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अहम् अथ द्वितीयोऽधिकारः
नैयायिकमतस्येतः कथ्यमानो निशम्यताम् ॥१२॥ $ १. नैयायिकमतस्य शैवशासनस्य संक्षेप इत ऊवं कथ्यमानो निशम्यतां श्रूयताम् ॥
अथादौ नैयायिकानां योगापराभिधानानां लिङ्गादिव्यक्तिरच्यते । ते च दण्डधराः, प्रौढकोपीनपरिधानाः, कम्बलिकाप्रावृताः, जटाधारिणः, भस्मोद्धलनपराः, यज्ञोपवीतिनः, जलाधारपात्रकराः, नीरसाहाराः प्रायो वनवासिनो वोर्मूले, तुम्बकं बिभ्राणाः, कन्दमूलफलाशिनः, आतिथ्यकर्मनिरताः सस्त्रीकाः; निस्त्रीकाश्च । निनोकास्तेषूत्तमाः। ते च पञ्चाग्निसाधनपराः, करे जटादौ च प्राणलिङ्गधराश्चापि भवन्ति । उत्तमां संयमावस्थां प्राप्तास्तु नग्ना भ्रमन्ति । एते प्रातर्दन्तपादादिशौचं विधाय शिवं ध्यायन्तो भस्मनाङ्गं त्रिस्त्रिः स्पृशन्ति । यजमानो वन्दमानः कृताञ्जलिर्वक्ति 'ओं नमः शिवाय' इति । गुरुस्तथैव 'शिवाय नमः' इति प्रतिवक्ति । ते च संसद्येवं वदन्ति
"शैवी दीक्षा द्वादशाब्दी सेवित्वा योऽपि मुञ्चति । __ दासी दासोऽपि भवति सोऽपि निर्वाणमृच्छति ॥१॥" $२. तेषामीश्वरो देवः सर्वज्ञः सृष्टिसंहारादिकृत् । तस्य चाष्टादशावतारा अमो-नकुली आगे नैयायिक-शैव मतका संक्षेपसे वर्णन करेंगे उसे सुनो।
६१. नैयायिक-शैवमतका संक्षेपसे वर्णन आगे किया जायेगा उसे सुनिए। सर्वप्रथम नैयायिकोंके जिन्हें योग भी कहते हैं, लिंग वेष आदि कहते हैं। ये हाथमें दण्डको धारण करते हैं, मोटा कोपीन-लंगोटी लगाते हैं, कम्बल ओढ़ते हैं, जटा रखते हैं, शरीरमें राख लपेटते हैं, यज्ञोपवीत-जनेऊ पहनते हैं, हाथमें कमण्डलु रखते हैं, नीरस भोजन करते हैं, प्रायः वनमें पेड़के नीचे निवास करते हैं, तुम्बक-तूमड़ी रखते हैं। कन्दमूल तथा फलोंका भक्षण करते हैं तथा अतिथिसत्कारमें तत्पर रहते हैं। ये स्त्रीके साथ भी रहते हैं तथा स्त्रीके बिना भी रहते हैं। इनमें जो स्त्रीके बिना रहते हैं वे उत्तम समझे जाते हैं। ये पंचाग्नितप तपते हैं। हाथमें तथा जटा आदिमें प्राणलिंग धारण करते हैं । जब ये उत्तमसंयमको धारण करते हैं तब ये नग्न रहकर बिहार करते हैं। ये प्रातःकाल दन्तधावन तथा शौचादि क्रिया करके शिवका ध्यान करते हैं । तीन बार शरीरको भस्म लगाते हैं। इनके यजमान-भक्त हाथ जोड़कर इन्हें नमस्कार करते समय 'ॐ नमः शिवाय' कहते हैं। गुरु भी उत्तरमें 'शिवाय नमः' कहते हैं। वे अपनी सभामें इस प्रकार उपदेश देते हैं
"शैव दीक्षाको बारह वर्ष तक धारण करके जो छोड़ भी देता है वह चाहे दासी हो या दास अवश्य ही निर्वाणको प्राप्त करता है ।।१॥"
६२. ये ईश्वरको देव मानते हैं । वह सर्वज्ञ है तथा जगत्की सृष्टि तथा प्रलय करने में
१. अथादौ योगापराभिधानानां नैयायिकानां लि-प. १, २, भ.। नैयायिकानां योगा इति नामान्तरम, आदौ तेषां लि- भ. २ । २. ते द- भ. २ । ३. एते दन्तपा- भ. १, २। एते पा-प. २ ।
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