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________________ (८०) वास्तुसारे धूर्त और मंत्री के समीप, दूसरे की वास्तु की हुई भूमि में और चौक में घर नहीं बनाना चाहिये । विवेकविलास में कहा है कि "दुःख देवकुलासन्ने गृहे हानिश्चतुष्पथे । धूर्तामात्यगृहाभ्याशे स्यातां सुतधनक्षयौ ।।" घर देवमंदिर के पास हो तो दुःख, चौक में हो तो हानि, धूर्त और मंत्री के घर के पास हो तो पुत्र और धन का विनाश होता है । घर या देवमंदिर का जीर्णोद्धार कराने की आवश्यकता हो तब इनके मुख्य द्वार को चलायमान नहीं कराना चाहिये । अर्थात् प्रथम का मुख्य द्वार जिस दिशा में जिस स्थान पर जिस माप का हो, उसी प्रकार उसी दिशा में उस स्थान पर उसी माप का रखना चाहिये ।। १५६ ॥ गौ बैल और घोड़े बांधने का स्थान गो-वसह-सगडठाणं दाहिणए वामए तुरंगाणं । गिहबाहिरभूमीए संलग्गा सालए ठाणं ॥ १५७ ॥ गौ, बैल और गाड़ी इनको रखने का स्थान दक्षिण ओर, तथा घोड़े का स्थान बायीं ओर घर के बाहर भूमि में बनवायी हुई शाला में रखना चाहिये ॥१५७॥ गेहाउवामदाहिण-अग्गिम भूमी गहिज्ज जइ कज्जं । .. पच्छा कहवि न लिज्जइ इअ भणियं पुव्वनाणीहिं ॥ १५८ ॥ इति श्रीपरमजैनचन्द्राङ्गज-ठक्कुर 'फेरु' विरचिते गृहवास्तुसारे गृहलक्षणनाम प्रथमप्रकरणम् । __यदि कोई कार्य विशेष से अधिक भूमि लेना पड़े तो घर के बायीं या दक्षिण तरफ की या आगे की भूमि लेना चाहिये । किन्तु घर के पीछे की भूमि कभी भी नहीं लेना चाहिये, ऐसा पूर्व के ज्ञानी प्राचीन आचार्यों ने कहा है ।। १५८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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