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वास्तु में चार पद का ब्रह्मा, म ।
अर्यमादि चार देव तीन २ सयेमा
पद के, श्राप आदि पाठ देव नव पद के, कोने के
आठ देव आधे २ पद के प्रध्वीधर ब्रह्मा विवस्वान
और बाकी के चौबीस देव बीस पद में स्थापन करना चाहिये । बीस पद में प्रत्येक के छः २ भाग किये तो १२० पद हुए, इसको
२४ से भाग दिया तो
- प्रत्येक देव के पांच २ भाग आते हैं । चौसठ पद में वास्तुपुरुष की कल्पना करना चाहिये । पीछे वास्तुपुरुष के संधि भाग में दिवाल तुला या स्तंभ को बुद्धिमान नहीं रक्खें ।
वसुनंदिकृत प्रतिष्ठासार में इक्यासी पद का वास्तुपूजन इस प्रकार बतलाया है कि
"विधाय मसृणं क्षेत्रं वास्तुपूजां विधापयत् ॥ रेखामिस्तिर्यगूर्वाभि-वज्राग्राभिः सुमण्डलम् । चूर्णेन पंचवर्णेन सैकाशीतिपदं लिखेत् ।। तेष्वष्टदलपमानि लिखित्वा मध्यकोष्टके । अनादिसिद्धमंत्रेण पूजयेत् परमेष्ठिनः ॥ तद्वहिःस्थाष्टकोष्टेषु जयाद्या देवता यजेत् । ततः षोडशपत्रेषु विद्यादेवीश्च संयजेत् ॥ चतुर्विंशतिकोष्टेषु यजेच्छासनदेवताः। द्वात्रिंशत्कोष्टपोषु देवेन्द्रान् क्रमशो यजेत् ॥
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