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गृह प्रकरणम्
घर में किस प्रकार के चित्र बनाना चाहिये - जोइणिनट्टारंभं भारह-रामायणं च निवजुद्धं । रिसिचरित्रदेवचरिश्र इय चित्तं गेहि नहु जुत्तं ॥ १३८ ॥
योगिनियों का नाटारंभ, महाभारत रामायण और राजाओं का युद्ध, ऋषयों का चरित्र और देवों का चरित्र ऐसे चित्र घर में नहीं बनाना चाहिये ॥ १३८ ।।
फलियतरु कुसुमवल्ली सरस्सई नवनिहाणजुअलच्छी।
कलसं वद्धारणयं सुमिणावलियाइ-सुहचित्तं ॥ १३ ॥ - फलवाले वृक्ष, पुष्पों की लता, सरस्वतीदेवी, नवनिधानयुक्त लक्ष्मीदेवी, कलश, स्वस्तिकादि मांगलिक चिन्ह और अच्छे अच्छे स्वप्नों की पंक्ति ऐसे चित्र बनाना बहुत अच्छा है ॥ १३६ ।।
पुरिसुब्ब गिहस्संगं हीणं अहियं न पावए सोहं । तम्हा सुद्धं कीरइ जेण गिहं हवइ रिद्धिकरं ॥ १४०॥
पुरुष के अंग की तरह घर के अंग न्यून या अधिक हों तो वह घर शोभा के लायक नहीं है। इसलिये शिल्पशास्त्र में कहे अनुसार शुद्ध घर बनाना चाहिये जिससे घर ऋद्धिकारक हो ॥ १४० ॥ घर के द्वार के सामने देवों के निवास संबंधि शुभाशुभ फल--
वजिज्जइ जिणपिट्ठी रविईसरदिहि 'विराहुवामभुत्रा। सव्वत्थ असुह चंडी बंभाणं चउदिसिं चयह ॥ १४१॥
घर के सामने जिनेश्वर की पीठ, सूर्य और महादेव की दृष्टि, विष्णु की बायीं भुजा, सब जगह चंडीदेवी और ब्रह्मा की चारों दिशा, ये सब अशुभकारक हैं, इस लिये इनको अवश्य छोड़ना चाहिये ॥ १४१ ॥
'अरिहंतदिट्ठिदाहिण हरपुट्ठी वामएसु कल्लाणं । विवरीए बहुदुक्खं परं न मग्गंतरे दोसो ॥ १४२॥ , "विण्हुवामो अ' इति पाठान्तरे । २ 'अरहंत' इति पाठान्तरे ।
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