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________________ ( ७७ ) हल, घानी ( कोल्हू ), गाड़ी, अरहट ( रेहट-कूए से पानी निकालने का चरखा ), कांटेवाले वृक्ष, पांच प्रकार के उदुंधर ( गूलर, वड़. पीपल, पलाश और कडंबर ) और वीरतरु अर्थात् जिस वृक्ष को काटने से दूध निकले ऐसे वृक्ष इत्यादि की लकड़ी मकान बनवाने में नहीं लाना चाहिये ।। १४६ ।। .. बिज्जउरि केलिदाडिम जंभीरी दोहलिद्द अंबलिया । 'बब्बूल-बोरमाई कणयमया तह वि नो कुज्जा ॥ १४७॥ बीजपूर ( बीजोरा ), केला, अनार, निंबू , श्राक, इमली, बबूल, बेर और कनकमय (पीले फूलवाले वृक्ष ) इन वृक्षों की लकड़ी घर बनाने में नहीं लाना चाहिये तथा इनको घर में बोना भी नहीं चाहिये ॥ १४७ ॥ एयाणं जइ वि जडा पाडिवसा उपविस्सइ अहवा । छाया वा जम्मि गिहे कुलनासो हवइ तत्थेव ॥ १४८ ॥ ___ यदि ऊपरोक्त वृक्षों की जड़ घर के समीप हो या घर में प्रवेश करती हो तथा जिस घर के ऊपर उनकी छाया गिरती हो तो उस घर के कुल का नाश हो जाता है ॥१४८॥ सुसुक्क भग्गदड्ढा मसाण खगनिलय खीर चिरदीहा । - निंब-बहेडय-रुक्खा न हु कट्टिजति गिहहेऊ ॥ १४१ ॥ जो वृक्ष अपने आप सूखा हुआ, टूटा हुआ, जला हुआ, श्मशान के समीप का, पक्षियों के घोंसलेवाला, दूधवाला, बहुत लम्बा (खजूर आदि), नीम और बेहड़ा इत्यादि वृक्षों की लकड़ी घर बनाने के लिये नहीं काटना चाहिये ॥ १४६ ।। वाराही संहिता में कहा है कि "आसन्नाः कण्टकिनो रिपुभयदाः क्षीरिणोऽर्थनाशाय । फलिनः प्रजाक्षयकरा दारूण्यपि वर्जयेदेषाम् ॥ छिन्द्याद् यदि न तरूंस्तान् तदन्तरे पूजितान् वपेदन्यान् । पुन्नागाशोकारिष्टबकुलपनसान शमीशालौ ।।" । घर के समीप यदि कांटेवाले वृक्ष हों तो शत्रु का भय करनेवाले हैं, दूध वाले वृक्ष हों तो लक्ष्मी के नाशकारक हैं और फलवाले वृक्ष हों तो संतान के नाश कारक १ 'बलि' इति पाठान्तरे । २ पाडवसा' 'पाडोसा' इति पाठान्तरे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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