________________
( ७६ )
वास्तुसारे
घर के सामने अरिहंत ( जिनेश्वर ) की दृष्टि या दक्षिण भाग हो, तथा महादेवजी की पीठ या बायीं भुजा हो तो बहुत कल्याणकारक है । परन्तु इससे विषरीत हो तो बहुत दुःखकारक है । यदि बीच में सदर रास्ते का अंतर हो तो दोष नहीं माना जाता है ॥ १४२ ॥
गृह सम्बन्धी गुण दोष -
पढमंत - जाम- वज्जिय धयाइ-दु-ति-पहरसंभवा छाया । दुहेऊ नायव्वा तो पयत्ते वज्जिज्जा ॥ १४३ ॥
पहले और अंतिम चौथे प्रहर को छोड़कर दूसरे और तीसरे प्रहर में मंदिर के ध्वजा आदि की छाया घर के ऊपर गिरती हो तो दुःखकारक जानना । इसलिये इस छाया को अवश्य छोड़ना चाहिये । अर्थात् दूसरे और तीसरे प्रहर में मंदिर के ध्वजादि की छाया जिस जगह गिरे, ऐसे स्थान पर घर नहीं बनाना चाहिये ॥ १४३ ॥
समकट्ठा विसमखणा सव्वपयारेसु इगविही कुज्जा ।
पुव्वुत्तरेण
पल्लव जमावरा
मूलकायव्वा ॥
१४४ ॥
सम काष्ठ और विषम खंड ये सब प्रकार से एक विधि से करना चाहिये । पूर्व उत्तर दिशा में (ईशान कोण में ) पल्लव और दक्षिण पश्चिम दिशा में (नैऋत्य कोण में ) मूल बनाना चाहिये ॥ १४४ ॥
सव्वेवि भारवट्टा मूलगिहे एगि सुत्ति पीढ पुण एगसुते उवरय- गुंजारि - लिंदेसु ॥
कीरति । १४५ ॥
मुख्य घर में सब भारवटे ( जो स्तंभ के ऊपर लंबा काष्ठ रखा जाता है वह ) बराबर समसूत्र में रखने चाहिये । तथा शाला गुंजारी और अलिंद में पीढे भी समसूत्र में रखने चाहिये ॥ १४५ ॥
घर में कैसी लकड़ी काम में नहीं लाना चाहिये यह बतलाते हैं
हल-घाणय-सगडमई रहट्ट-जंताणि कंटई तह य । पंचुंवरि खीरतरू एयाण य कटठ वज्जिज्जा ॥ १४६ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org