SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बिम्बपरीक्षा प्रकरणम् "मधुभस्मगुडव्योम-कपोतसदृशप्रमैः । माञ्जिष्टैररुणैः पीतैः कपिलैः श्यामलैरपि ॥ चित्रैश्च मण्डलैरेभि-रन्तज़ैया यथाक्रमम् । खद्योतो वालुका रक्त-भेकोऽम्बुगृहगोधिका । दर्दुरः कुकलासश्च गोधाखुसर्पवृश्चिकाः । सन्तानविभवप्राण-राज्योच्छेदश्च तत्फलम् ॥" जिस पत्थर या काष्ठ की प्रतिमा बनाना हो, उसी पत्थर या काष्ठ के ऊपर पूर्वोक्त लेप करने से या स्वाभाविक यदि मध के जैसा मंडल देखने में आवे तो भीतर खद्योत जानना । भस्म के जैसा मंडल देखने में आवे तो रेत, गुड़ के जैसा मंडल देखने में आवे तो भीतर लाल मेंडक, आकाशवर्ण का मंडल देखने में आवे तो पानी, कपोत ( कबूतर ) वर्ण का मंडल देखने में आवे तो छिपकली, मँजीठ जैसा देखने में आवे तो मेंडक, रक्त वर्ण का देखने में आवे तो शरट (गिरगिट ), पीले वर्ण का देखने में आवे तो गोह, कपिलवर्ण का मंडल देखने में आवे तो उंदर, काले वर्ण का देखने में आवे तो सर्प और चित्रवर्ण का मंडल देखने में आवे तो भीतर बिच्छ्र है, ऐसा समझना। इस प्रकार के दागवाले पत्थर वा लकड़ी हो तो संतान, लक्ष्मी, प्राण और राज्य का विनाश कारफ है ।। "कीलिकाछिद्रसुषिर-त्रसजालकसन्धयः । मण्डलानि च गारश्च महादूषणहेतवे ॥" पाषाण या लकड़ी में कीला, छिद्र, पोलापन, जीवों के जाले, सांध, मंडलाकार रेखा या कीचड़ हो तो बड़ा दोष माना है । "प्रतिमायां दवरका भवेयुश्च कथञ्चन । सदृग्वर्णा न दुष्यन्ति वर्णान्यत्वेऽतिक्षिता ॥" प्रतिमा के काष्ठ में या पाषाण में किसी भी प्रकार की रेखा (दाग) देखने में आवे, वह यदि अपने मूल वस्तु के रंग के जैसी हो तो दोष नहीं है, किन्तु मूल वस्तु के रंग से अन्य वर्ण की हो तो बहुत दोषवाली समझना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy