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________________ ( ६२ ) वास्तुसारे हिडिम उवरि खणाणं हीगाहियपीढ तं तुलावेहं । पीढा समसंखाय हवंति जइ तत्थ नहु दोसो ॥१२०॥ घर के नीचे या ऊपर के खंड में पीढे न्यूनाधिक हों तो 'तुलावेध' होता है। परन्तु पीढे की संख्या समान हो तो दोष नहीं है ॥ १२० ॥ दुवारवेहो य । दूम - कूव - थंभ - कोणय - किलाविद्धे गेहुच्चविणभूमी तं न विरुद्धं बुहा विंति ॥ १२१ ॥ जिस घर के द्वार के सामने या बीच में वृक्ष, कूआ, खंभा, कोना या कीला ( खूंटा ) हो तो 'द्वारवेध' होता है । किन्तु घर की ऊंचाई से द्विगुनी ( दूनी ) भूमि छोड़ने के बाद उपरोक्त कोई वेध हो तो विरुद्ध नहीं अर्थात् वेधों का दोष नहीं है, ऐसा पंडित लोग कहते हैं ॥ १२१ ॥ वेध का परिहार आचारदिनकर में कहा है कि “ उच्छ्रायभूमिं द्विगुणां त्यक्वा चैत्ये चतुर्गुणाम् । वेधादिदोषो नैवं स्याद् एवं त्वष्टृमतं यथा ॥" घर की ऊंचाई से दुगुनी और मन्दिर की ऊंचाई से चार गुणी भूमि को छोड़ कर कोई वेध आदि का दोष हो तो वह दोष नहीं माना जाता है, ऐसा विश्वकर्मा का मत है ॥ वेधफल - तलवेहि कुरो हवंति उच्चे को तालु वेहेण भयं कुलक्खयं थंभवे कावालु तुलावेहे धणनासो हवइ रोरभावो । इ वेहफलं नाउं सुद्धं गेहं करे अव्वं ॥ १२३ ॥ Jain Education International तलवेध से कुष्ठरोग, कोनवेध से उच्चाटन, तालुवेध से भय, स्तंभवेध से कुल का क्षय, कपाल ( शिर) वेध और तुलावेध से धन का विनाश और क्लेश होता है । इस प्रकार वेध के फल को जानकर शुद्ध घर बनाना चाहिये ॥ १२२॥१२३॥ ● 'पीई पीडस्स समं हवइ जई तस्थ नहु दोसो' इति पाठान्तरे । हम्म | ॥१२२॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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