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________________ ( ५४ ) वास्तुसारे मुहि ति अलिंद दुपच्छइ दाहिणवामे श्र हवइ इक्किक्कं । तं गिहनामं वीयं हियच्छियं चउसु वन्नाणं ॥ ११ ॥ जिस द्विशाल घर के आगे तीन अलिन्द, पीछे की तरफ दो अलिन्द, तथा दाहिनी और बांयी तरफ एक २ अलिन्द हो तो उस घर का नाम 'वीर्य' कहा जाता है । यह चारों वर्षों का हितचिन्तक है ॥६६॥ दो पच्छइ दो पुरयो अलिंद तह दाहिणे हवइ इक्को । कालक्खं तं गेहं अकालिदंडं कुणइ नृणं ॥ १०० ॥ जिस द्विशाल घर के आगे और पीछे दो २ अलिन्द तथा दाहिनी भोर एक अलिन्द हो तो यह 'काल' नाम का घर कहा जाता है । यह निश्चय से अकालदंड ( दुर्भिक्षता ) करता है ॥१०॥ अलिंद तिनि वयणे जुअलं जुअलं च वामदाहिणए । एगं पिट्टि दिसाए बुद्धी संबुद्धिवड्ढणयं ॥ १०१ ॥ जिस द्विशाल घर के आगे तीन अलिन्द तथा बांयी और दक्षिण तरफ दो २ अलिंद और पीछे की तरफ एक अलिन्द हो ऐसे घर को 'बुद्धि' नाम का घर कहा जाता है । यह सबुद्धि को बढानेवाला है ॥१०१।। दु अलिंद चउदिसेहिं सुब्बयनामं च सवसिद्धिकरं । पुरयो तिन्नि अलिंदा तिदिसि दुगं तं च पासायं ॥ १०२॥ जिस द्विशाल घर के चारों ओर दो दो अलिन्द हों तो यह 'सुव्रत' नाम का घर कहा जाता है, यह सब तरह से सिद्धिकारक है । जिस द्विशाल घर के आगे तीन अलिन्द और तीनों दिशाओं में दो २ अलिन्द हो तो यह 'प्रासाद' नाम का घर कहा जाता है ॥१०२॥ चउरि अलिंदा पुरयो पिहितिगं तं गिहं दुवेहक्खं । इह सूराई गेहा अह वि नियनामसरिसफला ॥ १०३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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