पृ. १४। न्यायसा. पू. .। ४. "तत्र पक्षधर्मत्वं यस्य नास्ति सोऽसिद्धः। यथानित्यः शब्दः चाक्षुषत्वादिति ।" -न्यायक. पृ. १४। "तत्रानिश्चितपक्षावृत्तिरसिद्धः।"-न्यायसा. पृ. ७ । ५. "पक्षविपक्षयोरेव वर्तमानो हेतविरुद्धः।"
-न्यायसा. पू..। "सपक्षे सत्त्वं यस्य नास्ति विपक्षे च वृत्तिरस्ति स साध्यविपर्ययसाधनत्वाद् विरुद्धो भवति । यथा अश्वोऽयं विषाणत्वादिति ।" -न्यायक. पृ. १४। ६.-त्वात् प-भ. २ । ७. "पक्ष-सपक्ष-विपक्षवृत्तिरनैकान्तिकः।-न्यायसा. पृ. । "विपक्षादपरिच्यतः पक्षसपक्षयोर्वर्तमानो हेतुः सव्यभिचारित्वादनकान्तिको भवति ।" न्यायक. पृ. ६४।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org