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वास्तुसारे
विहार
चाहिये । दोनों
का
वास्तु नर का अंग विभाग इस प्रकार है"ईशो मूर्ध्नि समाश्रितः श्रवणयोः पर्जन्यनामादिति
रापस्तस्य गले तदंशयुगले प्रोक्तो जयश्चादितिः । उक्तावर्यमभूधरौ स्तनयुगे स्यादापवत्सो हृदि,
पञ्चेन्द्रादिसुराश्च दक्षिणभुजे वामे च नागादयः ॥ सावित्रः सविता च दक्षिणकरे वामे द्वयं रुद्रतो,
मृत्युमैत्रगणस्तथोरुविषये स्यानाभिपृष्ठे विधिः । मेढ़े शक्रजयौ च जानुयुगले तौ वहिरोगौ स्मृतौ,
__पूषानंदिगणाश्च सप्तविबुधा नल्योः पदोः पैतृकाः ॥" ईशानकोने में वास्तुपुरुष का सिर है, इसके ऊपर ईशदेव को स्थापित करना वीजा वास्तु पुरुष चक्र
कान के ऊपर माहा । अर्थ मन्त्र का का पर्जन्य और दिति
देव को, गले के ऊपर आपदेव
को, दोनों कंधे . पर जय और
अदिति देव को, दोनों स्तनों पर क्रम से अर्यमा और पृथ्वीधर को, हृदय के ऊपर आपवत्स को,दाहिनी भुजा
के ऊपर इंद्रादि |
पांच (इंद्र, सूर्य, सत्य, भृश और आकाश ) देवों को, बायीं भुजा के ऊपर नागादि पांच ( नाग,
आप
मोमा
पूषा
7सावित्रमविता
सायबा
पवितथ
पर
aama
कुबेर
मात्राय
यम
गंध
नाग
रुद्रटामा
शेग
ओष अमर वरुणायदत
पीवanपिच
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