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________________ - का० १९. $ ४२ ] नैयायिकमतम् । $ ४१. सामान्यतोदृष्टं नाम अकार्यकारणभूतेनाविनाभाविना लिङ्गेन यत्र लिङ्गिनोsaगमः, यथा बलाकया सलिलस्येति । प्रयोगस्त्वयम् - बलाकाजहद्वृत्तिः प्रदेशो जलवान्वलाकावस्वात् संप्रतिपन्न देशवत् । यथा वान्यवृक्षोपरिदृष्टस्यादित्यस्यान्यपर्वतोपरिदर्शनेन गतेरवगमः । प्रयोगः पुनः - रवेरन्यत्र दर्शनं गत्यविनाभूतं, अन्यत्र दर्शनत्वात्, देवदत्तादेरन्यत्र दर्शनवत् । अत्र यथा देवदत्तादेरन्यत्र दृष्टस्यान्यत्र दर्शनं व्रज्यापूर्व, तथादित्यस्यापीति, अन्यत्र दर्शनं च न गतेः कार्य संयोगादेर्गतिकार्यत्वात् । ९९ $ ४२. अन्ये त्वेवं वर्णयन्ति । "समानकालस्य स्पर्शस्य रूपादकार्यकारणभूतात्प्रतिपत्तिः सामान्यतो दृष्टानुमानप्रभवा । अत्र प्रयोगः, ईदृशस्पर्शमिदं वस्त्रमेवंविधरूपत्वात्, तदन्यतादृशवस्त्रवत् । एकं चूतं फलितं दृष्ट्वा पुष्पिता जगति चूता इति प्रतिपत्तिर्वा । प्रयोगस्तु, पुष्पिता जगति चूताश्चतत्वात् दृष्टचूतवदित्यादि । ६ ४१. सामान्यतोदृष्ट- कार्य और कारणसे भिन्न ऐसे किसी भी अविनाभावी साधनसे साध्यका ज्ञान करना सामान्यतोदृष्ट है; जैसे बगुलाको देखकर जलका अनुमान करना । प्रयोग - जिसमें बगुला सदा रहते हैं ऐसा यह प्रदेश जलवाला है, क्योंकि यहाँ बगुला पाये जाते हैं, जैसे कोई गुलावाला जलाशय । अथवा किसी वृक्षके ऊपर दिखाई देनेवाले सूर्यको कालान्तर में पर्वत आदिपर देखकर उसकी गतिका अनुमान करना भी सामान्यतोदृष्ट है । प्रयोग - समीपवर्ती वृक्षपर दिखाई देनेवाले सूर्यका थोड़ी ही देरमें दूरवर्ती पर्वतपर दिखाई देना गतिका अविनाभावी है अर्थात् वह गतिके बिना नहीं हो सकता, क्योंकि वह एक जगह देखी गयी वस्तुका अन्यत्र दर्शन हैं, जैसे एक जगह देखे गये देवदत्तका अन्यत्र दिखाई देना । जैसे एक जगह देखे गये देवदत्तका दूसरे स्थान में दिखाई देना गमनपूर्वक है उसी तरह सूर्यका भी । यह 'अन्यत्र दिखाई देना' हेतु गतिका कार्य नहीं है, क्योंकि गतिके कार्य तो संयोग आदि होते हैं । $ ४२. कोई व्याख्याकार कहते हैं कि रूप देखकर तत्समानकालवर्ती स्पर्शका अनुमान करना सामान्यतोदृष्ट है । यहाँ रूप न तो स्पर्शका कार्य ही है और न कारण ही । प्रयोग - M वस्त्रका अमुक स्पर्श होना चाहिए, क्योंकि इसमें अमुक रूप पाया जाता है, उस प्रकार के रूप-स्पर्शवाले अन्य वस्त्रकी तरह । अथवा - एक आमके वृक्षको फलोंसे लदा हुआ देखकर 'जगत् के सब आम्रवृक्षों में फूल-बीर आ गये हैं' यह अनुमान करना सामान्यतोदृष्ट है । प्रयोग - जगत् के सब आमोंके वृक्षोंमें बौर आ गये हैं क्योंकि वे आमके वृक्ष हैं जैसे कि सामने दिखाई देनेवाला बौरवाला आमका वृक्ष | १. " सामान्यतोदृष्टं नाम अकार्याकारणोभूतेन यत्राविनाभाविना विशेषेण विशेष्यमाणो धर्मी गम्यते तत् सामान्यतोदृष्टं यथा बलाकया सलिलानुमानम् । कथं पुनर्बलाकया सलिलानुमानम् ? यावानस्य देशो बलाय जहद्वृत्तित्वेन प्रसिद्धो भवति तावन्तमन्तर्भाव्य वृक्षादिकमर्थं पक्षीकृत्य बलाकावत्त्वेन साधयति ।" — न्यायवा. पृ. १७ । २. नाम कार्य आ. । ३ " सामान्यतोदृष्टम् — व्रज्यापूर्वकमन्यत्र दृष्टस्याऽन्यत्र दर्शनमिति तथा चादित्यस्य तस्मादस्त्यप्रत्यक्षाप्यादित्यस्य व्रज्येति । सामान्यतोदृष्टं नाम यत्राप्रत्यक्षे लिङ्गलिङ्गिनोः संबन्धे केनचिदर्थेन लिङ्गस्य सामान्याद् अप्रत्यक्षो लिङ्गी गम्यते यथेच्छादिभिरात्मा । इच्छादयो गुणा गुणाश्च द्रव्यसंस्थानाः तद् यदेषां स्थानं स आत्मेति ।" न्यायमा, 9।।।५ । ४. च गतेः क., भ. २ । ५. " सामान्यतोदृष्टं तु यदकार्यकारणभूताल्लिङ्गात्तादृशस्यैव लिङ्गिनोऽनुमानं यथा कपित्यादी रूपेण रसानुमानम्, रूपरसयोः समवायिकारणमेकं कपित्थादि द्रव्यं न तु तयोरन्योन्यं कार्यकारणभावः ।" न्यायम. प्रमा. पृ. १९ । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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