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वास्तुसारे
प्रतिमा यदि सम भंगुल-दो चार छः पाठ दस बारह इत्यादि बेकी अंगुल वाली बनवावें तो कभी भी अच्छी नहीं होती, इसलिये प्रतिमा विषम अंगुल-एक तीन पांच सात नव ग्यारह इत्यादि एकी अंगुलवाली बनाना चाहिये ॥३॥ आचारदिनकर में गृहबिंब लक्षण में कहा है कि
"अथातः सम्प्रवक्ष्यामि गृह विम्बस्य लक्षणम् ।। एकाङ्गुले भवेच्छेष्ठं द्वयङ्गलं धननाशनम् ॥ १॥ त्र्यङ्गुले जायते सिद्धिः पीडा स्याच्चतुरङ्गुले । पश्चाङ्गुले तु वृद्धिः स्याद् उद्वेगस्तु षडङ्गुले ॥ २ ॥ सप्ताङ्गुले गवां वृद्धि निरष्टाङ्गुले मता । नवाङ्गुले पुत्रवृद्धि-र्धननाशो दशाङ्गुले ॥ ३ ॥ एकादशाङ्गुलं विम्बं सर्वकामार्थसाधनम् ।
एतत्प्रमाणमाख्यात-मत ऊर्ध्वं न कारयेत् ॥ ४ ॥"
अब घर में पूजने योग्य प्रतिमा का लक्षण कहता हूँ। एक अंगुल की प्रतिमा श्रेष्ठ, दो अंगुल की धन का नाश करनेवाली, तीन अंगुल की सिद्धि करनेवाली, चार अंगुल की दुःख देनेवाली, पांच अंगुल की धन धान्य और यश की वृद्धि व.रनेवाली, छः अंगुल की उद्वेग करनेवाली, सात अंगुल की गौ श्रादि पशुओं की वृद्धि करनेवाली, आठ अंगुल की हानि कारक, नव अंगुल की पुत्र आदि की वृद्धि करनेवाली, दश अंगुल की धन का नाश करनेवाली और ग्यारह अंगुल की प्रतिमा सब इच्छित कार्य की सिद्धि करनेवाली है । जो यह प्रमाण कहा है इससे अधिक अंगुलवाली प्रतिमा घर में पूजने के लिये नहीं रखना चाहिये । पाषाण और लकड़ी की परीक्षा विवेकविलास में इस प्रकार है
"निर्मलेनारनालेन पिष्टया श्रीफलत्वचा ।
विलिप्तेऽश्मनि काष्ठे वा प्रकटं मण्डलं भवेत् ।।" निर्मल कांजी के साथ बेलवृक्ष के फल की छाल पीसकर पत्थर पर या लकड़ी पर लेप करने से मंडल ( दाग) प्रकट हो जाता है।
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