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________________ मुंह प्रकरणम् स्वमंत्रोच्चारणं कृत्वा गन्धपुष्पाक्षतं वरं । दीपधूपफला_णि दत्वा सम्यक् समर्चयेत् ॥ लोकपालांच यक्षांश्च समभ्यर्च्य यथाविधि । जिनबिम्बाभिषेकं च तथाष्टविधमर्चनम् ॥" प्रथम भूमि को * करना चमरे बली-२ घरगेनानानंद नणदेवरा हरिको हरिमह कायमाका गीतरतिगीतयशसनिहित सम्मानधानेन्द्र धाते. | ५ | ५६ ७ ३६ | ३९ | 7. पाम्चयक्ष मानेगलगोमुख. महायक्ष त्रिमुरवयोव पद्मावती निहायकनकेश्वरी.अनिता दुरितारा महामा रोहिणी प्रज्ञप्ति वज नसी १ २ । 31 " 9 खला १ | चाहिये। अग्र भाग १ में वज्राकृतिवाली म तिरछी और खड़ी । दश २ रेखाएँ म खींचना चाहिये। न उसके ऊपर पंचवर्ण । के चूर्ण से इक्यासी * पद वाला अच्छा मंडल बनाना चाहिये । मध्य के * कुटिगोमेवर १९ । बलादेवी धारिणीनवैरोटवानरदत्ता गांधारीओ सनकुमामाहेत्रपब्रजेन्द्र पातक शक्रेत्रमाबोर नतमाणभारणाम गंधर्व यशेतकुबेर१९ वरुणा पूर्णभद्रामाणिभद्रजीमणमारीमकिन मानवी वैरोश्या अच्युता मानसी सजाय काला श्यामा शांता ज्वालामतारा शोका उबरूप ऊतुम मागविजय अनिता ब्रह्मा १० ईश्ववमर-घर सक्ष विज्ञान हामद जामति अधिशिखाग्निमानस पुण्ये वनिता जलकात जलपन अमितानिमितवाहन ६. ru वजक जांबुनदा पुरुषदला काला। MORN . Jesapihurupt EasthitkuthaeosanPre | Shiurate AEPIPLEELATEtabaseful TATA TRITr FEATREEgalel e rtueblueerut Ires REPRESSEMBreena|Free पांखड़ीवाला कमल बनाना चाहिये। * * कमल के मध्य में परमेष्ठी अरिहंतदेव को नमस्कार मंत्र पूर्वक स्थापित करके पूजन करना चाहिये । कमल की पांखड़ियों में जया आदि देवियों की पूजा करना अर्थात् कमल के कोनेवाली चार पांखड़ियों में जया, विजया, जयंता और अपराजिता इन चार देवियों को स्थापित करके चार दिशावाली पांखड़ियों में सिद्ध, प्राचार्य, उपाध्याय और साधु को स्थापन कर पूजन करना चाहिये । कमल के ऊपर के सोलह कोठे में सोलह विद्या देवियों को, इनके ऊपर चौवीस कोठे में शासन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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