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________________ पास्तुसारे - हैं। इसलिये इन वृक्षों की लकड़ी भी घर बनाने के लिये नहीं लाना चाहिये। ये वृक्ष घर में या घर के समीप हों तो काट देना चाहिये, यदि उन वृक्षों को नहीं काटें तो उनके पास पुन्नाग (नागकेसर), अशोक, अरीठा, बकुल (केसर), पनस, शमी और शाली इत्यादि सुगंधित पूज्य वृक्षों को बोने से तो उक्त दोषित वृक्षों का दोष नहीं रहता है। पाहाणमयं थंभं पीढं पट्टं च बारउत्ताणं । एए गेहि विरुद्धा सुहावहा धम्मठाणेसु ॥ १५०॥ यदि पत्थर के स्तंभ, पीढे, छत पर के तख्ते और द्वारशाख ये सामान्य गृहस्थ के घर में हों तो विरुद्ध (अशुभ) हैं। परन्तु धर्मस्थान, देवमंदिर आदि में हों तो शुभकारक हैं ॥ १५ ॥ पाहाणमये कहें कट्ठमए पाहणस्स थंभाइ । पासाए य गिहे वा वज्जेव्वा पयत्तेणं ॥ १५१ ॥ जो प्रासाद या घर पत्थर के हो, वहां लकड़ी के और काष्ठ के हों वहां पत्थर के स्तंभ पीढे आदि नहीं बनाने चाहिये । अर्थात् घर आदि पत्थर के हों तो स्तंभ आदि भी पत्थर के और लकड़ी के हों तो स्तंभ आदि भी लकड़ी के बनाने चाहिये ॥१५॥ दूसरे मकान की लकड़ी आदि वास्तुद्रव्य नहीं लेना चाहिये, यह बतलाते हैं - पासाय-कूव-वावी-मसाण-मठ-रायमंदिराणं च । पाहाण-इट्ट-कट्ठा सरिसवमत्ता वि वज्जिजा ॥ १५२॥ देवमंदिर, कूए, बावड़ी, श्मशान, मठ और राजमहल इनके पत्थर ईंट या लकड़ी आदि एक तिल मात्र भी अपने घर के काम में नहीं लाना चाहिये ॥ १५२॥ पुनः समरांगण सूत्रधार में भी कहा है कि "अन्यवास्तुच्युतं द्रव्य--मन्यवास्तौ न योजयेत् । प्रासादे न भवेत् पूजा गृहे च न वसेद् गृही ॥" दूसरे वास्तु (मकान आदि) की गिरी हुई लकड़ी पाषाण इंट चूना आदि द्रव्य (चीजें) दसरे वास्तु ( मकान ) में काम नहीं लाना चाहिये। यदि दूसरे का वास्तु द्रव्य मंदिर में लगाया जाय तो पूजा प्रतिष्ठा नहीं होती है, और घर में लगाया जाय तो उस घर में स्वामी रहने नहीं पाता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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